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डेंगूः डरे नहीं, अपने परिवार को बचाने के लिए ये ख़बर पढ़ें

Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

नई दिल्ली. रोमांस को मधुर परिभाषाएं और फिल्मों को वैभवीय भव्यता देने वाले यश चोपड़ा ने दुनिया से विदा ले ली. लीलावती अस्पताल की तमाम आधुनिक चिकित्सीय सुविधाएं भी भारत की इस महान हस्ती को बचाने में नाकाम रही. यशराज स्टूडियो और उनके घर के फव्वारे में पल रहे डेंगू के मच्छरों को उनकी मौत का कारण माना जा रहा है.

यश चोपड़ा की मौत ने हमारा ध्यान एक बार फिर डेंगू की ओर कर दिया है. लेकिन अगर यश जी की मौत के बाद हमारा ध्यान डेंगू पर गया है तो फिर स्थिति गंभीर है क्योंकि इस साल अब तक अकेले मुंबई में 650 से अधिक और दिल्ली में 700 से अधिक डेंगू के मामले सामने आ चुके हैं. अगर बात पूरे भारत की की जाए तो अब तक 17 हजार से अधिक डेंगू के मरीज देश में सामने आ चुके हैं. सोमवार को ही दिल्ली में डेंगू के 33 नए मरीज सामने आए. देश में इस साल अब तक 100 से अधिक मौते डेंगू से हो चुकी हैं.

डेंगू के बारे में एक गलतफहमी यह है कि यह गंदगी भरे इलाकों में ज्यादा होता है लेकिन आंकड़ों के मुताबिक यह पॉश इलाकों में ज्यादा फैल रहा है. मुंबई और दिल्ली में 60 फीसदी से अधिक डेंगू के मामले पॉश कॉलोनियों में सामने आए हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि डेंगू का मच्छर साफ पानी में ही जन्म लेता है. घर के अंदर लगे मनी प्लांट, फव्वारों, कूलर आदि में भरा पानी इसके पैदा होने के लिए आदर्श जगह होता है. डेंगू का मच्छर 50 मीटर से 200 मीटर तक ही उड़ान भर पाता है इसलिए ज्यादातर मच्छर मरीजों के घर में ही पनपते हैं और पड़ोसियों पर हमला करने की उनकी संभावना बेहद कम होती है.

यश चोपड़ा की मौत के बाद जिस तरह से डेंगू का खौफ दिखाया जा रहा है उससे जनता में डेंगू का हव्वा खड़ा होना तय है लेकिन आम लोगों को ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है क्योंकि जरा सी सावधानियों से डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है और यदि डेंगू हो भी गया है तो सही वक्त पर सही इलाज से पूरी तरह ठीक भी हुआ जा सकता है. भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम (.65) मामलों में मरीजों की मौत होती है.

डेंगू के बारे में सबसे पहले हमें इसके लक्षण जानने चाहिए. डेंगू एक प्रकार का वायरल बुखार है और यदि 3-7 दिन में भी बुखार न उतरे तो डेंगू की जांच करवानी चाहिए.

डेंगू के दौरान बदन में तेज दर्द होता है और कमजोरी महसूस होती है. आंखों के चारों ओर दर्द होना और शरीर पर लाल चकत्ते पड़ना भी डेंगू के लक्षण हैं.

डेंगू के सामान्य लक्षण ये हैं-    ठंड लगकर तेज बुखार आना, बुखार के दौरान बदन दर्द, सीने में दर्द, पेट दर्द, सिर, मांसपेशियों, गले व आंखों में दर्द, कमजोरी, भूख न लगना, मुंह का स्वाद खराब होना, शरीर पर चकते उभरना. डेंगू में 3 से 7 दिन तक तेज बुखार आता है. सिर, खासकर आंखों के पीछे तेज दर्द करता है. डेंगू में खून की उल्टी व अन्य अंगों से रक्तस्त्राव भी होता है.

