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सपा सरकार की वादा-खिलाफी के खिलाफ विधानसभा पर धरना

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : रिहाई मंच द्वारा विधान सभा धरना स्थल लखनऊ में आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने और सांप्रदायिक दंगों की जांच की मांग को लेकर हुए धरने में राजनीतिक दलों, उलेमाओं, सामाजिक संगठनों ने सपा सरकार पर वादा-खिलाफी का आरोप लगाते हुए कहा 2014 में मुसलमान सपा को सबक सिखाएंगे. पिछले दिनों दस साल जेल में रहने के बाद निर्दोष बरी हुए कानपुर के मुमताज़ समेत धरने में पूरे सूबे से आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों तथा इस सरकार में हुए दंगों के पीडि़त परिवार भी मौजूद थे.

धरने को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद व माकपा नेता सुभाषिनी अली ने कहा कि सपा सरकार की सांप्रदायिक मानसिकता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि उसने 1992 में कानपुर में हुए दंगे में एसएसपी रहते हुए जिस एसी शर्मा ने खुलेआम दंगाइयों को संरक्षण दिया, जिस पर जांच के लिए आईएस माथुर कमीशन गठित की गई थी, उसे ही डीजीपी बना दिया.

पूर्व सांसद ने कहा कि पूरे सूबे में सैकड़ों की तादाद में मुस्लिम युवक सालों जेलों में रहने के बाद आतंकवाद के आरोप से बरी हुए हैं जिनकी पुर्नवास व मुआवजे की जिम्मेवारी सरकार को लेनी होगी.

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित संदीप पांडे ने कहा कि मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी नीतिगत स्तर पर सरकारों ने करवाई है, इसलिए इन मसलों पर अदालतों के अंदर और सड़क पर भी लड़ना होगा. जहां तक निर्दोषों की रिहाई की बात है तो उनकी जिंदगी तबाह करने के बाद उन्हें छोड़ने पर सरकार को तो मुआवजे के बतौर बेकसूरों को पद्मविभूषण देना ही चाहिए.

इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने सवाल उठाया कि विधानसभा चुनाव में मुलायम ने अपने घोषण पत्र में निर्दोषों का वादा किया था लेकिन उसी कुनबे के एक नेता कह रहे है कि अब किसी को नहीं छोड़ा जाएगा, जो सपा द्वारा मुसलमानों को बेवकूफ समझने की उनकी मानसिकता को दर्शाता है.

इसी बात को आगे बढ़ाते हुए मुसलिम मजलिस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खालिद साबिर ने कहा कि आज ज़रुरत है कि मुसलमान से इस वादा खिलाफी का जवाब तमाम राजनीतिक संगठनों के साथ एक जुट होकर दें, क्योंकि यह सिर्फ मुस्लिमों का सवाल नहीं है, बल्कि यह जम्हूरियत का सवाल है.

सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री ओमकार सिंह ने कहा कि जिस सरकार के आठ महीने में दस दंगे हो गए हों उसे सरकार में बने रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुऐब ने कहा कि आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने पर यदि सरकार ईमानदार होती तो वह तारिक-खालिद की फर्जी गिरफ्तारी पर गठित आरडी निमेष आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक करती. लेकिन ऐसा करने के बजाय सरकार ने अपने बयानबाजी से ऐसे तत्वों को मौका मुहैया कराया कि वो अदालत में चले जाएं और इस मसले पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो जाए.

आवामी काउंसिल के राष्ट्रीय महासचिव असद हयात ने कहा कि धारा 321 दंड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत राज्य सरकार की प्रार्थना पत्र पर सेशन कोर्ट विवेकानुसार यह तय करता है कि मुक़दमा वापसी की प्रार्थना को स्वीकार किया जाय कि नहीं, यह प्रश्न जनहित याचिका का विषय नहीं है. माननीय न्यायधीशों ने यदि यह कहा है कि आज इन्हें छोड़ते हैं तो कल उन्हें पद्म विभूषण भी देंगे विषय से हटकर की गई टिप्पणी है, जो निचली अदालत के किसी भी संभावित फैसले को प्रभावित करती है. अलबत्ता यह टिप्पणी रिकार्ड पर नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता पीयूएचआर नेता सतेन्द्र सिंह ने निर्दोषों के सवाल पर हाईकोर्ट के जजों द्वारा की गई टिप्पड़ी को साम्प्रदायिक जेहनियत और न्यायालय की गरिमा के विरुद्ध बताते हुए कहा कि सरकार बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को नहीं छोड़ना चाहती अगर चाहती तो वो अपने महाधिवक्ता को इस याचिका में अपना पक्ष रखने के लिए भेजती जो उसने नहीं किया.

धरने में रामपुर सीआरपीएफ कांड में आरोपी बनाए गए कुंडा प्रतापगढ़ से कौसर फारुकी के भाई अनवर, मुरादाबाद के जंगबहादुर के बेटे शेर खान, रामपुर के शरीफ के भाई शाहीन ने कहा कि जिस तरह मुस्लिम युवक दस-दस साल तक जेलों में रहने के बाद बेगुनाह साबित होते है वैसे में सरकार को चाहिए कि रामपुर घटना की सत्यता पर सीबीआई जांच कराए. सपा सरकार में मई 2012 में उठाए गए शकील के पिता मोहम्मद यूसुफ अली, भाई इशहाक, जैनब, खदीजा, और आमिना ने शकील की गिरफ्तारी पर जांच आयोग के गठन के मांग के साथ यूपी एटीएस द्वारा उनके परिवार का महीनों तक चले उत्पीड़न पर सवाल उठाया. वहीं संकटमोचन मामले मे उम्र कैद की सजा पाए फरहान के भाई वकार ने पूरे मामले की पुर्नविवेचना की मांग की.

धरने में खालिद के भाई शाहिद और तारिक के चचा फैयाज व ससुर असलम ने कहा कि सरकार के पास जब निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट है, जिसमें हमारे बच्चों को बेगुनाह बताया गया है तो सरकार उसे क्यों नहीं जारी कर रही है.

धरने को मौलाना जहांगीर आलम कासमी, एडवोकेट रणधीर सिहं सुमन, ताहिरा हसन, जैद अहमद फारुकी, अजय सिंह, मोहम्मद आफताब, मोहम्मद आफाक, कमरुद्दीन कमर, राघवेन्द्र प्रताप सिंह, आरिफ नसीम, मोहम्द शमी, सलीम राईनी, अहमद हुसैन, हारिस सिद्दीकी, अब्दुल जब्बार, जनार्दन गौड़, अहमद अली, सूफी उबैदुर्ररहमान, सादिक, इसरारउल्ला सिद्दीकी, केके वत्स, विवके सिंह, अरशद
अली, राजीव यादव इत्यादि ने संबोधित किया. धरने का संचालन शहनवाज़ आलम ने किया.

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