BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: पैंगबर की तौहीन- हिंसा नहीं जवाब देने का वक़्त है…
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > Edit/Op-Ed > पैंगबर की तौहीन- हिंसा नहीं जवाब देने का वक़्त है…
Edit/Op-EdIndiaLatest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

पैंगबर की तौहीन- हिंसा नहीं जवाब देने का वक़्त है…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published September 16, 2012 1 View
Share
17 Min Read
SHARE

Dilnawaz Pasha and Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

अभी घर पहुंचा तो दुनिया में मची उथल-पुथल की दस्तक अपने दरवाजे पर महसूस हुई. मोबाइल बता रहा है कि गाजियाबाद में शुक्रवार को हुई हिंसा में 6 लोगों की मौत हो गई. आगे कुछ कहने से पहले पिछले पांच दिनों के घटनाक्रम पर एक सरसरी निगाह डालना चाहता हूं…

 – लीबिया के बेंगाजी शहर में अमेरिकी दूतावास पर हमला, राजदूत समेत 4 अमेरिकी नागरिकों की मौत

– लेबनान में अमेरिकी ब्रांडों के प्रतिष्ठानों पर भीड़ का हमला, सुरक्षाबलों की कार्रवाई में तीन लोगों की मौत

– यमन की राजधानी साना स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर प्रदर्शन, पुलिस फायरिंग में चार की मौत

– सूडान में अमेरिका, जर्मनी और ब्रितानिया के दूतावासों पर हमला, जवाबी कार्रवाई में तीन लोगों की मौत

– मिस्र के तहरीर चौक पर अमेरिकी दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन, तीन सौ के करीब घायल और एक मौत

– आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में अमेरिकी दूतावास के बाहर प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज, कई घायल

– अपने दूतावासों की सुरक्षा के लिए अमेरिका ने कमांडो भेजे, हमलावरों से निपटने के लिए ड्रोन भी उड़ाए

– फ्रांस की राजधानी पेरिस में सैंकड़ों मुसलमानों का प्रदर्शन, अमेरिकी दूतावास के बाहर लोगों ने नमाज पढ़ी

आखिर ये सब क्यों हो रहा है? किसने वो आग धधकाई है, जो मासूम जिंदगियों को जाया कर रही है? कौन है वो लोग जो इन घटनाओं की कीमत चुका रहे हैं और वो कौन है जो इनसे भी फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं? इन तमाम सवालों के जवाब तलाशने से पहले एक नज़र इन घटनाक्रमों पर भी…

काहिरा की अल-अजहर यूनीवर्सिटी के ईमाम शैख अहमद-अल-तय्यब ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून को लिखे पत्र में कहा, ‘दुनिया की शांति व्यवस्था को भंग करने का प्रयास करने वाले लोगों के खिलाफ हुई हिंसा के बाद अब संयुक्त राष्ट्र को मुसलमानों के धार्मिक प्रतीकों पर हमलों के खिलाफ़ प्रस्ताव लाना चाहिए. इस्लाम या किसी भी धर्म के प्रतीकों पर होने वाले हमलों को अपराध घोषित किया जाना चाहिए.’

इस्लाम की जन्मभूमी सऊदी अरब के सर्वोच्च मुफ्ती शैख अब्दुल अजीज बिन अब्दुल्लाह अल शैख ने अमेरिकी राजनयिकों और दूतावासों पर हुए हमलों की आलोचना करते हुए शनिवार को सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से पैगंबरों के अपमान को अपराध क़रार देने की मांग की. शैख अब्दुल अजीज ने कहा, ‘गुनाहगारों के गुनाहों की सजा बेगुनाहों को देना, उन पर हमला करना जिन्हें जान-माल की सुरक्षा दी गई हो, सार्वजनिक इमारतों को आग लगाना या हिंसा करना भी जुर्म है. अगर बेहूदा फिल्म बनाना और पैगंबर का अपमान करना अपराध है तो बेगुनाह राजनयिकों पर हमला करना भी इस्लाम का बिगड़ा हुआ रूप है, अल्लाह को ऐसी हरकतें पसंद नहीं.’