वक्त पर इलाज ही है सही इलाज

डेंगू के 80 फीसदी मरीज शुरुआत में इसे लेकर लापरवाह रहते हैं और हालात बिगड़ने पर ही अस्पताल का रुख करते हैं. उन्हें लगता है कि वो तेज बुखार से पीड़ित हैं जो जल्द ही स्वतः ठीक हो जाएगा और इस चक्कर में अस्पताल जाने से बचते हैं. शरीर में दर्द और कमजोरी के कारण डेंगू को सामान्य वायरल बुखार भी मान लिया जाता है. डेंगू के दौरान ब्लड में प्लेटलेट काउंट भी लगातार गिरता रहता है. सामान्यतः ब्लड में प्लेटलेट काउंट ढाई लाख के आस पास होता है जो डेंगू होने पर तेजी से गिरता है और 70 हजार से नीचे भी चला जाता है. 50 हजार से नीचे गिरने पर यह और भी तेजी से गिरता है और 40 हजार से कम हो जाने पर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए. बल्ड प्लेटलेट काउंट 30 हजार से कम होने पर डॉक्टर प्लेटलेट इन्फ्यूज करते हैं. 30 हजार से कम होने पर डेंगू शॉक की स्थिति बनती हैं और ब्लड प्रैशर कम होने के कारण मरीजों की मौत हो जाती है. बुखार होने पर डिस्प्रिन, एस्प्रिन या कोई भी पेनकिलर न लें, इससे प्लेटलेट्स काउंट एकदम नीचे जा सकता है.

नवंबर के अंत तक रहती है डेंगू की संभावना

अगस्त और अक्टूबर के महीने डेंगू के मच्छर पैदा होने के लिए सबसे मुफीद होते हैं. इस दौरान तापमान इनकी पैदावार के लिए मददगार होता है. लोग कूलर का इस्तेमाल करना बंद कर देते हैं और इसके पानी में इनके पनपने की संभावना बेहद ज्यादा होती है. डेंगू बुखार के मच्छर 14-15 डिग्री सेंटी-ग्रेड पर मरते हैं. यह तापमान भारत में नवंबर माह के अंत में होता है. इस कारण अगले नवंबर के अंत तक डेंगू के संक्रमण का खतरा बना रहेगा. इन महीने में डेंगू बुखार के मरीजों की संख्या में इजाफा भी होता है.

डेंगू का खात्मा सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं

डेंगू वायरस से फैलने वाली बीमारी है और यह तेजी से फैलती है. सरकार ने डेंगू और अन्य वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए व्यापक कार्यक्रम चलाए हैं लेकिन इसकाम मतलब यह नहीं है कि डेंगू की रोकथाम सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है. डेंगू के लिए सरकार को ही जिम्मेदार मानना इस समस्या को और भी विकराल बना देता है. डेंगू का मच्छर साफ पानी में पैदा होता है और दिन में ही काटता है इसलिए डेंगू से बचाव हमारी अपनी जिम्मेदारी ज्यादा है. हम जहां भी रहते हैं (घर या दफ्तर) वहां साफ पानी जमा नहीं होना चाहिए. घर में टूटे फूटे डिब्बे, बर्तन, टायर या अन्य ऐसा सामान न रखें जिसमें पानी के इकट्ठा होने की संभावना हो. यदि स्वीमिंग पुल, फव्वार, फिश टैंक या मनी प्लांट घर में लगा है तो ध्यान रखें कि उसमें पानी एक सप्ताह के अंदर बदल ही जाना चाहिए. कूलर का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो उसे सुखा दें. और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहने. डेंगू का मच्छर अक्सर घुटनों के ऊपर काटता है इसलिए फुल स्लीव की शर्ट पहने और हो सके तो निकर न पहनें. बच्चों के शरीर के ढके होने का भी पूरा ख्याल रखें.

वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के निदेशक डॉ. धारीवाल कहते हैं, ‘डेंगू से घबराने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है, जरा सी सावधानी से इससे पूरी तरह बचा जा सकता है. डेंगू का इलाज पूरी तरह संभव है इसलिए घबराने की ज़ररूत नहीं है. सरकार ने दिल्ली और देश के तमाम सरकारी अस्पतालों में डेंगू का इलाज फ्री उपलब्ध करवाया हुआ है. डेंगू के लक्षण नजर आते ही मरीजों को तुरंत सरकारी अस्पतालों में जाना चाहिए.’

