BeyondHeadlines News Desk
आखिरकार फैजाबाद को साम्प्रदायिकता की आग में झोंकने की साजिश कामयाब हो ही गई .बाबरी मस्जिद की शहादत के समय भी फैजाबाद ने अपना संयम नहीं खोया था. कल शाम चौक इलाके में 4-5 घंटों तक जो कुछ हुआ उसने नरेन्द्र मोदी के गुजरात की याद दिला दी. कानून व्यवस्था ,प्रशाशन का कहीं अता-पता नहीं था. कई दिनों से दुर्गा पूजा के पंडालों से लाउड स्पीकर पर घृणा और उन्मांद का प्रचार जारी था. पुलिस ने इसे रोका होता तो कल की घटना नहीं होती. जिला प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा.
इधर दुर्गा पूजा समितियों के चरित्र में बड़े पैमाने पर लम्पटता का समावेश हुआ है. दारू और लुच्चई इनके मूल चरित्र का हिस्सा बन गए हैं. कल की घटना भी छेड़खानी से शुरू हुई .बाद में कच्छा-धारी पठ्ठों ने इसे हिन्दू -मुस्लिम रंग दे दिया.
दशहरे के मेले की भीड़ को देख कर इनकी बांछें पहले से ही खिली हुई थीं. जनता ने इन्हें और इनके राजनैतिक एजेंडे को पहले से ही नकार दिया है . ये सिर्फ भीड़ का फायदा उठाते हैं. हजारों की उन्मादी भीड़ ने कल चौक में चुन-चुन कर मुस्लिमों की दुकानों को आग लगाई. जैसे इनके पास पहले से ही कोई सूची रही हो.
नबाब हसन रजा खान वक्फ मस्जिद के उपर से प्रति वर्ष हिन्दू धार्मिक जुलूसों में मूर्तियों और लोगों के उपर पुष्प वर्षा की जाती थी उसे भी नहीं बख्शा गया. मस्जिद का ताला तोड़ कर अंदर जाकर तोड़-फोड़ और आगजनी की गई. मस्जिद के ऊपर ही अपने मंजर मेंहदी भाई के अख़बार ‘अपनी ताक़त’ का दफ्तर है. हम लोगो की बैठकी का अड्डा भी. उसे तोड़ डाला गया, किताबें फाड़ डाली गई, उनका कंप्यूटर प्रिटर तोड़ डाला गया. जम कर लूट हुई. तस्वीरें आज सुबह की हैं. आग अभी भी लगी हुई थी. देर -सबेर बुझा दी जाएगी. लेकिन लोगों के दिलों में सुलगते जख्मों को कब भरा जा सकेगा. इस आग को हम कैसे बुझाएंगे?
Anil Kumar Singh के फेसबुक वॉल से साभार
