Pravin Kumar Singh for BeyondHeadlines
दीपावली आ रहा है. चिंटू-मिंटू खुशी से उछलने लगे. दीपावली इनके लिए डबल धमाका है. एक तरफ लड्डू, रसगुल्ला, बरफी, दूसरी तरफ तड़ाक-भड़ाक करने का मजा. वो मनाते हैं कि रोज़ दीपावली आये.
दीपावली समृद्धि और खुशियों का सौगात लेकर आती है. जुआ खेलना भले ही अनैतिक और गैर कानूनी है, दीपावली में यह शुभ होता है, क्योंकि यह लक्ष्मीजी का मामला है.
घर की साफ़-सफाई करके चिन्टू की मम्मी ने रात भर के लिए दरवाजे को खुला रख छोड़ेगी. दरवाजा बन्द होने पर कहीं लक्ष्मीजी रूठ कर पड़ोसी के यहां न चली जाय. हाय! लक्ष्मीजी से पहले महंगाई की डायन घर में घुस आई.
लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो चिन्टू की मम्मी जैसे नहीं हैं. अब की दीपावली में कम्पनियों ने उनके लिए समृद्धि और खुशी का द्वार तहेदिल से खोल दिया है. किसी कम्पनी का ब्राण्ड एक के साथ एक फ्री, दो फ्री, भारी छूट, फ्री ही फ्री, बम्पर आफर, करोड़पति बनें, सोना जीतें, कार जीतें, मोटर साईकिल जीतें …
चांदी बेचारी का तो कोई वैल्यु ही नहीं है, हर सामान के साथ फ्री मिलती है और चवनप्राश ने तो सबको चांदी खिला-खिला कर चमका दिया है. कम्पनियां तो इतना दरियादिल हो गई हैं कि खूलेआम लूटवाने के लिए सहर्ष तैयार हैं.
इनके विज्ञापन में सुन्दरियां बिंदास अपील करती हैं कि लूट लो… समय कम है… सुन्दरियों के पेशकश पर लुटेरा बनने से भला कौन बच पायेगा? बेरहम पुलिस सरेआम लूटने की घोषणा के बावजूद भी शान्त है. छोडि़ये सुन्दरियों पर लुट जाने की बात. इधर सड़कों पर और मोहल्लों में राहजनी और लूट के काफी समाचार हैं.
दीपावली के मौसम से वातावरण खुशगवार हो गया है. फिर भी लोग बेवजह परेशान हैं कि महंगाई मार रहीं है. भाई अपुन के देश की परम्परा है, मुफ्त में जो मिले सहर्ष ग्रहण करो. कहावत है ‘माले मुफ्त, दिले बेरहम’ इसलिए फ्री में मिले तो अलकतरा भी गटक जाते हैं. अपने यहां रिवाज है कि इंसान दुकान पर जाता है तो घलुआ फ्री अवश्य लेता है. यह आदिकाल से चला आ रहा है.
महंगाई सामान के साथ फ्री मिल रही है तो हाय तौबा क्यों मच रही है. अब सामान में मंहगाई की मात्रा तौलाना और साथ में मुक्त बाजार एवं मुक्त व्यापार की बात करना तो महज़ इकनॉमिक बेवड़ेबाजी है. रसिक बाबू कहते है कि मंहगाई घरवाली का बाहरवाली से भी ज्य़ादा खून जला रही है. सरकार को हर बात में कोसना राजधर्म के विरूद्ध है.
लेकिन जनाब मंहगाई का कृपया फायदा भी देखे. जानते हैं इंसान को जब फेबरेट पकवान मिलता है तो दबा-दबा कर खाता है और तीज-त्यौंहार में फिर क्या पूछना. हम खाने के मामले में मरने-जीने से भी नहीं डरते है. भले तबीयत बिगड़ जाय और दुःखी मन से कडुवा दवा खानी पड़े.
पहले किसी सामान का दाम दुकानदार किलो में बताता था अब पाव में बताता है. हो सकता है कल छटांक, रत्ती या मासा में बताये. इंसान पाव भर खरीदेगा, तो खायेगा ग्राम में. जिससे डाईट फस्ट क्लास रहती है. न डाक्टर का टेंशन, न हकीम की ज़रूरत.
आज काजू और लहसून का दाम समान गति से बढ़ रहा है. लहसून का मेडिसनल वैल्यू तो पता ही है. स्वामीजी कहते है लहसुन खाये सेहत बनाये. इंसान पहले कद्दू, तरोई जानवर को खिलाता था. अब कद्दू की सब्जी भी खाने लगा है और जूस भी पीने लगा. यह कई रोगो में फायदेमन्द है. सेहत के राज का ज्ञान भी मंहगाई में ही छिपा है.
ये चिन्टू-मिन्टू दीपावली में तड़ाक-भड़ाक कर-कर के नाक में दम कर देते थे. इनको लाख मना करो, माने कहां. अब बेचारे पहले हीं मान गये हैं. कह रहे कि ये ‘मंहगाई’ क्या है. क्योंकि जितने में पहले पाच पटाखें मिलते थे उतने में अब एक मिलेगा. पटाखें कम छूटेगे तो प्रदूषण भी कम होगा. यह मंहगाई जनहित के साथ-साथ इको फ्रेंडली भी है.
महंगाई आर्थिक प्रगति का भी द्योतक है. वित्त मंत्री ने सही कहा है कि लोगों के पास पैसा है तो मंहगाई है. चिन्टू के मम्मी का ग़म देश का गम थोड़े है, कि सरकार भी ग़मगीन हो जाय. चलिये सब मिल कर बोले हैप्पी दीपावली, शुभ मंहगाई…
