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दिल्ली गैंगरेपः नाबालिग आरोपी और सुब्रमण्यम स्वामी की कुंठा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published January 25, 2013
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8 Min Read
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Dilnawaz Pasha for BeyondHeadlines

दिल्ली गैंगरेप पीड़िता का परिवार नाबालिग आरोपी के लिए फांसी की सजा चाहता है. परिवार की मांग और आक्रोश जायज है, क्योंकि परिवार के एक सदस्य को इस घटना में अपना जीवन गंवाना पड़ा है. नाबालिग आरोपी के प्रति समाज के हर वर्ग में आक्रोश फूट रहा है. समाज का भी आक्रोश जायज़ है क्योंकि मौजूदा व्यवस्था समाज ऐसी वीभत्स घटनाओं का गवाह बनने के लिए मजबूर है.

लेकिन पूरे मामले पर सबसे ज्यादा हो हल्ला जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी मचा रहे हैं. हालांकि ये अलग बात है कि सुब्रमण्यम स्वामी की मांगे दुर्भावना से ग्रसित हैं. स्वामी नाबालिग आरोपी को मुसलमान बताकर उसे कांग्रेस से जोड़ने की हरसंभव कोशिश कर रह रहे हैं.

खुद को कानून का जानकार मानने वाले स्वामी यह भी भूल गए हैं कि किसी भी बच्चे से उसके धर्म के आधार पर पक्षपात करना गैर कानूनी है. वह यह भी भूल गए हैं कि किसी नाबालिग ने भले ही कितना बड़ा भी अपराध क्यों न किया हो, लेकिन उसकी पहचान सार्वजनिक नहीं की जा सकती. स्वामी यह भी भूल गए हैं कि बच्चों को बेहतर माहौल उपलब्ध करवाना समाज और राष्ट्र की जिम्मेदारी है.

यदि नाबालिग बच्चे अपराध में लिप्त हैं तो यह सीधे-सीधे एक राष्ट्र के रूप में भारत की नाकामी है. पूरे मामले के कानूनी पक्ष भले ही कुछ भी हो लेकिन मीडिया और समाज के एक वर्ग ने नाबालिग आरोपी के प्रति मोर्चा खोल रहा है. बिना किसी भी ठोस सबूत के मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि गैंगरेप पीड़िता से सबसे ज्यादा दरिंदगी नाबालिग आरोपी ने की. इस बात की दुहाई दी जा रही है कि सबसे ज्यादा बर्बरता करने वाला नाबालिग आसानी से छूट जाएगा.

यह भारत का दुर्भाग्य ही है कि गैंगरेप जैसी वीभत्स वारदात और सामाजिक न्याय से जुड़े मामले को भी सुब्रमण्यम स्वामी जैसे कुंठित लोग धर्म से जोड़ने में सफल हो जाते हैं.

यदि बात भारतीय एवं अंतरराष्ट्रीय कानूनों की की जाए तो नाबालिग के बालिग साबित होने तक न ही उसकी पहचान सार्वजनिक की जा सकती है और न ही अन्य आरोपियों के साथ उस पर लगे आरोपों की सुनवाई की जा सकती है.

नाबालिग को बालिग मानकर सुनवाई करने के लिए दायर की गई सुब्रमण्यम स्वामी की याचिकाओं को जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और दिल्ली हाई कोर्ट खारिज कर चुका है. स्वामी अब जेजेबी के फैसले के खिलाफ एक बार फिर हाईकोर्ट जा रहे हैं.

यहां यह समझना ज़रूरी है कि नाबालिग आरोपी क्या ‘बच्चा’ है या नहीं और क्या उसे ‘बच्चा’ माना जाए या नहीं. स्वामी ने अपनी याचिका में तर्क दिया था का आरोपी के बौद्धिक और शारिरक स्तर को देखते हुए उसे व्यस्क माना जाए. इससे पहले स्वामी ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर यह मांग की थी कि आरोपी को व्यस्क मानकर बाकी आरोपियों की तरह ही मुक़दमा चलाया जाए. हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी स्वामी की याचिका को खारिज कर दिया था.