और एक नज़र इस ख़बर पर भी – गुरुवार को यमन की राजधानी साना स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर हुए प्रदर्शन के दौरान सुरक्षाबलों की गोली का शिकार हुए 19 वर्षीय नौजवान मुहम्मद अल तुवैती को शनिवार को दूतावास के ही नजदीक सुपुर्दे खाक किया गया. जनाजें के साथ चल रही भीड़ ने नारे लगाए, ‘अल्लाह के सिवा कोई खुदा नहीं, शहीद अल्लाह को प्यारे हैं.’ जनाजे के साथ तुवैती की एक बड़ी फोटो भी ले जाई जा रही थी जिस पर लिखा था- ‘शहीद मुहम्मद-अल-तुवैती’…

ये घटनाएं एक यूट्यूब क्लिप की प्रतिक्रियाएं हैं. अमेरिका में बनी एक फिल्म में पैगंबर-ए-इस्लाम के बारे में वो बातें कही गईं, जिन्हें शायद ही दुनिया का कोई भी मुसलमान बर्दाश्त कर पाए. मैंने भी यह वीडियो देखा है. जब आप पहली बार इस वीडियो को देखते हैं तो आपका खून खौलता है, सवाल उठता है कि कोई पैगंबर-ए-इस्लाम के बारे में ऐसा दिखाने या सोचने की हिम्मत कैसे कर सकता है? लेकिन जब आप वीडियो को दोबारा देखते हैं तो साफ़ जाहिर हो जाता है कि इस वीडियो का उद्देश्य ही लोगों की भावनाएं भड़काना था.

इस फिल्म की शूटिंग अमेरिका के लॉस एंजेलिस में हुई थी और फिल्म में कलाकारों की ज़रूरत के लिए जो विज्ञापन दिया गया था उसमें कहा गया था कि फिल्म किसी जार्ज नाम के चरित्र पर बन रही है. फिल्म की स्क्रिप्ट में कहीं भी पैगंबर मुहम्मद या इस्लाम का जिक्र नहीं था. कलाकारों को धोखे में रखकर बनाई गई इस फिल्म को बाद में डब करके ऊपर से पैगंबर मुहम्मद का नाम डाल दिया गया और फिर इसे यूट्यूब पर रिलीज कर दिया गया.

वीडियो यूट्यूब पर आया और जैसे-जैसे इसे लोगों ने देखा दुनियाभर में प्रदर्शन होने लगे. यह घटनाओं का वो पहलू है जो पहली नज़र में नज़र आता है.

असल में अमेरिका में रह रहे एक इजराइयी या मिस्र मूल के एक इसाई ने लोगों से दान लेकर एक फिल्म बनाई. फिल्म बनाई कुछ और गई थी और उसे पेश किसी और रूप में किया गया. क़रीब दो माह पहले इस फिल्म की अमेरिका में स्क्रीनिंग भी की गई लेकिन कोई देखने नहीं पहुंचा. दो माह पहले ही इसका वीडियो भी यूट्यूब पर आ गया था. अब सवाल यह है कि जब दो माह पहले ही इस फिल्म का वीडियो यूट्यूब पर आ गया था तो फिर प्रतिक्रियाएं अब क्यों हो रही हैं? दरअसल मिस्र के एक टीवी पत्रकार ने यूट्यूब पर यह वीडियो देखा और इसे अपने कार्यक्रम में शामिल कर लिया. टीवी पर कार्यक्रम में वीडियो के बारे में बात होने के बाद लोगों का गुस्सा भड़क गया. इससे भी बड़ा गुनाह उस व्यक्ति ने किया जिसने इस वीडियो को अरबी में डब करके यू्ट्यूब पर पोस्ट कर दिया. यूट्यूब के किसी अनजान खाते पर पड़ा यह वीडियो जब टीवी पर दिखा और अरबी में डब हुआ तब उसका असर इस्लामी मुल्कों में दिखना लाजिमी था.

आग बढ़ने से पहले एक सवाल मैं आपसे पूछता हूं कि वीडियो बनाने वाला ज्यादा बड़ा गुनाहगार है या फिर उसे लोगों को पहुंचाने वाले? यदि यह वीडियो अब से दस साल पहले बना होता तो शायद ही लोगों तो पहुंच पाता या उसका यह असर हुआ होता. लेकिन यह वीडियो उस युग में बना है जब अलास्का के बर्फीले इलाके की सर्दी को दिल्ली की गर्मी में महसूस किया जा सकता है. ये इंटरनेट का युग है. यहां सूचनाएं भूकंप से भी तेज़ दौड़ती हैं.

पूरे प्रकरण में सबसे अहम भूमिका अमेरिका से संचालित सोशल मीडिया वेबसाइट यूट्यूब की है. और यूट्यूब ने ही पूरे मामले से पल्ला झाड़ लिया है. अगर यूट्यूब इस वीडियो को अपनी वेबसाइट से हटा लेता तो शायद ही दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई प्रतिक्रिया होती या लोगों को इसके बारे में पता चल पाता. यूट्यूब ने अपनी सफाई में कहा कि यह फिल्म किसी वीडियो को अपलोड करने के उसके मानकों का उल्लंघन नहीं करती इसलिए इसे हटाया नहीं जा सकता. यह अभिव्यक्ती की आजादी है. जिन लोगों को इससे दिक्कत है वो इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं पोस्ट कर सकते हैं. यूट्यूब की इस सफाई के बाद इस्लाम के पैगंबर के अपमान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मुद्दा बन गया. अमेरिकी कानून अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की पूरी स्वतंत्रता देता है और संवैधानिक प्रावाधानों के कारण फिल्म का निर्माण करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की संभावना बेहद कम है.

