India

योग गुरु की ‘शिष्टता’ के दर्शन कराते ये ‘बोल अनमोल’

Tanveer Jafri for BeyondHeadlines

‘योग गुरु’ बाबा रामदेव शायद इस देश के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो अक्सर बड़ी आसानी से यह कहते सुने जाते हैं कि देश की 121 करोड़ जनता उनकी अनुयायी है. गोया पूरा देश उनके साथ है. वे तो सैकड़ों देशों में भी अपने समर्थक होने की बात करते हैं. हालांकि उनकी इन बातों में सिवाए अतिशयोक्ति के और कुछ नहीं है. परंतु यदि उनकी बात कुछ पल के लिए मान भी ली जाए तो सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे जि़म्मेदार व इतना व्यापक जनाधार रखने वाले व्यक्ति को अपने मुंह से किसी प्रकार का अपशब्द निकालना या अभद्र टिप्पणी करना शोभा देता है?

स्वयं को सन्यासी, योगी व ब्रह्मचारी आदि न जाने क्या-क्या बताने वाले ‘योग गुरु’ कभी-कभार ऐसी अभद्र अव्यवहारिक व अशिष्ट टिप्पणी कर बैठते हैं जिससे न केवल उनके गंभीर समर्थक आहत होते हैं बल्कि उनकी अशोभनीय टिप्पणियों से स्वयं बाबा रामदेव की सलाहियत, उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उनके विचारों आदि का भी अंदाज़ा लग जाता है.

देश के संत समाज के एक बड़े वर्ग व योग शिक्षा से जुड़े तमाम सम्मानित व गंभीर सदस्यों का तो यहां तक मानना है कि इस प्रकार राजनीति में सक्रिय होना, योग की आड़ में अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों का विस्तार करना तथा अपने भक्तों व अपने मरीज़ों के दम पर सत्ता तक पहुंचने की कोशिश करना किसी साधू-संत, ब्रह्मचारी या योग गुरु के लक्षण क़तई नहीं हैं.

और खासतौर पर जिस प्रकार की जहालत भरी बेतुकी व अशिष्ट भाषा उनके मुंह से अक्सर सुनने को मिलती हैं कम से कम ऐसी अभद्र बातें किसी ‘योग गुरु’ के मुंह से निकलने वाली बातें तो आखिर नहीं कही जा सकती, क्योंकि योग विद्या जानने वाला तथा उसे अपने जीवन में आत्मसात करने वाला कोई व्यक्ति अशिष्ट, अभद्र तथा बेहूदा नहीं हो सकता न ही उसके मुंह से कोई ऐसी बात निकल सकती है जोकि अन्य व्यक्ति को आहत करने वाली हो. अपने चेहरे पर नक़ली मुस्कुराहट रखने वाला तथा मुंह से ज़हर उगलने वाला व्यक्ति योगी कैसे कहा जा सकता है?

बाबा रामदेव ने पिछले दिनों सोनिया गांधी के हरियाणा के दौरे के बाद एक ऐसी अश्लील व शर्मनाक टिप्पणी कर डाली जिसकी उम्मीद ‘योग गुरु’ तो क्या किसी आपराधिक प्रवृति वाले अशिष्ट व्यक्ति या राजनीतिज्ञ से भी नहीं की जा सकती. गत् दिनों सोनिया गांधी ने जींद जि़ले के सच्चाखेड़ा नामक उस गांव का दौरा किया जहां एक दलित लडक़ी के साथ दबंग युवकों द्वारा बलात्कार किया गया और बाद में बलात्कार पीडि़त किशोरी ने आत्महत्या कर ली. सोनिया गांधी यह ख़बर सुनकर पीड़ित परिवार से हमदर्दी जताने वहां पहुंचीं. वहीं पत्रकारों द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में सोनिया गांधी ने कहा कि इस तरह तेज़ी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाएं शर्मनाक हैं. बलात्कार सिर्फ हरियाणा में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बढ़े हैं. और यह बात एक चिंता का विषय है.

