‘हे राम’ पर भी कालिख पोत दूं क्या ?

Beyond Headlines
Beyond Headlines 1 View
6 Min Read

Dr. Devashish Bose for BeyondHeadlines                 

नौ चित्रांसों को काट कर कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरुपम’ को तमिलनाडू में इसके प्रदर्शन की इजाजत दे दी गयी है. लेकिन इसके प्रदर्शन पर उत्पन्न विवाद ने वाणी की स्वतंत्रता पर कई सवाल खड़ा कर दिया है. हालांकि सोनिया गांधी के निर्देशानुसार केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी ‘विश्वरुपम’ पर अपना बयान बदल दिया है. कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरुपम’ के प्रदर्शन के सवाल पर वे पहले अलग राग अलाप रहे थे. उनका कहना था कि फिल्म के प्रदर्शन से अगर देश में विधि ब्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है तो फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाया जा सकता है. लेकिन मामला मद्रास उच्च न्यायालय में विचाराधीन होने की वजह से कांग्रेस विवाद से दूर रहने की नीति पर चल रही थी.

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में पहले इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक के आदेश को निरस्त कर दिया था और बाद में स्थगितादेश दे दिया. फिलहाल सोनिया गांधी के निर्देश पर गृह मंत्री की भाषा में बदलाव नजर आ रहा है. वे कह रहे हैं कि हमलोग मुक्त समाज में रहते हैं. लिहाजा यहां मत ब्यक्त करने की आजादी है. कलाकार को भी इसकी इजाजत है. समाजशास्त्रियों का मानना है कि गृह मंत्री शिंदे एक ही मसले पर दो तरह की बात कह कर अपने दोहरे चरित्र का परिचय दे रहे हैं. बहरहाल तमिलनाडू में कमल हासन की फिल्म ‘विश्वरुपम’ पर सरकारी नजरिया कोई नई बात नहीं है. बल्कि देशव्यापी सेंसरशीप की संस्कृति अब प्रबल आकार ले रही है.

Kamal Hasan

कभी जयपुर साहित्य उत्सव में पाकिस्तान के साहित्यकारों के आगमन पर रोक लगाया गया और फिर सलमान रुश्दी को रोका गया है. कोलकाता में सलमान रुश्दी के आगमन पर ममता सरकार और कोलकाता पुलिस निशेधाज्ञा जारी कर दी. वाममोर्चा सरकार के समय बांग्लादेश से निष्काशित लेखिका तस्लीमा नसरीन को लेकर भी कोलकाता में ऐसा ही हुआ था. तब से अब तक तस्लीमा नसरीन को कोलकाता में दाखिल होने की इजाजत नहीं मिली है. विवाद उत्पन्न कर आशीष नन्दी से लेकर शाहरुख खान तक पर निशाना साधा जा रहा है. कमल हासन स्वयं अपने पत्रकार सम्मेलन में प्रख्यात कलाकार  मकबूल फिदा हुसैन की चर्चा करते हुए कहा है कि उनकी तस्वीरों पर विवाद और मुकदमों के कारण ही वे देश छोड़ कर चले जाने को बाध्य हुए.

समाजशास्त्रियों की नजरों में यह स्पष्ट है कि भारत में गणतंत्र की जितनी भी तारिफ हो लेकिन देश में राय अर्थात मत ब्यक्त करने की आजादी पर बिडम्बना कदापि कम नहीं है. फिलहाल यूपीए की केन्द्रीय सरकार एकाधिक घटनाओं को नमनीय मनोभाव से ली है. नागरिक समाज के आन्दोलन के पीछे जनतांत्रिक विक्षोभ की युक्तियुक्तता को सोनिया गांधी स्वीकार कर ली हैं. वार्ता की इच्छा जाहिर कर वे अन्ना हजारे को पत्र लिखी. दिल्ली में विक्षोभकारियों से प्रत्यक्ष वार्ता की और न्यायमूर्ति जेएस वर्मा को धन्यवाद भी दी. यह सब हो रहा है, लेकिन समग्रता में सेंसर संस्कृति में बदलाव नहीं लाया जा रहा है.

राजनीतिक दल अपने चेहरे को बचाने के लिए ही युवा समाज के असंतोष को आंशिक स्वीकृति प्रदान कर रही हैं. इस असंतोष को लेकर अगर युवा समाज गोलबन्द हो जाये तो राजनीतिक दलों के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है. हालांकि कोई राजनीतिक दल इस सेंसर संस्कृति के विरोध में नहीं है. हालांकि बीजेपी सवाल खड़ी की है कि कांग्रेस का असली चेहरा कौन है? शिंदे का कमल हासन के विरोध में दिया गया वक्तब्य अथवा अब उनके पक्ष में दिये जा रहे बयान. लेकिन जयपुर साहित्य उत्सव का सम्पूर्ण विवाद भाजपा के नीति पर ही पुलिस की भूमिका रही है.

सलमान रुश्दी से लेकर पाकिस्तानी लेखकों के भारत आगमन का विरोध की है. ममता बनर्जी की सरकार जब रुश्दी के कोलकाता आगमन की मनाही की तो भाजपा ने इसकी तीव्र निन्दा की. तमिलनाडू की राजनीति में कमल हासन का फिल्म विश्वरुपम को लेकर डिएमके और एडिएमके के बीच विभेद उत्पन्न हुआ. सम्प्रति दलित दुर्नीति को लेकर विवाद के केन्द्र बने समाजशास्त्री आशीष नन्दी के कथनानुसार वाक् स्वतंत्रता पर सेंसर लगाना देश के हर शासकदल की मानसिकता रही है. वाक् स्वाधीनता को खण्डित करने की क्षमता भी शासकदल के पास ही है.

शक्ति के केन्द्रों को कौन किस तरह से इस्तेमाल कर रहा हैं, वाक् स्वतंत्रता प्रयोग के क्षेत्र में यह एक यक्ष प्रश्न है. पश्चिम बंगाल में सम्प्रति एक ब्यंग चित्र को लेकर एक प्रोफेसर को गिरफ्तार होना पड़ा था. मुम्बई में युवती को फेसबुक पर अपनी नजरिया दर्ज करने के लिए अनावश्यक कानूनी प्रक्रिया से गुज़र कर परेशान होना पड़ा था. आज विश्वरुपम विवाद में एक कार्टून की कहानी हर जूबान पर है कि-गांधी प्रतिमा के नीचे हे राम लिखा है. इसे देख कर पुलिस का एक जवान मोबाईल से अपने अधिकारी को बताया कि सर हे राम भी कमल हसन की एक फिल्म का ही नाम है. इस पर कालिख पोत दूं क्या?

(लेखक कैंसर रोग से पीड़ित हैं और इन दिनों टाटा मेमोरियल अस्पताल मुंबई में ईलाज करा रहे हैं… बावजूद इसके अपने पत्रकार मन की उड़ानों को कलबद्ध करने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं… उनसे bosemadhepura@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)

Share This Article