संयुक्त राष्ट्र की ‘कन्वेंशन ऑफ द राइट्स ऑफ द चाइल्ड’ के तहत अधिकतम 18 वर्ष तक की उम्र के व्यक्ति को बच्चा माना गया है. हालांकि ‘बच्चा’ माने जाने की न्यूनतम आयु को निर्धारित नहीं किया गया है. इस कन्वेंशन के तहत किसी भी बच्चे के अधिकारों की रक्षा करना राज्य का दायित्व है.

स्वामी ट्विटर पर नाबालिग आरोपी को मुसलमान बताकर कांग्रेस से जोड़ रहे हैं जबकि संयुक्त राष्ट्र में पारित कन्वेंशन जिसका भारत भी एक सदस्य स्पष्ट कहती है कि यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह किसी भी बच्चे के साथ उसके रंग, जाति, धर्म या जन्म के स्थान के आधार पर कोई भी भेद न होने दे. यही नहीं पारित कन्वेंशन यह भी कहती है कि राज्य प्रत्येक बच्चे के जीने के अधिकार को सुनिश्चित करे. इस आधार पर नाबालिग आरोपी को मौत की सजा किसी भी परिस्थिति में नहीं दी जा सकती.

कन्वेंशन ऑफ द राइट्स ऑफ द चाइल्ड के आर्टिकल 8 के तहत किसी भी बच्चे के पास अपनी पहचान छुपाने का अधिकार है. राज्य की जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करे की किसी भी गैरकानूनी तरीके से किसी बच्चे की पहचान सार्वजनिक न हो.

दिल्ली गैंगरेप का नाबालिग आरोपी लंबे वक्त से अपने परिवार से दूर था और विषण परिस्थितियों में अपना जीवन गुजार रहा था. यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह प्रत्येक बच्चे को अपनी सोच, समझ और बौद्धिक क्षमता विकसित करने और बेहतर जीवन पाने का माहौल सुनिश्चित कराए. एक नाबालिग का इतने जघन्य अपराध में शामिल होना भी एक राष्ट्र के रूप में भारत की नाकामी ही दर्शाता है.

राइट्स ऑफ द चाइल्ड कन्वेंशन के आर्टिकल 37 के मुताबिक किसी भी अपराध के लिए किसी भी बच्चे के फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती. यदि सजा देना ज़रूरी है तो कम से कम सजा दी जाए.

भारत के महिला एवं बाल कल्याण विभाग ने संयुक्त राष्ट्र की राइट्स ऑफ द चाइल्ड कन्वेंशन को स्वीकार किया है और इसे लागू करने के लिए क़दम भी उठाए हैं. भारत में अलग-अलग कानूनों के तहत किसी को बच्चा मानने की न्यूनतम आयु तय की गई है. सेक्सुअल कन्सेंट के लिए लड़कों की कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है जबकि लड़कियों के लिए कम से कम 16 वर्ष की आयु तय की गई है. यही नहीं 18 वर्ष से अधिक उम्र का व्यक्ति ही भारतीय सैन्य बलों के अभियानों में शामिल हो सकता है. जबकि 16 वर्ष की उम्र तक के व्यक्ति खुद को सैन्य सेवाओं के लिए उपलब्ध करवा सकते हैं.

चाइल्ड लेबर एक्ट के तहत कम से कम बच्चों के लिए 14 वर्ष की न्यूनतम आयु तय की गई है. 14 साल से कम उम्र के प्रत्येक नागरिक को बच्चा माना जाता है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 83 के तहत स्पष्ट किया गया है कि 7 वर्ष तक की उम्र का बच्चा अपराध नहीं कर सकता जबकि 12 वर्ष से कम उम्र का बच्चा यदि कोई अपराध करता है तो उसे सजा नहीं दी जा सकती. द जुवेनाइल जस्टिस एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन एक्ट 2000 के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के नागरिक को ‘बच्चा’ माना गया है और यह निर्धारित किया गया है कि अपराधों में लिप्त नाबालिगों के मामलों की सुनवाई जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड करे.

TAGGED:DelhiDelhi Gang Rape: Minor accused and politics of religionDelhi GangrapeRPESwamiSwami Subramanium
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