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बासी ‘मनमोहन सिंह जोक्स’ पर क्यों दांत फाड़ रहा है देश?

Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

फेसबुक टाइमलाइन पर चीजें बदलती रहती हैं, अगर कुछ नहीं बदलता तो वो हैं मनमोहन सिंह जोक्स… चाहे कुछ और नया हो न हो लेकिन रोजाना दो-चार नये चुटकुले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर पढ़ने को ज़रूर मिल जाते हैं. अपने प्रधानमंत्री पर इतने चुटकुले शेयर किए जाते हैं कि कुछ समाचार वेबसाइटों पर तो बकायदा ‘मनमोहन सिंह जोक्स’ सेक्शन तक बना हुआ है. मनमोहन सिंह जितनी बार टीवी पर समाचार में नहीं दिखते उससे ज्यादा बार रोजाना कार्टून में दिख जाते हैं. यानी मनमोहन सिंह पर चुटकुले और कार्टून बनना कोई नई बात नहीं है.

अब सवाल यह है कि वाशिंग्टन पोस्ट ने मनमोहन सिंह पर चो चुटकुले प्रकाशित किये हैं उनमें ऐसा क्या है कि देश के तमाम अख़बारों और टीवी चैनलों पर यह सबसे बड़ी ख़बर बन गए और प्रधानमंत्री कार्यालय तक को इस पर सफाई देनी पड़ी? अपनी रिपोर्ट में वाशिंग्टन पोस्ट ने कहा, ‘भारत के खामोश प्रधानमंत्री की छवि दुखद हो गई है.’ इस रिपोर्ट में भारत के प्रसिद्ध इतिहासविद रामचंद्र गुहा और मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू के हवाले से कहा गया है कि मनमोहन सिंह की छवि खराब हुई और वो सम्मान खो चुके हैं?

रिपोर्ट में कुछ भी नया नहीं है. वो सब बातें कही गई हैं जो आम भारतीय मनमोहन सिंह के बारे में फेसबुक, ट्विटर और ब्लॉग पर रोज लिखता है. लेकिन अब अहम सवाल यह है कि भारतीय मीडिया के लिए भारतीय नागरिकों की भावनायें और सोच ज्यादा महत्वपूर्ण है या फिर किसी अमेरिकी अखबार की राय?

ऐसा क्या कारण है कि टाइम मैग्जीन या वाशिंग्टन पोस्ट जब मनमोहन सिंह या सरकार के बारे में कुछ कहते हैं तब तो हमारा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाय-तौबा मचाता है, लेकिन आम तौर पर सरकार के कामकाज के बारे में ‘साइलेंट मोड’ पर रहता है. क्या हमें तब ही शर्म आती है जब कोई विदेशी हम पर नाक सिकौड़ता है. बिना किसी खास पड़ताल या ठोस आधार के लिखी गई विदेशी मीडिया की नकारात्मक टिप्पणियां तो हमारे देश के मीडिया में सुर्खियां बटोर लेती हैं, लेकिन आम आदमी की सोच और भावनाओं को अभिव्यक्ति नहीं मिल पाती.

वाशिंग्टन पोस्ट की जो रिपोर्ट अभी चर्चा में हैं उसमें एक भी ठोस तथ्य नहीं दिया गया है. पूरी रिपोर्ट आम राय पर आधारित है. जब उस रिपोर्ट में कुछ नया है ही नहीं तो फिर हमारे देश में हाय-तौबा क्यों मच रहा है… शायद हमारे संपादक विदेशी मीडिया के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार पर निशाना साधना चाहते हैं. इसमे कोई शक नहीं है कि मनमोहन सिंह के दामन पर दाग लगे हैं और अब वो एक सम्माननीय राजनीतिक शख्सियत से ‘मजबूरी’ का पर्यायवाची बन गये हैं. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि विदेशी मीडिया ‘बासी’ चुटकुले प्रकाशित करे तो हम उस पर भी दांत फाड़ने लगें. मनमोहन सिंह का न सही, कम से कम व्यंग्य के स्तर का तो ख्याल रखा जाना चाहिए.

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