Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
अब से पहले आतंकवाद पर जब भी बात होती थी कहा जाता था कि हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर आतंकी मुसलमान ही होता है. जयपुर में कांग्रेस के चिंतन शिविर में दिए गए गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के बयान के बाद आतंकवाद पर यह राय बदल गई है. शिंदे ने कहा है कि आरएसएस और बीजेपी से जुड़े लोग भी आतंकवाद में लिप्त हैं. शिंदे के इसी बयान के बाद से अब बीजेपी और आरएसएस जैसे संगठन कह रहे हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता.
भले ही बीजेपी और आरएसएस अपनी सोच बदलने को मजबूर हुए हों लेकिन देश में आतंकवाद की जांच का सिलसिला और इस सिलसिले में बेगुनाह मुसलमानों का फंसना बंद नहीं हुआ है. भले ही गृहमंत्री और गृह सचिव हिंदू आतंकवाद की बात खुले तौर पर कर रहे हों लेकिन गिरफ्तारियां अब भी बेगुनाह मुसलमानों की ही हो रही हैं.
पूरे घटनाक्रम में बड़ा सवाल यह उठता है कि बदलाव के मौजूदा समय में क्या आतंकवाद की राजनीति की जा सकती है और क्या जनता को धर्म और आतंकवाद के मुद्दों पर बरगलाया जा सकता है?
इस सवाल का जबाव तलाशने के लिए अब आतंकवाद की राजनीति, आतंकवादियों के धर्म, आतंकवाद के एजंडे पर खुलकर बहस हो रही है. एक तरफ शिन्दे के इस बयान का स्वागत किया जा रहा है तो दूसरी तरफ इस बयान को सिर्फ एक राजनीतिक बयान के तौर पर देखा जा रहा है, और इसकी घोर निन्दा की जा रही है. शिंदे के बयान के खिलाफ बीजेपी ने देश भर में विरोध-प्रदर्शन किया. जंतर-मंतर पर भाजपा के नए अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने एक बयान में कहा कि बीजेपी पूरे देश और संसद के दोनों सदनों में ऐसे हालात पैदा करेगी कि शिंदे को पद से हटाने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकेगी.
शिंदे ने कहा था, ‘बीजेपी-आरएसएस आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और आरएसएस के कैंपों में आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है.’ शिंदे के बयान के बाद देश के गृह-सचिव आरके सिंह ने सबूत भी दिए. आरके सिंह ने कहा कि आतंकवादी गतिविधियों में शामिल कम से कम दस लोगों के आरएसएस के साथ संबंध साबित हुए हैं. ‘समझौता एक्सप्रैस, मक्का मस्जिद और अजमेर की दरगाह में हुए धमाकों की जांच में पकड़े गए दस लोग किसी न किसी वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं. हमारे पास उनके खिलाफ सबूत हैं, गवाहों ने भी उनके खिलाफ बयान दिए हैं.’ गृह सचिव ने इन दस लोगों के नाम भी बताए. इनमें सुनील जोशी (मृत), संदीप डांगे, लोकेश शर्मा, स्वामी असीमानंद, राजेंद्र उर्फ समुंदर, मुकेश वसानी, देवेंद्र गुप्ता, चंद्रशेखर लेवे, कमल चौहान और रामजी कलसंगरा शामिल है. आरएसएस के साथ रहीं साध्वी प्रज्ञा जेल के अंदर है. वह आरएसएस से ताल्लुक रखती है. बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष राजनाथ सिंह स्वयं प्रज्ञा से मिलने गए थे.
सबसे दिलचस्प बात यह है कि भाजपा व आरएसएस से जुड़े लोग अब यह कह रहे हैं कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. जबकि इसी बात को मुसलमान पिछले एक दशक से कह रहे हैं. मौलानाओं ने आतंकवाद पर फतवा तक जारी किया. बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए. देवबंद, जंतर-मंतर व रामलीला मैदान में एकत्रित होकर मुसलमानों ने अपने देश के भाईयों को समझाने की कोशिश की कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. लेकिन इनकी बात कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ और आतंकवाद को हर बार मुसलमानों के साथ ही जोड़ा गया. मुसलमानों के दरगाहों व मस्जिदों में धमाके हुए. बेगुनाहों की जानें गई और इसका इल्जाम भी मुसलमानों पर ही लगाया. गिरफ्तारियां भी मुसलमानों की ही की गई. यह अलग बात है कि अब तक जितने मुसलमान गिरफ्तार हुए, और जिनकी सुनवाई अदालत में मुक़म्मल हो चुकी हैं, सब बाईज्जत बरी हुए हैं.