यह अलग बहस हो सकती है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जब जान-बूझ कर नफ़रत फैलाई जाए तो उस पर प्रतिक्रियाएं कैसे दी जाएं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भी अभिव्यक्ति की स्वंत्रता और भड़काऊ और अपमानजनक भाषा के बीच की लाइन को स्पष्ट करने की चुनौती है. आने वाला वक्त इन उलझनों के जवाब दे देगा. लेकिन अभी सबसे बड़ा मसला है कि इस फिल्म पर प्रतिक्रिया कैसे दी जाए?

पैगंबर पर बनी फिल्म के बाद इस्लामी देशों में हुई घटनाओं जैसा ही कुछ उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में भी हुआ है. शुक्रवार को यहां के एक रेलवे स्टेशन पर किसी ने पवित्र कुरान के कुछ पन्ने फटे देखे. उन पन्नों पर गालियां और एक मोबाइल नंबर लिखा था. स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत मसूरी थाने की पुलिस से की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो सकी. पुलिस कार्रवाई करती भी कैसे? किसी मुसाफिर ने पवित्र कुरान के कुछ पन्ने फाड़कर स्टेशन पर फेंक दिए तो इसमें स्थानीय पुलिस की क्या खता है? लेकिन इन सवालों का जवाब खोजने के बजाए उत्तेजित भीड़ ने आग लगाना मुनासिब समझा. घंटों तक नेशनल हाइवे 24 जाम रखा गया. करीब 50 वाहनों में आग लगा दी गई और पुलिस और भीड़ के बीच हुए संघर्ष में दो दर्जन से अधिक लोग घायल हुए और 6 लोगों की मौत हो गई.

बेंगाजी, साना, खर्तूम और लेबनान में हुई घटनाओं और गाजियाबाद की घटना में कई समानताएं हैं. पहली यह कि गलती किसी सिरफिरे ने की और कीमत कई बेगुनाहों ने चुकाई. दूसरी भीड़ ने शांत मन से सोचकर ठोस जवाब देने के बजाए हिंसात्मक प्रतिक्रिया देना ज्यादा आसान समझा. तमाम घटनाओं में इंसानी जिंदगी ने कीमत चुकाई. लेकिन किसी के पास यह सोचने का वक्त नहीं है कि मरने वाले कौन थे या उनका कसूर क्या था? इस्लाम के पैगंबर और पवित्र धर्मग्रंथ के नाम पर फ़साद बरपा करना आसान है लेकिन इन मुद्दों का ठोस जवाब खोजना या सकारात्मक रूप से जवाब देना मुश्किल…

इन सब बातों के बीच कश्मीर के एक मुफ्ती के बयान का भी जिक्र करना चाहूंगा. मुफ्ती ने अमेरिका पर बनी फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन का आह्वान करते हुए अमेरिकी टूरिस्टों तक पर हमले का फतवा जारी कर दिया. इन मुफ्ती साहब ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि अगर बाकी मुल्क के धर्मगुरू भी मुसलमानों के खिलाफ़ हिंसा का फरमान जारी कर दें तो दुनिया का क्या हश्र होगा…? वैसे हश्र जो भी हो लेकिन कम से कम वो तो नहीं होगा जो पैगंबर-ए-इस्लाम हज़रत मुहम्मद साहब ने सोचा था.