अब ज़रा गौर कीजिए कि सोनिया गांधी के इस बयान में ग़लत क्या है? किस राज्य में और किस धर्म व जाति की महिलाओं के साथ बलात्कार नहीं होता? बलात्कार के साथ हत्या किए जाने की घटनाएं भी इस देश में होती रहती हैं. परंतु जब मामला कहीं अल्पसंख्यक या दलित समाज की महिला से जुड़ा होता है तो उसे मीडिया कुछ ज़्यादा ही महत्व देने लगा जाता है. ऐसा भी नहीं कि तथाकथित ऊंची जाति की महिलाएं बलात्कार की शिकार नहीं होतीं. और यह भी सही है कि बलात्कार की घटनाएं सिर्फ हरियाणा में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी होती हैं.

परंतु योग गुरु बाबा रामदेव को हरियाणा में दिया गया सोनिया गांधी का वक्तव्य नहीं भाया. और उन्होंने पलटकर सोनिया गांधी से ही पूछ लिया कि अगर उनकी बेटी से बलात्कार होता तो वे क्या करतीं? ऐसी ही निंदनीय व अभद्र टिप्पणी एक बार उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की पूर्व अध्यक्षा रीता बहुगुणा ने मायावती सरकार के समय उत्तर प्रदेश में हुई एक बलात्कार की घटना का हवाला देते हुए एक सार्वजनिक सभा के दौरान की थी. उस समय मायावती के समर्थकों ने रीता बहुगुणा के घर में आग लगा दी थी. परंतु रीता बहुगुणा क्षेत्रीय स्तर की नेता थीं उनका क़द रामदेव के क़द के बराबर नहीं है. न ही वह ऐसा दावा करती थीं कि देश की 121 करोड़ की जनता उनके साथ है.

समय-समय पर दिग्विजय सिंह द्वारा बाबा रामदेव के विषय में की जाने वाली अभद्र टिप्पणी व उनके द्वारा अपनी टिप्पणी में प्रयुक्त की जाने वाली शब्दावली को भी देश में कोई पसंद नहीं करता. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी भी कई बार दिगिवजय सिंह के बयानों से अपना पल्ला झाड़ चुकी है. परंतु जब स्वयंभू रूप से देश में सबसे बड़ा जनाधार रखने वाला व्यक्ति अपने मुंह से यह कहे कि सोनिया गांधी से मैं पूछना चाहता हूं कि अगर उनकी बेटी से बलात्कार होता तो वे क्या करतीं. तो ऐसा लगता है कि या तो ऐसे व्यक्ति की सोच व फिक्र पूरी तरह दूषित है या फिर वह शिष्टाचार, प्रेम, सद्भाव तथा तमीज़ व तहज़ीब की भाषाओं का ज्ञान नहीं रखता.

वैसे भी कथित ‘योग गुरु’ अपने मुंह से अपनी महिमा स्वयं चाहे जितनी बखान करते रहें परंतु सच्चाई तो यह है कि उनके व्यक्तितव, उनके हाव-भाव तथा उनकी वाणी में कहीं भी सच्चाई, आत्मविश्वास व शिष्टाचार की झलक क़तई दिखाई नहीं देती. बजाए इसके उनकी वाणी से अहंकार, घमंड, झूठा राजनैतिक पूर्वाग्रह तथा जहालत ज़रूर बरसती दिखाई देती है.

अभी गत् वर्ष ही बिहार के पश्चिम चम्पारण ज़िले के बेतिया शहर में जब पत्रकारों ने उनसे यह सवाल किया कि क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे. उस पर ‘योग गुरु’ ने तपाक से जवाब दिया था कि जब भारत के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मेरे चरणों में आकर बैठते हों फिर आखिर मुझे प्रधानमंत्री बनने की क्या ज़रूरत?

