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Reading: सूचना का अधिकारः डर से क्यों कांप रही है सरकार
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BeyondHeadlines > India > Politics > सूचना का अधिकारः डर से क्यों कांप रही है सरकार
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सूचना का अधिकारः डर से क्यों कांप रही है सरकार

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published October 12, 2012 1 View
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7 Min Read
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

शुक्रवार को सूचना के अधिकार कानून को लागू हुए सात साल पूरे हो गए. इस दौरान इस कानून ने कई बड़े घोटालों को खोला. जनता तक वो जानकारियां पहुंची जो अब तक सरकारी दफ्तरों की फाइलों में धूल चाटती रहती थी.

जानकारी जागरुकता पैदा करती है. जागरुकता जनता को सशक्त करती है और सशक्त जनता किसी शासक को बर्दाश्त नहीं होती. सूचना के अधिकार कानून ने समाज को सशक्त करने में अहम भूमिका निभाई.

सशक्त जनता शासक वर्ग के लिए खौफ़ बन जाती है. सरकार के मन में पैदा हुआ यह खौफ़ शुक्रवार को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान में साफ नज़र आया. सूचना के अधिकार के सात वर्ष पूरे होने पर दिल्ली में हुए एक अधिवेशन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने आरटीआई की तारीफ कम आलोचना ज्यादा की.

देश के प्रधानमंत्री ने कहा कि आरटीआई कानून का इस्तेमाल कुछ लोग व्यक्तिगत जानकारियां हासिल करने और अधिकारियों को परेशान करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं. प्रधानमंत्री ने कहा कि अब तक देश में दस लाख लोगों ने आरटीआई कानून का इस्तेमाल किया है और मात्र 4 प्रतिशत मामले ही केंद्रीय सूचना आयोग तक पहुंचे जिससे जाहिर है कि आरटीआई कानून सही काम कर रहा है.

आरटीआई का गुणगान करते-करते प्रधानमंत्री ने सरकार के मन मैं पैदा हुए खौफ को भी अभिव्यक्त कर दिया. प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ लोग बहुत ज्यादा जानकारियां मांगते है जिनका समाज के हित में कोई उपयोग नहीं होता. इन जानकारियों का उद्देश्य बेवजह अधिकारियों और सरकारी कारिंदों को परेशान करना होता है. पीएम ने यह भी कहा कि कई बार बेहद निजी जानकारियां मांगी जाती हैं, ऐसी जानकारियों का भी कोई सामाजिक सरोकार नहीं होता.

तेजी से निजीकरण की ओर बढ़ रही सरकार के मुखिया ने निजी कंपनियों के मन में पैदा हुए डर को भी जाहिर किया. पीएम ने कहा कि सरकार को इस बात की चिंता है कि निजी-सार्वजनिक उपक्रमों के सामने जानकारी साझा करने का संकट होगा. निजी कंपनियां सारी जानकारी सार्वजनिक करना नहीं चाहेगी. इस संबंध में भी नया कानून बनाने पर सरकार विचार कर रही है.

सूचना के अधिकार पर प्रधानमंत्री की इस राय के बाद से ही सूचना के अधिकार के लिए अभियान चलाने वाले देश के प्रमुख आरटीआई कार्यकर्ताओं में रोष है. वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सदस्य कुलदीप नैयर मानते हैं कि सरकार का डर खुलकर सामने आ रहा है. अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए कुलदीप नैयर ने कहा कि 1962 के युद्ध को हुए 50 साल हो गए हैं. इस युद्ध में भारत की शर्मनाक हार के कारणों का पता लगाने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था. मैंने जब आरटीआई के तहत इस कमेटी की रिपोर्ट मांगी तो सरकार की ओर से जानकारी नहीं दी गई. मामला केंद्रीय सूचना आयोग तक पहुंचा जहां से फैसला सरकार के पक्ष में आया. कुलदीप नैयर कहते हैं कि फिलहाल यह मामला हाईकोर्ट में है और उन्हें वहां से भी कोई खास उम्मीद नहीं है. वो अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए वो कहते हैं कि सरकार खौफ में है, सरकार को सूचना के अधिकार की ताकत का अहसास हो गया है. सरकार अब इस कानून पर लगाम कसने का प्रयास कर रही है. प्रधानमंत्री ने संकेत दिया है कि अब वो इस अधिकार पर लगाम कसेंगे यह आम जनता के लिए डर की बात है, पहले जनता ने इस अधिकार को पाने के लिए संघर्ष किया था, अब इस अधिकार को बचाने के लिए दोबारा संघर्ष करना पड़ेगा.

पीएम के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए सामाजिक अधिकार कार्यकर्ता अरुणा राय ने कहा, ‘हमे पीएम के बयान में इस कानून को खत्म करने की रणनीति दिखती है, हम इसकी आलोचना करते हैं, सरकार इस पर विचार कर रही है कि इस कानून की शक्ति को कैसे खत्म किया जाए.’

सरकार हर चीज का निजीकरण कर रही है, पानी, बिजली, इंश्यूरेंस सबका निजीकरण कर रही है फिर प्राइवेट सेक्टर को पार्दर्शिता के दायरे से बाहर कैसे रखा जा सकता है. सरकार हर रूप में जनता के पैसे का इस्तेमाल कर रही है, जनता के पास अपने पैसे का हिसाब मांगने का अधिकार है और यह अधिकार किसी भी सूरत में बचा रहना चाहिए. अगर सरकार जनता से इस अधिकार को छीनने का प्रयास करेगी तो फिर और भी बड़ा आंदोलन करना पड़ेगा.

डरी हुई सरकार नहीं चाहती कि जनता के पास गोपनीय जानकारी नहीं पहुंचे. प्रधानमंत्री ने निजता के अधिकार का हवाला दिया है लेकिन सूचना के अधिकार से किसी का कोई अधिकार नहीं छीना जा रहा है, जनता सिर्फ वो जानकारियां मांग रही है जिन पर उसका हक है. किसी भी स्तर के कर्मचारी की कोई शक्ति इस अधिकार के तहत नहीं छीनी जा रही है. दरअसल सशक्त जनता को सरकार बर्दाश्त नहीं कर पा रही है.

अरुणा कहती हैं, ‘एक पीआईओ के पास महीने में मुश्किल से दस याचिकाएं पहुंचती हैं, सीधे तौर पर जनता से जुड़े मामलों के विभाग में यह संख्या ज्यादा हो सकती है, सरकार तो किसी भी तरह से जनता से यह अधिकार छीनना चाहती है. सूचना के अधिकार को बचाए रखने के लिए हमारी लड़ाई जारी है.’

पीएम के नाम संदेश देते हुए अरुणा ने कहा, ‘अगर वो इस देश को सुरक्षित रखना चाहते हैं और भ्रष्टाचार से मुक्त रखना चाहते हैं तो सूचना के अधिकार को कमजोर न करें, अगर सूचना के अधिकार को कमजोर किया गया तो यह देश एक बड़ा और व्यापक आंदोलन देखेगा.’

 

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