अक्सर लोग ज्यादा खर्च की वजह से डेंगू के टेस्टों से बचते हैं. इस पर डॉक्टर धारीवाल ने कहा, ‘सराकरी अस्पतालों में डेंगू के सभी टेस्ट बिलकुल फ्री हैं. यही नहीं कोई भी प्रशिक्षित डॉक्टर मरीज को देखकर ही डेंगू के बारे में पुख्ता राय दे सकता है. सिर्फ डॉक्टर को दिखाने से भी डेंगू के बारे में पता चल जाता है. दिल्ली के 33 सरकारी अस्पताल और कुछ निजी अस्पताल डेंगू के फ्री टेस्ट की सेवाएं दे रहे हैं. पहले सामान्य बल्ड टेस्ट होता है जिसके बाद प्लेटलेट और अन्य टेस्ट होते हैं.’

डॉ. धारीवाल के मुताबिक बचाव ही डेंगू का सबसे बड़ा इलाज है. वो कहते हैं, ‘भारत में डेंगू के एक प्रतिशत से भी कम मामलों में मरीजों की मौत होती है, ऐसा तब होता है जब वक्त पर इलाज नहीं मिल पाता. पूरे बदन को ढकने वाले कपड़े पहनकर, अपने घर, दफ्तर और आसपास के इलाके को साफ-सुथरा रखकर डेंगू से पूरी तरह बचा जा सकता है. यदि डेंगू का कोई भी लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अस्पताल में जाएं, वक्त पर इलाज मिलने से डेंगू के 99.5 प्रतिशत से अधिक मरीज ठीक हो जाते हैं.’

डॉ. धारीवाल कहते हैं कि अगस्त, अक्टूबर और नवंबर के महीनों में लोगों को खूब पानी पीना चाहिए और दिन में मच्छरों से खुद को बचाकर रखना चाहिए. डेंगू के मच्छर को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता इसलिए सभी मच्छरों से बचाव ज़रूरी है. ज्यादार लोग दिन के वक्त में ऑफिस में होते हैं इसलिए ऑफिस में मच्छर न हों इस बात का भी पूरा ख्याल रखने की जरूरत है.

सरकारी अस्पताल में करवाए टेस्ट

डेंगू के टेस्ट सरकारी अस्पतालों में बिलकुल फ्री है. निजी अस्पतालों में इनकी अलग-अलग दरें हैं. उदारण के तौर पर लाल पैथलैब में प्लेटलेट काउंट टेस्ट 110 रुपये में होता है जबकि एनएस1 एंटीजैन टेस्ट 2000 रुपये और एंटीबॉडी टेस्ट 1560 रुपये में होता है. एंटीबॉडी और एंटीजैन टेस्ट दोनों एक साथ 3300 रुपये में होते हैं. यानि लाल पैथलैब में दिल्ली में डेंगू के लिए सभी जरूरी टेस्ट करवाने पर 3410 रुपये खर्च होते हैं जबकि अन्य पैथ लैबों में यह सभी टेस्ट लगभग 2 हजार रुपये में हो जाते हैं. हालांकि जिन महीजों को डेंगू होने का शक है और वो टेस्ट के खर्चे से डर रहे हैं उन्हें तुरंत सरकारी अस्पताल या किसी भी प्रशिक्षित डॉक्टर के पास जाना चाहिए. डॉक्टर लक्षण देखकर ही डेंगू के बारे में बता सकते हैं और अच्छे डॉक्टर बहुत जरूरी होने पर ही टेस्ट के बारे में लिखते हैं.