रामदेव की इसी झूठी व मक्कारी पूर्ण टिप्पणी ने उनकी सलाहियत का उसी समय परिचय करा दिया था. उसके पश्चात तो वे बावजूद इसके कि देश की 121 करोड़ जनता का अपने साथ होने का दम भरते हैं फिर भी कई अपमानजनक हालात का सामना करते रहे हैं. कहीं उनके मुंह पर कालिख फेंकी जा चुकी है तो कहीं किसी सिपाही द्वारा उनकी ओर जूता उछाल कर फेंका गया है.

ग्वालियर में घटी इस घटना ने एक सिपाही रामदेव से इसलिए नाराज़ हो गया था क्योंकि वह किसी रोग से पीडि़त था और अपनी यूनिट से सीमित समय की छुट्टी लेकर बाबा रामदेव के योगा कैंप में अपने मर्ज़ से संबंधित योग सीखने आया था. परंतु उसने कैंप में आकर देखा कि आयोजकों द्वारा उन्हें योग सिखाने व मर्ज़ भगाने के नाम पर बुलाया गया है परंतु बाबा जी द्वारा वहां बातें सिर्फ राजनीति की की जा रही हैं.

यही राजनैतिक भाषण सुनते-सुनते उसकी छुट्टी का समय समाप्त हो गया और आखिरकार अपनी यूनिट में वापस जाने  से पहले उसने बाबा रामदेव की ओर अपना जूता गुस्से में उछाल कर फेंक दिया. 121 करोड़ लोगों के समर्थन का दम भरने वाले इन ‘योग गुरु’ को दिल्ली के रामलीला मैदान में औरतों की पोशाक में अपने ही देश की पुलिस से बचकर व लुकछुप कर भागने की कोशिश करते हुए तो सभी देख चुके हैं.

ऐसे व्यक्ति द्वारा इस प्रकार की अभद्र, गैर जि़म्मेदाराना व अशिष्ट टिप्पणियां किए जाने का आखिर औचित्य क्या है?  क्या उनके ऐसे बयान उनकी हकीक़त को और अधिक उजागर नहीं करते?

वैसे भी बाबा रामदेव भले ही विदेशों में जमा काले धन के मुद्दे के नाम पर आम लोगों को अपने साथ जोडऩे का प्रयास क्यों न कर रहे हों. परंतु उनका अपना व्यक्तित्व भी कम विवादित व संदिग्ध नहीं है. उनके सबसे परम सहयोगी बालकृष्ण को पुलिस जेल में डाल चुकी है. बिना किसी प्रमाण के पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकती थी. गोया एक संदिग्ध नेपाली मूल का व्यक्ति ‘योग गुरु’ का दाहिना हाथ बना हुआ है.

अपने समर्थकों के हाथों अपने उत्पाद बेचने व अपने व्यापार को बढ़ावा देने का इल्ज़ाम इन पर लगता ही रहता है. इतना ही नहीं अपने गुरु के लापता हो जाने के लिए भी गुपचुप रूप से तमाम लोग बाबा पर ही उंगली उठाते रहते हैं. इनकी फार्मेसी में बनने वाली दवाईयों पर भी संदेह ज़ाहिर किया जा चुका है. इनके बही-खाते व इन्हें दान में मिलने वाली अकूत धन-दौलत पर भी तमाम लोग सवाल खड़े करते रहते हैं. गोया अपने-आप में संदिग्ध, विवादित तथा तमाम लोगों के निशाने पर रहने वाला व्यक्ति यदि किसी प्रकार की अभद्र व अशिष्ट बातें करे तो यह किसी भी कीमत पर मुनासिब नहीं लगता. वास्तव में यदि ‘योग गुरु’ में शिष्टता, विनम्रता तथा लोगों को अपने आप में आकर्षित करने की सलाहियत होती तो उनके मुंह से कभी भी ऐसी अभद्र टिप्पणी हरगिज़ नहीं निकलती.

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