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बेगुनाहों की रिहाई के वादे पर स्थिति स्पष्ट करें अखिलेश…

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ, आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के रिहाई मंच ने सपा सरकार द्वारा विभिन्न जिलों से आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने को लेकर मांगी जा रही सूचनाओं को मुस्लिम समाज के साथ बार-बार किया जा रहा धोखा बताया. रिहाई मंच ने कहा कि एक तरफ़ तो कभी सपा के मंत्री कहते हैं कि छोड़ने की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है तो मुलायम सिंह कहते हैं कि दो महीने बाद बेगुनाह मुस्लिमों को छोड़ने की प्रक्रिया शुरु की जाएगी.

तारिक़ कासमी द्वारा जेल में आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों के उत्पीड़न की बात सामने आने पर आईबी द्वारा दिए गए गैर जिम्मेदाराना बयान पर सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय व पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने खेद प्रकट किया. उनका कहना है कि आईबी द्वारा यह कहा जाना कि समाजसेवी संगठन के लोग प्रगतिशीलता व धर्मनिरपेक्षता की रटी-रटाई बातें बोलते हैं और देश में वैमनस्यता का माहौल बना रहे हैं, बेहद गैर-जिम्मेदाराना और संविधान के खिलाफ़ कही जाने वाली बातें हैं. सरकार को इस पर जवाब देना होगा कि आखिर जेल में हो रहे उत्पीड़न पर किस आधार पर आईबी ने इस प्रकार का बयान दिया और सरकार संविधान के खिलाफ सांप्रदायिक टिप्पड़ी करने वाले खुफिया अधिकारियों को तत्काल निलंबित करे.

रिहाई मंच के संयोजक अधिवक्ता मोहम्मद शुएब ने कहा कि यूपी सरकार को तारिक़-खालिद की गिरफ्तारी पर गठित आरडी निमेष आयोग ने अपनी रिपोर्ट को 31 अगस्त को ही सौंप दी है तो इस तरह के जो बयान सरकार के सूत्रों द्वारा मीडिया के माध्यम से जारी करवाए जा रहे हैं कि सरकार ने लखनऊ, गोरखपुर, फैजाबाद, वाराणसी के जिलाधिकारी को पत्र लिखकर जानकारी इक्ट्ठा कर रही है, वो दर्शाता है कि सरकार मामले को लटकाना चाहती है, अगर सरकार की मंशा साफ है तो वो निमेष आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए तारिक़, खालिद, सज्जार्दुरहमान, अख्तर वानी को तत्काल रिहा करे और मायवती सरकार ने जिस तरह से आरडी निमेष जांच आयोग का गठन किया उसी तरह आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों के सवाल पर विशेष जांच आयोग का गठन करे.

रिहाई मंच के नेता शाहनवाज आलम, राजीव यादव, गुफरान सिद्दिकी व रिषी सिंह ने कहा कि सपा सरकार निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट को न सार्वजनिक करके दरअसल एसटीएफ और आईबी के उन अधिकारियों को बचाना चाहती है जिन्होंने तारिक-खालिद पर झूठे आरोप लगाकर बाराबंकी से उनकी झूठी गिरफ्तारी दिखाई. क्योंकि निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद यह सवाल उठेगा कि तारिक़-खालिद के पास से जो असलहे विस्फोटक सामग्री बरामद हुई वो एसटीएफ के पास कैसे पहुंचा. दूसरा कि इनकी गिरफ्तारी आईबी की ब्रिफिंग पर हुई थीं तो ऐसे में आतंकवाद के नाम पर पकड़े गए सैकड़ों लोगों के सवाल उठ खड़े होंगे.

हम चाहते हैं कि सरकार आयोग की रिपोर्ट के आधार पर बेगुनाहों को छोड़े और असली गुनाहगारों को पकड़े क्यों कि सवाल सिर्फ बेगुनाहों के छोड़ने का ही नहीं है सवाल इन आतंकी घटनाओं में मारे गए व जख्मी लोगों के न्याय का भी है. जेलों में कैद बेगुनाहों को छोड़ने की बात हम लोकतांत्रिक अधिकार के तहत चाह रहे हैं न की खैरात में…

तारिक-खालिद के बाराबंकी के अधिवक्ता रणधीर सिंह सुमन व फैजाबाद के अधिवक्ता जमाल अहमद ने कहा पुलिस के झूठे आरोपों के चलते बेगुनाह जेलों में सड़ रहे हैं, ऐसे में जिला मजिस्ट्रेटों के माध्यम से जो एसपी से सूचना एकत्रित करने की बात आई है वो महज दिखावा है. निमेष आयोग की रिपोर्ट जिसे 6 महीने में ही आना था वो आज इन सरकारों की वजह से ही साढ़े चार साल से ज्यादा वक्त तक लटकने के बाद 31 अगस्त को आई है. ऐसे में सरकार आगे निमेष आयोग की रिपोर्ट लागू करे जिसे इस बात के लिए ही गठित किया गया था कि क्या तारिक को 12 दिसम्बर 2007 को आज़मगढ़ से और खालिद को 16 दिसम्बर 2007 को मडि़याहूं से उठाया गया था कि उनकी गिरफ्तारी बाराबंकी से 23 दिसंबर 2007 को की गई थी.

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