गैर जरूरी टेस्ट भी लिख सकते हैं डॉक्टर

सामान्य तौर पर लक्षणों से ही डेंगू होने का पता चल जाता है और इसके बाद ही जरूरी होने पर डॉक्टर ब्लड टेस्ट लिखते हैं. निजी अस्पतालों में डेंगू के टेस्ट काफी खर्चीले हैं और मरीज इन टेस्टों से बचते हैं. लेकिन डॉक्टर के टेस्ट लिखने के बाद टेस्ट कराना मरीज की मजबूरी हो जाता है. बेहतर यह है कि लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में जाया जाए. कुछ संगठन यह भी मांग कर रहे हैं कि डेंगू फैलने के मामले बढ़ने की स्थिति में सरकार को दिशा निर्देश जारी करके डेंगू टेस्ट की कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए. हालांकि अभी सरकार इस ओर कोई कदम उठाती दिख नहीं रही है. डेंगू के नाम पर लुटने से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि अपने घर, दफ्तर और आसपास के वातावरण को साफ-सुथरा रखा जाए और लक्षण दिखने पर सरकारी अस्पताल में टेस्ट करवाया जाए.

प्लेटलेट्स कम होना डेंगू नहीं

डेंगू के मामले बढ़ने की खबरें आने के बाद लोगों में इसका खौफ पैदा हो गया है और प्लेटलेट्स कम होने पर भी लोग अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं जबकि प्लेटलेट्स कम होना से डेंगू नहीं होता है बल्कि डेंगू के कारण प्लेटलेट्स कम हो जाते हैं. अन्य कारणों से भी ब्लड में प्लेटलेट्स कम हो सकते हैं. डॉक्टरों का मानना है कि ब्लड में प्लेटलेट्स कम होने के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों में से 80 फीसदी के प्लेटलेट्स खुद ठीक हो सकते हैं लेकिन डेंगू के खौफ के कारण वो अस्पताल में भर्ती होने में ही अपनी भलाई समझते हैं. प्लेटलेट्स 40 हजार से कम हों तब ही अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति आती हैं और यह किसी भी कारण से कम हो सकते हैं. लेकिन डेंगू का खौफ लोगों के दिल में इतना बैठ गया है कि 90 हजार प्लेटलेट्स हो जाने पर भी वो अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं. डेंगू का खौफ दिखाकर कई अस्पताल और पैथ लैब संचालक अंधी कमाई भी कर रहे हैं. जयपुर के एसएमएस अस्पताल के मेडिसिन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. पीडी खंडलेवाल कहते हैं, ‘डेंगू के बारे में सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि रक्त में प्लेटलेट्स कम होने से डेंगू होता है जबकि तथ्य यह है कि डेंगू होने से प्लेटलेट्स कम होती हैं, डेंगू न होने पर भी अन्य कारणों से प्लेटलेट्स कम हो सकती है. आजकल ऐसी दवाइयां उपलब्ध हैं जिनसे रक्त में प्लेटलेट्स की कमी को नियंत्रित किया जा सकता है.’

इस बार कम खतरनाक है डेंगू का वायरस

डेंगू तीन प्रकार का होता है. सामान्य डेंगू में बुखार आता है. डेंगू हेमरेजनिक में मरीज के नाक, कान, मुंह से खून निकलता है व प्लेटलेट कम होने लगते हैं तथा तीसरे प्रकार का डेंगू शॉक सिंड्रोम है, इसमें मरीज का ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. इस रोग को फैलाने वाले मादा एनाफिलीज मच्छर का लार्वा गंदे पानी में पनपता है. वहीं साफ पानी में पनपने वाला एडीस मच्छर ज्यादा खतरनाक है. इसके काटने से डेंगू होता है. दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइनियरी साइंसेज में डेंगू के वायरस की जैनेटिक सीक्वेंसिंग से पता चला है कि इस बार फैले ये वायरस कम खतरनाक हैं. इस साल अधिकतर मरीजों में टाइप 1 जबकि कुछ में टाइप 3 वायरस पाया गया है. अधिक तेजी से डेंगू फैलाने वाले टाइप 2 तथा टाइप 4 वायरस के केस अभी तक सामने नहीं आए हैं.  लेकिन इसके बावजूद इस मामले में लापरवाह नहीं हुआ जा सकता. हाल ही में स्वस्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने डेंगू पर सलाह देते हुए कहा था, ‘मच्छरों के काटने की आशंका कम करने के लिए स्कूली छात्रों को पूरी बाजू  वाली शर्ट और पैंट पहनने की अनुमति दी जानी चाहिए. ये छात्रों व युवाओं को मच्छरों के काटने से बचा सकती हैं क्योंकि मच्छरों के काटने से ही डेंगू की बीमारी फैलती है.’

