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BeyondHeadlines > India > बढ़ती असुरक्षा और पब्लिक ट्रांसपोर्ट
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बढ़ती असुरक्षा और पब्लिक ट्रांसपोर्ट

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published December 26, 2012 1 View
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7 Min Read
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Ranjana Bisht for BeyondHeadlines

दिल्ली में पिछले रविवार 16 दिसंबर को चलती हुई बस में एक लड़की के साथ सामूहिक बालात्कार की घटना दिल दहला देने वाली है. पर, आए दिन इस तरह की होने वाली घटनाओं के लिए कौन जिम्मेंदार है?

समाज, कानून व्यवस्था, पुलिस या परिवहन तंत्र?  चलती बस में एक महिला के साथ गैंगरेप की घटना से यह बात साफ जाहिर होती है कि घर हो या घर के बाहर, महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. उनकी सुरक्षा आज एक बड़ी चुनौती बन चुकी है.

परिवहन हमारे जीवन का अभिन्न अंग है. मगर यह हमारे लिए उपयुक्त होने के साथ सुरक्षित हैं या नहीं? यह एक बड़ा प्रश्न है. आम जनता की आमदनी इतनी नहीं है कि वो कोई पर्सनल या प्राइवेट गाडी खरीद कर अपनी सुरक्षा का इतंजाम स्वयं कर ले.

चोरी-चकारी हो, चाहे महिलाओं के साथ छेड़-छाड़ की बात… ज्यादातर घटनाएं अक्सर बसों में ही सुनने को मिलती हैं. इसके अलावा ट्रेनों में भी यह घटनाएं अब आम हैं. आंकड़े बताते हैं कि चलती ट्रेनों में भी हर माह एक बलात्कार किया जाता है. पुरबिया एक्सप्रेस में टीटीई के ज़रिए किये गए छेड़छाड़ की घटना भी कल की ही है.

ऐसे में पब्लिक ट्रान्सपोर्ट की समुचित व्यवस्था दूसरी ओर यात्रियों की सुरक्षा दोनों बेहद ज़रूरी हैं. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की समुचित व्यवस्था न होने के कारण बसों में भीड़ अधिक हो जाती है और इसी भीड़ का फायदा कुछ मनचले नौजवान उठा कर महिलाओं के साथ छेड-छाड करने से बाज नहीं आते. दिल्ली में 9 लाख लोग मेट्रो से सफ़र करते हैं. पहले मेट्रो में भी महिलाओं से छेड़-छाड़ के कुछ मामले सामने आये थे, जिसके चलते महिलाओं के लिए मेट्रो में पहली दो बोगी रिजर्व कर दी गयी. पब्लिक बसों में भी कुछ इसी प्रकार के सुरक्षा इंतजाम होने चाहिए.

पीडि़त महिला व उसके मित्र ने सबसे पहले ऑटो रिक्शा हायर करने का प्रयास किया, मगर ऑटो चालक ने वहां जाने से मना कर दिया. पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कोई बस उस दौरान न मिल पाने के कारण उन्हें मजबूरन प्राइवेट बस का सहारा लेना पडा.

गाड़ी सड़क पर दौड़ती रहीं, मगर किसी ट्रैफिक पुलिस ने उसकी चैकिंग तक नहीं की. आखिर लोहे की छडे़ गाड़ी में क्यों रखी गयी थी?

पुलिस की लापरवाही ही थी कि वारदात से पहले इन्हीं लोगो ने एक यात्री को बस में बैठा कर उससे 8000 रू0 लूट कर गाड़ी से उतार दिया. वह व्यक्ति थाने में रिपोर्ट दर्ज करने गया भी, मगर पुलिस ने मामले की जांच सवेरे तक टाल दी. यदि उस वक्त त्वरित कार्यवाही की जाती तो इस प्रकार का दर्दनाक हादसा होने से टल जाता. इस दुर्घटना के लिए दिल्ली सरकार,  ट्रांसपोर्ट सेक्टर, पुलिस कर्मचारी सभी किसी न किसी रूप में जिम्मेदार हैं.

इस घटना को हमें समाज, कानून व्यवस्था, सरकार की लापरवाही से जोड़ कर देखना चाहिए. पर मुझे लगता है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी एक महत्वपूर्ण समस्या है. अमूमन ऑटो रिक्शा चालक अपनी मनमानी से बाज़ नहीं आते. यात्री को कितनी ही इमरजेंसी क्यों न हो, वे उस जगह जाने से इंनकार कर देते हैं, जहां के लिए उन्हें कहा जाता है. वे अपने मन मुताबिक जगह तय कर लेते है. जिस कारण यात्रियों व  आम आदमी को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि वे मीटर से चलने से भी इन्कार कर देते है तथा किराया में भी मनमानी वसूल करते हैं.

यदि दिल्ली में पब्लिक ट्रासपोर्ट की उचित व्यवस्था होती तो शायद इस तरह की वारदात नहीं होती. आम आदमी जो पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ही निर्भर है उसे खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

दिल्ली में ज्यादातर लोग बी0पी0ओ0 व मिडिया सेक्टर में काम करते हैं, जिन्हें देर रात्री तक काम करना पडता हैं. लेकिन उन्हें कोई वैकिल मुहैय्या नहीं कराया जाता, जो उन्हें रात्री में उनके घर तक सुरक्षित पहुंचा सके. कहीं-कहीं वाहन की सुविधा एक तरफा है जो ऑफिस ले जाने के लिए तो उपलब्ध हो जाती है, मगर घर छोड़ने के लिए नहीं.

दिल्ली में पर्यावरण की दृष्टि से साइकिल व रिक्शा की सवारी महत्वपूर्ण है. मगर साइकिल चलाने वाली महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या साइकिल के लिए अलग लेन न होने के साथ ही उनकी सुरक्षा भी है. काम पर जाने वाली महिलाओं को अक्सर पुरूषों की छींटा-कसी व छेड़-छाड़ का सामना करना पड़ता है. साइकिल चलाना स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से अच्छा है. बहुत सारे लोग इसे व्यायायाम  के लिए भी उपयुक्त समझते है. मगर असुरक्षा की भावना के चलते मन मसोस कर रह जाते हैं.

दिल्ली में पर्यावरण की समस्या बेहद चिंताजनक है जिसके लिहाज से पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अधिक उपयोग, छोटी दूरी के लिए साइकिल व रिक्शा का उपयोग को बढावा देना आवश्यक है. मगर सुरक्षित न होंने के कारण लोग इनसे परहेज करते हैं.

आमजन के लिए कार या पर्सनल वाहन खरीदना मुनासिब नहीं. उनके लिए तो साईकिल की सवारी ही महत्वपूर्ण है. वैसे भी दिल्ली जैसी जगह में पर्सनल वाहनों की बढ़ती संख्या ने ट्रैफिक जाम व प्रदूषण की समस्या को ही बढ़ाया है. पर्सनल वाहन सुरक्षा का कोई सही विकल्प नहीं है इसके लिए आवश्यक है कि हम पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर व सुरक्षित बनाये. ट्रैफिक पुलिस जिम्मेंदारी से अपना काम करें. सुनसान जगहों पर पी0सी0आर0 वैन मौजूद रहें ताकि पैदल यात्रियों को आवाजाही में कोई मुश्किल न हो.

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