Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
संवैधानिक और कानूनी रूप से बराबरी का हक़ होने के बावजूद भी देश के कई तबके ऐसे हैं जो भेदभाव और द्वेषपूर्ण व्यवहार का शिकार होते हैं. अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव के मामले रह-रहकर सामने आते रहते हैं.
दिल्ली परिवहन निगम में कार्यरत मोहम्मद वसीम की कहानी भी ऐसी है. मिलेनियम पार्क डीपो में सहायक प्रभारी के पद पर तैनात वसीम को कार्यस्थल पर नमाज़ पढ़ने के कारण निलंबित कर दिया गया था. यही नहीं उन्हें धर्म-सूचक शब्द कहकर बेइज्जत भी किया गया.
मोहम्मद वसीम का गुनाह सिर्फ यह था कि वो कार्यस्थल पर नमाज़ अदा करते थे. वसीम के उत्पीड़न के मामले में सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि जिस अधिकारी ने उनका उत्पीड़न किया उस पर भ्रष्टाचार और कर्मचारियों का उत्पीड़न करने के आरोप पहले भी लगते रहे हैं.
वसीम पर दफ्तर में अनुपस्थित होने और प्रबंधक से बदतमीजी से बात करने का झूठा आरोप लगाकर पहले उन्हें सस्पेंड किया गया और फिर ट्रांस्फर कर दिया गया. मामला जून 2012 का है. लेकिन वसीम ने हार नहीं मानी. वो अल्पसंख्यक आयोग चले गए. अल्पसंख्यक आयोग के आदेश पर हुई विभागीय जांच में वसीम को निर्दोष पाया गया. न सिर्फ उनका निलंबन रद्द किया गया बल्कि उन्हें निंलबित रहने के दौरान की सैलरी भी दी गई.
लेकिन सवाल सिर्फ वसीम के सस्पेंड होने का नहीं है सवाल उस मानसकिता का है जो सरकारी और निजी दफ्तरों में को जकड़ चुकी है. वरिष्ठ अधिकारियों के हाथ कनिष्ठ अधिकारियों का शोषण कोई नई बात नहीं है लेकिन जब शोषण धर्म के आधार पर किया जाए तो मामला और भी गंभीर हो जाता है.
अल्पसंख्यक आयोग को दी गई अपनी शिकायत में वसीम ने मिलेनियम पार्क के डीपो प्रबंधक जी.के. शर्मा पर संगीन आरोप लगाए थे. उन्होंने अपनी शिकायत में दफ्तर में नमाज़ न पढ़ने देने, धर्म-सूचक और आपत्तिजनक शब्द इस्तेमाल करने और मानसिक शोषण करने के आरोप डीपो प्रबंधक जी. के. शर्मा पर लगाए थे.
अल्पसंख्यक आयोग के सामने यह तथ्य भी आया की जी.के. शर्मा को लेकर दिल्ली परिवहन विभाग पहले से ही सख्त था और हिदायत थी कि उनकी पोस्टिंग किसी संवेदनशील और महत्वपूर्ण पद पर न की जाए. वसीम की शिकायत के मुताबिक जी.के. शर्मा ने अन्य कर्मचारियों से झूठे आरोप लगवाकर उन्हें निलंबित किया था. हालांकि बाद में जांच के दौरान वसीम पर लगाए गए तमाम आरोप गलत साबित हुए.
दरअसल दफ्तर में नमाज़ पढ़ने को लेकर सहायक प्रभारी मोहम्मद वसीम और डीपो प्रबंधक जी.के. शर्मा के बीच कहासुनी हो गई थी. डीपो प्रबंधक ने जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था जिस पर सहायक प्रभारी ने भी जवाब दे दिया था. डीपो प्रबंधक को कनिष्ठ कर्मचारी का जवाब देने बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने द्वेषपूर्ण कार्यवाई करते हुए कर्मचारी की मिसिंग रिपोर्ट लगाने के साथ-साथ उस पर दुर्व्यवहार का आरोप भी लगा दिया. साथ ही इन झूठे आरोपों की बुनियाद पर उसे निलंबित भी कर दिया. लेकिन जब विभाग ने आरोपों के जांच करवाई तो तमाम आरोप झूठे साबित हुए.
लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि एक धर्म के आधार पर भेदभाव करने, द्वेषपूर्ण कार्रवाई करके निलंबित करने और झूठे आरोप लगाकर एक कर्मचारी के करियर से खिलवाड़ करने वाले डीपो प्रबंधक जी.के. शर्मा के खिलाफ़ विभाग ने कोई कार्यवाई क्यों नहीं की? सूत्रों के मुताबिक डीपो प्रबंधक की दिल्ली सरकार में ऊंची पहुंच है और वो अपनी पहुंच के कारण ही ख़राब रिकार्ड होने के बाजवूद इस पद पर बने हुए हैं.
लेकिन पूरे मामले का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि सिर्फ धर्म के आधार पर मेहनती और लगनशील कर्मचारियों को भी शोषण का शिकार होना पड़ता है. दिल्ली परिवहन निगम की विभागीय जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि मोहम्मद वसीम न सिर्फ मेहनती कर्मचारी हैं बल्कि मिलनसार और सहायक प्रवृति के व्यक्ति भी हैं. डीटीसी में कार्यरत श्री वसीम का मामला पूरी व्यवस्था पर ही सवाल खड़े करता है. जो वसीम के साथ हुआ है वो किसी अन्य कर्मचारी के साथ भी हो सकता है. ऐसे में ज़रूरत भेदभाव करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ़ भी कड़ी कार्रवाई करके बेहतर उदाहरण पेश करने की है.