भारत में डेंगू बुखार

डेंगू भारत में भयंकर स्वास्थ्य संबंधी समस्या बनता जा रहा है. यूं तो 19वीं शताब्दी से ही भारत में डेंगू के मामले आते रहे हैं लेकिन व्यापक स्तर पर डेंगू के मामले 1987 के बाद से ही रिकार्ड किए गए हैं. 1996 में पहली बार डेंगू की भयावह तस्वीर भारत में सामने आई थी जब दिल्ली, लखनऊ और उत्तर प्रदेश के कई अन्य इलाकों में डेंगू के मामले सामने आए थे. हालांकि साल 2006 में दिल्ली और पुणे में सामने आए डेंगू के मामलों ने पहली बार देश को हिलाया. डेंगू से एम्स के छात्र की मौत ने तो पूरे देश को हिला दिया था. इसके बाद केरल में साल 2008 में व्यापक स्तर पर डेंगू के मामले सामने आए. हालांकि डेंगू के सभी मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते हैं. उदाहरण के तौर पर साल 2010 में डेंगू के मामलों के आंकड़ों वास्तविक मामलों से कम थे क्योंकि सभी मरीजों पर तुरंत प्लेटलेट काउंट नहीं किया गया था. साल 2010 में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में कुल 293868 डेंगू बुखार के मामले आए जिनमें 1896 लोगों की मौत हो गई. यानि .65 प्रतिशत मरीजों ने दम तोड़ दिया. साल 2006 में भारत में डेंगू बुखार के दस हजार से अधिक मामले सामने आए थे यानि प्रत्येक एक लाख नागरिकों में से 2.29 नागरिक डेंगू बुखार के शिकार हुए थे.

डेंगू का अर्थ व्यवस्था पर भी व्यापक असर होता है

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल डेंगू की वजह से कम से कम 30 मिलियन डॉलर (लगभग 160 करोड़ रुपये) का नुकसान होता है. डेंगू के एक मरीज पर अस्पताल का कुल खर्च औसतन 25 हजार रुपये आता है जबकि निजी अस्पतालों में यह लगभग चार गुना ज्यादा है. डेंगू बुखार आने पर मरीज कम से कम एक सप्ताह में ठीक होता है जिस कारण अस्पताल क्षमताओं से अधिक भर जाते हैं और कार्यस्थल पर भी कर्मचारियों की उपस्थिति कम रहती हैं.

सरकार ने लुटा दिए हजारों करोड़ लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही

भारत में साल 2006 में डेंगू के महामारी बनने के बाद सरकार ने आनन-फानन में वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था जिसके तहत वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए हर साल सैंकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. डेंगू, मलेरिया, चिकगूनिया, काले बुखार, फिलारिया और जापानी बुखार की रोकथाम के लिए सरकार ने साल 2007 में नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था. प्रोग्राम के शुरू होने के बाद से इन रोगों के नाम पर कई हजार करोड़ रुपये तो खर्च किए जा चुके हैं लेकिन अभी तक इन रोगों पर पूरी तरह से काबू नहीं पाया जा सका. आंकड़ों पर नज़र डाले तो सरकार का खर्चा और मरीजों की संख्या दोनों ही लगातार बढ़ती जा रही है.

नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के आंकड़ों के मुताबिक साल 2007 में भारत में डेंगू के कुल 5554 मामले सामने आए और 69 मरीजों की मौत हो गई, साल 2008 में 12561 मामले सामने आए और 80 मरीजों की मौत हो गई, साल 2009 में 15535 डेंगू के मामले सामने आए और 96 मरीजों की मौत हो गई जबकि साल 2010 में 28292 डेंगू के मामले रिपोर्ट किए गए और 110 की मौत हुई. साल 2011 में कुल 18860 मामले सामने आए और 169 की जान चली गई जबकि 26 सितंबर 2012 तक देश भर में डेंगू के कुल 17104 मामले सामने आए जिनमें 100 की मौत हुई.

सूचना के अधिकार के जरिए आरटीआई जर्नलिस्ट अफरोज आलम साहिल द्वारा प्राप्त जानकारी के मुताबिक साल 2007-08 में सरकार ने वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के कार्यक्रमों के लिए कुल 399.50 करोड़ रुपये जारी किए थे जिनमें से 386.36 करोड़ रुपये विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए गए. साल 2008-09 में सरकार ने वेक्टर जनित रोगों के लिए 472.25 करोड़ रुपये मंजूर किए जिनमें से मात्र 297.62 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके. साल 2009-10 में सरकार ने 442.25 करोड़ रुपये मंजूर किए थे जबकि कार्यक्रमों पर कुल 338.87 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. साल 2010-11 के लिए सरकार ने 418 करोड़ रुपये मंजूर किए थे जिनमें से 408.41 करोड़ रुपये विभाग ने विभिन्न कार्यक्रमों पर खर्च कर दिए. वित्त वर्ष 2011-12 के लिए वेक्टर जनित रोगों की रोकथाम के लिए 520 करोड़ रुपये का बजट पास हुआ जिनमें से 511.41 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

डेंगू के 80 फीसदी मरीज शुरुआत में इसे लेकर लापरवाह रहते हैं और हालात बिगड़ने पर ही अस्पताल का रुख करते हैं. उन्हें लगता है कि वो तेज बुखार से पीड़ित हैं जो जल्द ही स्वतः ठीक हो जाएगा और इस चक्कर में अस्पताल जाने से बचते हैं. शरीर में दर्द और कमजोरी के कारण डेंगू को सामान्य वायरल बुखार भी मान लिया जाता है. डेंगू के दौरान ब्लड में प्लेटलेट काउंट भी लगातार गिरता रहता है. सामान्यतः ब्लड में प्लेटलेट काउंट ढाई लाख के आस पास होता है जो डेंगू होने पर तेजी से गिरता है और 70 हजार से नीचे भी चला जाता है. 50 हजार से नीचे गिरने पर यह और भी तेजी से गिरता है और 40 हजार से कम हो जाने पर मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती करवाना चाहिए. बल्ड प्लेटलेट काउंट 30 हजार से कम होने पर डॉक्टर प्लेटलेट इन्फ्यूज करते हैं. 30 हजार से कम होने पर डेंगू शॉक की स्थिति बनती हैं और ब्लड प्रैशर कम होने के कारण मरीजों की मौत हो जाती है.

इस साल तमिलनाडु में सबसे ज्यादा जानें ले रहा है डेंगू

साल 2006 में जब डेंगू व्यापक स्तर पर फैला था तब सबसे ज्यादा मामले दिल्ली में सामने आए थे. अकेले दिल्ली में ही देश के 28 प्रतिशत डेंगू के मामले सामने आए थे. इसके बाद सबसे ज्यादा 15 प्रतिशत मामलें राजस्थान में सामने आए थे. दिल्ली में सामने आए कुल 3366 मामलों में 65 मरीजों की मौत हो गई थी. इस साल ऐसी ही स्थिति तमिलनाडु में है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 26 सितंबर 2012 तक तमिलनाडु में डेंगू के कुल 5376 मामले सामने आए थे और 39 मरीजों की जान जा चुकी थी. जबकि दिल्ली में आज तक कुल 676 मामले सामने आए हैं और कुल दो मौतें हुई हैं. इस साल कर्नाटक में भी हालत भयावह हैं और 2403 मरीजों में से कुल 21 की मौत हो चुकी है. केरल भी हालात बदतर हैं, यहां डेंगू 11 लोगों की जान ले चुका है.

(This story was first published on www.dainikbhaskar.com)

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