अब यहां सवाल यह उठता है कि फिल्म पर प्रतिक्रिया ही क्यों दी जाए? जिम्मेदारी से जवाब क्यों न दिया जाए? पैगंबर पर बनी इस फिल्म पर हुई हिंसक प्रतिक्रियाओं में जिंदगियों के जाया होने पर मुझे अपने बचपन की याद आ रही है. सर्दियों की रात में सोने से पहले अम्मी पैगंबर साहब की जिंदगी के कुछ किस्से सुनाती थी. एक किस्सा आज भी ज़ेहन में ताजा है. अम्मी बताती थी कि आप (ज्यादातर मुसलमान पैगंबर मुहम्मद साबह को आप कहकर संबोधित करते हैं…) जिस रास्ते से गुजरते थे उस रास्ते पर एक बुढ़िया रोज कांटे बिछा देती या फिर ऊपर से गंदगी फेंक देती. आप कांटे हटाते, अपने कपड़े साफ करते और गुज़र जाते. यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा. एक दिन उस बुढ़िया ने न कांटे ही बिछाए और न गंदगी ही फेंकी. आप यह देखकर हैरान हुए और उस बुढ़िया का हाल-चाल पूछने उसके घर पहुंचे. देखा तो वो बीमार थी. आप ने हाल-चाल पूछा और उसकी तबियत ठीक होने की दुआ की. इस घटना का उस बुढ़िया पर ऐसा प्रभाव हुआ कि वो भी पैगंबर की सच्चे दिल से सम्मान करने लगी. अम्मी द्वारा बचपन में कई बार सुनाई गए इस वाक्ये का इस्लाम की हदीसों में भी जिक्र होगा. हदीस जब कहानी का हिस्सा बनती हैं तो जाहिर से उसमें कुछ तब्दीली भी हो जाती है. जो अम्मी ने बताया असल वाक्या उससे कुछ अलग हो. वाक्या अलग हो सकता है, लेकिन उसका सार यही है कि पैगंबर ने खुद पर कीचड़ फेंकने वाली बुढ़िया पर गुस्सा जाहिर करने के बजाए  अपने व्यावहार से उसका भी दिल जीत लिया. न कीचड़ फेंके जाने से उन्होंने रास्ता बदला और न ही कभी कोई प्रतिक्रिया दी. बस खामोशी से गुज़रते रहे.

जब पैगंबर-ए-इस्लाम ने खुद अपने ऊपर कीचड़ उछलने वाली बुढ़िया को जवाब नहीं दिया, उसके प्रति हिंसा या गर्म शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया, तो फिर अब उनकी तौहीन किए जाने पर हिंसक प्रतिक्रिया करने का अधिकार मुसलमानों को किसने दे दिया. वो प्रतिक्रियाएं अपने तौर-तरीके से क्यों दे रहे हैं. जब पूरी घटना के साथ पैगंबर-ए इस्लाम का नाम जुड़ा है तो फिर इसका जवाब उनके लहजे में क्यों नहीं दिया जा रहा है?

अगर आप यह लेख पढ़ रहे हैं या फिर पैगंबर के अपमान या कुरान के अपमान की कोई भी ख़बर पढ़ रहे हैं तो कुछ भी सोचने से पहले यह ज़रूर सोच लीजिएगा कि यदि पैगंबर के सामने ऐसे हालात आए होते तो उन्होंने क्या किया होता? अगर आपने एक बार भी ऐसा सोच लिया तो तमाम बातों का जवाब मिल जाएगा.

और अगर आप पैगंबर-ए-इस्लाम की सोच तक नहीं पहुंच पाए तो कम से कम एक 2012 के सख्श की तरह तो सोच ही सकते हैं. अमेरिका को जवाब देना है या उसके प्रति गुस्सा जाहिर करना है तो दूतावास के बाहर प्रदर्शन करने, अपने पैसों से खरीदकर झंडा जलाने, सुरक्षाबलों की लाठियां खाने की कोई ज़रूरत नहीं है, बस अमेरिका के प्रॉडक्ट्स खरीदना बंद कर दीजिए… अमेरिका को जवाब मिल जाएगा.

पूरी तरह बाजार आधारित अमेरिका को जवाब देने का सबसे असरदार तरीका उसके प्रॉडक्ट्स को नकारना है. मुफ्ती या ईमाम हिंसक तक़रीरें करने और अमेरीकियों पर हमला करने के बजाए दूतावासों के बाहर फूलों के गुलदस्तें रखने का फरमान सुना दें, अमेरिका घुटने के बल बैठकर माफी मांगेगा. बस एक शर्त है, गुलदस्तों के साथ एक संदेश चिपका हो जिस पर लिखा हो कि पैगंबर के अपमान के विरोध में दुनिया के तमाम मुसलमान अमेरिकी उत्पादों को न खरीदने का फैसला करते हैं, जब तक अमेरिका माफी नहीं मांगेगा, अमेरिकी उत्पाद नहीं खरीदे जाएंगे.

और अगर आप ऐसा भी नहीं कर सकते तो लंदन में जो मुसलमानों ने किया है वैसा करने की कोशिश जरूर कर सकते हैं… यहां के नए मुसलमानों ने (जो हाल ही में मुसलमान हुए हैं) इस बेहूदा फिल्म का जवाब देने के लिए पवित्र कुरान और पैगंबर मुहम्मद की जीवनी की एक लाख दस हजार कॉपियों को पैकेटों में रखकर बांटा है ताकि दुनिया के पैगंबर और उनके इस्लाम का असली संदेश मिल सके…

TAGGED:"Innocence of Muslims"
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
EducationIndiaYoung Indian

30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…

May 8, 2025
Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?