14-14 साल जेल में रहकर भी इनके दिलों में देशभक्ति का जज्बा रहा. यह अजीब इत्तेफाक है कि जिन आतंकवादियों पर पाकिस्तानी होने का आरोप लगा, उन्होंने भी देश के कानून पर यकीन किया. मिसाल के तौर पर दिल्ली के आमिर और मालेगांव के डॉक्टर फरोग मकदूमी का नाम लिया जा सकता है. जेल में आमिर ने गांधी और देशभक्ति पर लेख लिखकर ईनाम तक हासिल किया. और आज भी 14 साल के बाद रिहा होने पर भी लोगों को देशभक्ति की ही बात सिखाता है. फरोग मकदूमी ने जेल के अन्दर रहकर जो काम किए शायद ही देश का कोई देशभक्त उतना बेहतर काम कर पाया हो. इन्होंने जेल के अंदर रहते हुए 702 आरटीआई फाईल की. और हर आरटीआई का अपना एक अलग महत्व है. अपनी एक अलग कहानी है. जेल के भ्रष्टाचार के विरूद्ध मकदूमी की लड़ाई इतनी ज़बरदस्त रही कि हम और आप सोच भी नहीं सकते. जेल के कैदियों ने इन्हें जेल के अन्ना के तौर पर देखा. तब यह राष्ट्र भक्त कहां थे? तब इन्होंने क्यों नहीं कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता?
बहरहाल, शिन्दे के इस बयान पर बहुत ज़्यादा खुश होने की भी ज़रूरत नहीं है. क्योंकि बयान के अगले दिन ही बिहार के दरभंगा के चकजोरा गांव से इंडियन मुजाहिदिन के नाम पर दानिश अंसारी की गिरफ्तारी भी हुई और उसके बारे में कहा गया कि यह यासीन भटकल का क़रीबी साथी है, जबकि गांव वाले इसे बेगुनाह बताते हैं. इसके अलावा मुंबई क्राईम ब्रांच ने भी दक्षिण मुंबई से हिजबुल मुजाहिदीन के दो संदिग्ध तथाकथित आतंकियों को गिरफ्तार किया है.
शिन्दे के पहले दिग्विजय सिंह और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने भी सिर्फ राजनीतिक लाभ उठाने और आने वाले असेम्बली और लोकसभा चुनाव में वोट बटोरने के लिए ऐसे बयान दिए थे, लेकिन नतीजा क्या हुआ, वो किसी से छिपा नहीं है. कितना अजीब है कि कसाब को फांसी तक दे दिया गया लेकिन इसी मामले में एक भारतीय हिन्दू व्यक्ति का नाम भी आया था, जो बिहार के दरभंगा ज़िला का ही रहने वाला था, जिसे हमारी पुलिस अब तक गिरफ्तार नहीं कर सकी है. जबकि इसी दरभंगा से मुस्लिम बच्चों की गिरफ्तारियां खूब की गई हैं.
