Anita Gautam for BeyondHeadlines
कुपोषण हमारे देश की एक मुख्य समस्या है. स्वास्थ विभाग को कुपोषित बच्चों की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है. लेकिन विपरित इसके कि ‘स्वस्थ भारत विकसित भारत’ का सपना देखने वाले हमारे देश के राजनेताओं को शायद यह नहीं पता कि भारत में प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण के व्यक्ति के स्वास्थ्य पर, विशेषकर 0-6 वर्ष की आयु के बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं, जिसके कारण उनकी मृत्यु तक हो जाती है.
यहां मैं सरल भाषा में स्पष्ट करना चाहूंगी कि शरीर में प्रोटीन और ऊर्जा की कमी से पैदा होने वाली विसंगतियों को प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण कहा जाता है. उदाहरण के लिए स्वस्थ व्यक्ति की आंखे स्वस्छ व चमकदार होती हैं, किन्तु विटामिन-ए की गंभीर कमी के कारण आंखों की निर्मलता समाप्त हो जाती है.
ठीक इसी प्रकार प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण से ग्रस्त बच्चे की लंबाई उसी आयु के सामान्य बच्चे से कम होती है व शरीर की बनावट में मुख्य रूप से दो विसंगतियां उत्पन्न हो जाती हैं. मरास्मस (सूखा रोग) और क्वाशियोरकर.
मरास्मस अधिकांश बहुत छोटे बच्चों में पाया जाता है और बच्चे का भार शरीर की तुलना में कम Subcutaneous fat (शरीर के नीचे पाये जाना वाला वसा) क्षय हो जाता है. वहीं दूसरी ओर क्वाशियोरकर नामक बीमारी में 1-3 वर्ष की आयु के बच्चों में जलीय सूजन Oedema अर्थात कोषिकाओं में अधिक मात्रा में पानी एकत्र हो जाता है.
वजन कम होने के साथ साथ शरीर बहुत दुबला-पतला होता है. यह बच्चे पनप नहीं पाते, चिड़चिड़े तथा उदास रहते हैं व रोते समय इनकी आवाज़ तक नहीं निकलती. पतले दस्त के कारण निर्जलीकरण हो जाता है और विटामिन ए की कमी हो जाती है.
किन्तु प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण का मुख्य कारण निर्धनता, मातृक कुपोषण, संक्रमण व अस्वस्छता, अज्ञानता अथवा बच्चे को आहार देने संबंधी गलत प्रचलन शामिल है. अज्ञानता के कारण मां बच्चे को जन्म के एक वर्ष तक अपने दूध के अतिरिक्त अन्य पूरक आहार नहीं देती, किन्तु 6 माह के बाद मां का दूध बच्चे के लिए पर्याप्त नहीं होता. बच्चे को कम मात्रा में दिन में थोड़े-थोड़े अंतराल के बाद दिन में 5-6 बार आहार देना चाहिए.
घर में सामान्य रूप से खाए जाने वाले अनाज, दालें, गिरीदार फल तथा गुड़ ऊर्जा और प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं. यदि बच्चे को दूध भी दिया जाए तो आहार की कोटि और अधिक उच्च हो जाती है. किन्तु लोगों को भ्रमित करने वाले सैरेलैक जैसे व्यावसायिक खाद्य या व्यंजन देने के बजाय घर में ही दलिया, भूने हुए गेहुं, भूने चने, तथा चीनी अथवा गुड़ का मिश्रण का लड्डु या खीर बना सकते हैं. और अगर इसे और अधिक उच्च कोटी का बनाना है तो इसमें दूध का प्रयोग किया जा सकता है.
यदि मां बच्चे के प्रारंभिक लक्षणों को पहचान लें तो बच्चे का बहुत सरलता से घर में ही उपचार हो सकता है. उपचार का मुख्य उद्देश्य बच्चे को अधिक ऊर्जा देना और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ देना चाहिए. किन्तु गंभीर कुपोषण से ग्रसित बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता होती है, क्योंकि बच्चों को कई संक्रमण जैसे पाचन या श्वसन संबंधी संक्रमण भी हो जाते हैं.
(लेखिका ‘स्वस्थ भारत विकसित भारत’ अभियान चला रही प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान से जुड़ी हैं)