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दलित पिछडों के मसीहा राजनारायण…

Raghunath Gupta for BeyondHeadlines

आज समाजवादी नेता स्व. राजनारायण (25 नवंबर 1917 से 31 दिसंबर 1986) की पुण्य तिथि है, पर विरले लोग उनके महत्व को जानते होंगे. समाजवादी नेता लोक बंधु राजनारायण से मेरा व्यक्तिगत संपर्क 1966 से प्रारंभ हुआ तब से मृत्यु पर्यन्त आबाध रूप से बना रहा. संसदीय लोकतंत्र में विधायक से लेकर प्रधानमंत्री तक के पद पर साधारण से साधारण आदमी बिराजमान हो सकता है, किंतु राजनारायण लम्बे संघर्ष के परिणाम बनते हैं. राजनारायण के संघर्ष में स्व. कही नहीं था. वह राजनीतिक दृष्टि से जनसाधारण के लिए समर्पित रहते थे. स्वर्गीय राजनाराण को हम लोग नेता जी के नाम से ही संबोधित करते थे.

राजनारायण ने राजनैतिक संघर्ष को जहां वैचारिक स्तर पर धारदार बनाया, वहीं विचार एवं व्यवहार से कार्यकर्ताओं को जोड़े रखा. वे उन विरले नेताओं में थे जो अपने हित को ताक पर रख कर राजनीति एवं साथियों को आगे रखा. 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के विरूद्ध संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी एवं संगठन कांग्रेस का महागठबंधन होने के वावजूद इंदिरा गांधी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उनके सिवा कोई तैयार नहीं हुआ. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1977 में बने जनता पार्टी के दौरान लोकसभा चुनाव के लिए उनके सिवा कोई नेता तैयार नहीं हुए. सभी नेता अपनी जीत को सुरक्षित करना चाहते थे, वहीं राजनारायण जोखिम उठा कर स्वयं द्वारा इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाईकोर्ट में एवं रायबरेली चुनाव में हराया. उनका यह कार्य राजनैतिक संधर्ष को धारदार बनाने के लिए था. इसका सही मुल्यांकन राजनारायण को अभिनन्दनीय बनाएगा. किंतु भारतीय भद्र समाज राजनाराणय से दुरी बनाते हुए अपनी कायरता को छिपाता था. 1980 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह सर्व श्री रामनरेश यादव, कुअर रेवती रमण सिंह, रमाशंकर कौशिक एवं अन्नतराम जायसवाल आदि (संसोपा) के लोगों को टिक नहीं देना चाहते थे,  इस लिए राजनारायण ने चरण सिंह से हट कर नया दल बनाया.

इसके परिणमतः उन्हें विभिन्न कष्टों को झेलना पड़ा. यदपि चरण सिंह राजनारायण के कायल थे तथा इस विवाद से हटा कर उन्हें राज्य सभा भेजना चहते थे. किंतु राजनारायण ने इसे स्वीकार नहीं किया. वे अपने साथियों के लिए कहां तक जा सकते थे उसका यह एक उदाहरण है.

बिहार में राजनारायण कोई भी राजनैतिक कार्य-कलाप करते थे, तो मुझे विश्वास में लेकर ही करते थे. मेरी कर्मठता के कारण बिहार का राजनैतिक परिवेश इसे स्वीकार भी करता था. 12 जून 1975 के इलाहाबाद हाईकोट के फैसले के उपलकक्ष में 19 जून 1975 को पटना गांधी मैदान में राजनारायण की विशाल जन सभा हुई जिसकी अध्यक्षता सभी कि ओर से मेरे लिए निर्धारित की गयी थी. बिहार में उनके सभी कार्यक्रम मेरे ही देखरेख में होते थे. मैं प्रायः सभी कार्यक्रमों में उपस्थित रहता था.

एक बार 1973 में पटना गांधी मैदान में उनका कार्यक्रम कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में होना तय हुआ था, लेकिन उसकी तैयारी मेरी नज़र में समुचित नहीं थी. नेता जी को बनारस से पटना आना था पर फोन पर मेरी असहमती से वे पटना नहीं आये और बनारस से दिल्ली के लिए प्रस्थान कर गये. बिहार में हम और मध्यप्रदेश में चंद्रमणी त्रिपाठी उनके मुख्य सहयोगी थे, वहीं उतरप्रदेश में रामनरेश यादव, मुलायम सिंह यादव, सत्यप्रकाश मालवीय, जनेश्वर मिश्र, बृजभूषण तिवारी, रमा शंकर कौशिक, रामशरण दास, बेनी प्रसाद वर्मा, अनंत राम जायसवाल एवं रेवती रमण सिंह जाने जाते थे. अखिल भारतीय स्तर पर नेता जी से जुडे़ नेताओं में बदरी विशाल (हैदराबाद), रवि राय (उडि़सा), रविशंकर पाण्डेय (पश्चिम बंगाल) एवं शांति नाईक (महाराष्ट्र) आदि उल्लेखनीय नाम है जो उनके राजनीतिक सहयोगी एवं उनसे प्रभावित लोग थे.

स्व0 राजनारायण के संबधों के कारण मुझे राजनैतिक नुकसान भी उठाना पड़ा. स्व0 हेमवन्ती नन्दन बहुगुणा मुझे 1990 के लोक सभा चुनाव में बिहार में कांगे्रसी प्रत्याशी बनाना चाहते थे, जिसे मैंने अस्वीकार कर दिया. मेरे जैसे और कईयों के साथ वैसा हुआ होगा. राजनाराण सचमुच महान समाजवादी नेता डॉ0 राममनोहर लोहिया के विचारों के संघर्ष योद्धा थे. वे हमेशा भारतीय इतिहास में आदर के पात्र रहेंगे.

राजनारायण के साथ मेरे पास अनेक उल्लेखनीय संस्मरण है. यथा वे 19 जून 1975 को पटना गांधी मैदान की सभा के बाद तूफान एक्सप्रेस द्वारा मुझे लेकर 20 जून 1975 को पटना से आगरा पहुंच गए. उन दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुक़दमें में इंदिरा गांधी को हराने के कारण देश की राजनीति में वे बहुत चर्चित व्यक्ति हो गये थे. आगरा में 20 जून की शाम को सभा हुई. नेता जी के साथ मेरा भी भाषण हुआ. रात के करीब 11 बजे समाप्त हुई और सड़क मार्ग से दिल्ली जाने का कार्यक्रम तय हुआ. सरकार की ओर से पुलिस स्कोर्ट पार्टी आई जिसे अस्विकार कर दिया गया. खाने के लिए मना कर दिया गया. देर रात तक हम लोग दिल्ली पहुंचे. यह निर्भीकता थी उनमें.

आज जहां पुलिस शैडो रखना और स्कोर्ट पार्टी लेकर चलना नेताओं में रिवाज बन गया है. उन दिनों यह जनतंत्र में अनावश्यक समझा जाता था. बदलते हुए मूल्यों के संदेश को जनता अवश्य ही जवाब देंगी.

नेताजी हाजिर-जवाबी के साथ मजाक भी करते थे, किन्तु उनका मजाक भी गहरा ही संदेश देता था. घटना 1972 की है, राजनारायण जी को दिल्ली जाने के लिए मुजफ्फरपुर से हवाई जहाज पकड़ना था. उन दिनों पटना, मुजफ्फरपुर, लखनऊ एवं दिल्ली रूट पर वायुयान चलते थे. जिस जहाज से नेता जी को जाना था उसी पर पटना से जयप्रकाश नारायण एवं देवकांत बरूआ (बिहार के तत्कालीन राज्यपाल) मुजफ्फरपुर से  हवाई यात्रा कर पटना पहुंचे. नेता जी की छड़ी शशिभूषण साहू एम.पी. के पटना घर पर छूट गई थी. जे.पी. ने पूछा कि नेता जी आप की छड़ी क्या हुई. इस पर नेता जी ने कहा कि रघुनाथ गुप्ता ने छिपा दीया है. इस पर जेपी ने कहा कि नहीं  ये भोला प्रसाद सिंह को भांजने के लिए दिए हैं. भोला बाबू ने बिहार भूदान यज्ञ कमेटी में यूनियन बना दिए थे, जिससे जेपी नाराज थे.

नेताजी का सामूहिक जीवन कार्यकर्ताओं के साथ खाना-पीना तथा रहना अविस्मरणीय रहेगा. उनके दिल्ली निवास पर विभिन्न प्रदेशों के कार्यकर्ताओं का पड़ाव रहता था. रात में नेता जी ठहरे हुए सभी नेताओं के साथ भोजन करते थे. नेताजी के परिवार के लोग दिल्ली आने पर कार्यकर्ताओं के साथ रहा करते थे. उनके लिए कोई विशेष प्रबन्ध नहीं होता था. यह था उनके सार्वजनिक जीवन का दर्शन…

(लेखक रघुनाथ गुप्ता समाजवादी चिंतक और जेपी आंदोलन के नेता रहे हैं.)

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