दरअसल, हिन्दुत्व आतंकवाद का चेहरा तो स्वामी असीमानंद के एक़बालिया बयान से ही स्पष्ट तौर पर सामने आ चुका था. मिस्टर शिन्दे ने जो कुछ कहा है वो दरअसल महाराष्ट्र एटीएस के समय के सरबराह हेमंत करकरे ने 2008 में अपनी तहक़ीक़ की बुनियाद पर पेश किया था, जिन्हें मुम्बई आतंकी घटना के दौरान संदेहजनक तरीका से क़त्ल कर दिया गया था. लेकिन अफसोस, इतने अहम जानकारी व दस्तावेज़ी सबूत होने के बावजूद केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें अब तक खामोश तमाशाई क्यों बनी रही? आरएसएस के अहम रहनुमा इंद्रेश कुमार, प्रवीण तोगड़िया व अन्य व्यक्ति जिनके नाम असीमानंद की चार्जशीट में मौजूद हैं उन पर कार्रवाई करना तो दूर पुलिस ने उन्हें पूछताछ तक के लिए भी नहीं बुलाया. नासिक के भोंसला मिलिट्री स्कूल जहां पर यह तथाकथित आतंकी प्रशिक्षण प्राप्त करते थे, उनके खिलाफ अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इसी तरह आरएसएस से संबंधित संगठन अभिनव भारत, सनातन संस्थान व राम सेना आदि पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई जबकि इनके नाम कई चार्जशीटों में मौजूद है.
यह बात सही है कि हिंदुस्तान की सरकार ने पिछले पांच साल में ऐसे दस्तावेज लेकर आई है जिससे यह दिखता है कि कुछ हिंदू संगठन भी लिप्त हैं. अभी किसी केस में ट्रायल में कंप्लीट नहीं हुआ है. लेकिन सरकार ने इस बात का दावा किया है कि कुछ हिंदूवादी संगठनों के खिलाफ सबूत है. तमाम बम धमाकों में जहां तक मुसलमानों के लिप्त होने के सवाल है तो अदालतें यह कह रही हैं कि गिरफ्तार किए गए मुसलमान युवक बेगुनाह थे, जिन्हें झूठे मुकदमे में फंसाया गया. हिंदू आतंकवाद के मामले अभी अदालतों के अधीन है। यदि हिंदू युवक भी बेगुनाह साबित हुए तो हम उनके लिए भी लड़ाई लड़ेंगे. लेकिन यह समझना होगा कि देश में मुसलमानों के खिलाफ पुलिस द्वारा एक कैंपेन चलाया जा रहा है.
वक्त की जरूरत यह है कि सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज के अंडर एक कमीशन बैठे जो आतंकवाद के झूठे मामलों की जांच करे. बीजेपी, कांग्रेस, सपा सभी पार्टियां आतंकवाद की राजनीति करके फायदा उठा रही हैं. कांग्रेस मुसलमानों को डरा कर रखती है, नरेंद्र मोदी, संघ और भाजपा का डर दिखाती है. समाजवादी भी ऐसे ही फायदा उठाती है. आतंकवाद के मुद्दे को कोई भी पार्टी खत्म नहीं करेंगी. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार है लेकिन झूठे मामलों में सबसे ज्यादा युवक यहीं से गिरफ्तार किए गए हैं. ऐसे में इस बयान के परिपेक्ष्य में जांच और भी ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि मालेगांव बम ब्लास्ट में मुलज़िम ने सीबीआई को दिए गए अपने बयान में हिन्दुत्व आतंवादियों और आरएसएस के बड़े अधिकारियों पर पाकिस्तान के खुफिया एजेंसी आईएसआई से संबंध होने का इल्ज़ाम भी लगाया है.
चलते चलत एक बात दोहरा दूं, गणतंत्र दिवस का वक्त है, इस दौरान देश की जांच एजेंसिया कुछ ज्यादा ही सतर्क रहती हैं. वह इतनी सतर्क रहती हैं कि दर्जनों आतंकियों को उनके ठिकानों से धर लेती हैं. ये अलग बात है कि बाद में अदालतें इन आतंकियों को बरी करके बाइज्जत शहरी करार दे देती हैं. लेकिन इस सब के बीच इनकी जिंदगी के कई साल बीत जाते हैं, इस बार भी शायद ऐसा हो. हमें इस बार यह अहद करना होगा कि कोई भी बेगुनाह जेल में न रह पाए, और जो असली आतंकी है वह सिर पर टोपी या गले में भगवा गमछा डालकर किसी पूरी कौम को बदनाम न कर पाए.
ऐ देश वालों! अब तो मान लो की आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, कि अब तो आरएसएस जैसे राष्ट्रभक्त संगठन ने भी कह दिया है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता…