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फिर आज़मगढ़ निशाने पर…

Pravin Kumar Singh for BeyondHeadlines

हैदराबाद में विगत 21 फरवरी को हुए शर्मनाक बम विस्फोट में 16 लोगों ने जान गवांई और अनेक घायल हुए. अभी तफ्तीश शुरू ही हुआ था कि खबरिया चैनलों के द्वारा आज़मगढ़ का नाम उछाला जाने लगा. यह बड़ा आश्चर्यजनक है कि गृह मंत्रालय के जांच के किसी नतीजे और आधिकारिक बयान से पहले ही इलेक्ट्रानिक मीडिया ने खुफिया विभाग के ‘‘विश्वस्त सूत्रों’’ के द्वारा कुछ संगठनों के नाम का खुलासा किया, साथ ही विस्फोट करने वालो का सीधा संम्बंध आज़मगढ़ से बताया. इन न्यूज चैनलों के स्टूडियो में बैठे हुए विवेचक जो पूर्व सुरक्षा अधिकारी और सुरक्षा विशेषज्ञ थे पोटा की वकालत करते हुए दिल्ली में हुए बाटला हाउस काण्ड की समीक्षा करने लगे. इस काण्ड की न्यायिक जांच की मांग करने वाले लोगों को भी एक तरह से आतंकवादियों का सहयोगी बताया.

इस मीडिया ट्रायल का मकसद क्या है?  ख़बरों को इस तरह से सनसनीखेज़ बनाने पर हो सकता है कि इन चैनलों के टीआरपी में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी होती हो. पर दूसरी तरफ कितने लोगों की दुश्वारी झेलनी पड़ती है. किसी खास जिले के निवासी होने के कारण लाखों लोग भय और किसी अनहोनी की चिन्ता से आतंकित हो उठते है. पुलिस और प्रशासन द्वारा परेशान किये जाने के अलावा जिले के बाहर उन्हें लोगो की उपेक्षा और शक का शिकार भी बनना पड़ता है. हर बम विस्फोट के बाद दिल्ली या मुंबई जैसें शहरों में आम आजमगढि़यों को क्या-क्या झेलना पड़ता है वह खबरों की सुर्खियां नहीं बन पाती है.

azamgarh station

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से बीटेक किये 30 वर्षीय मजहर हुसैन (बदला हुआ नाम) बंगलौर के प्रतिष्ठित आईटी कम्पनी में इंन्जीनियर हैं. उन्हें रेल द्वारा 22 फरवरी को बंगलौर जाना था. लेकिन उन्हें ट्रेन से जाने में भय लगने लगा. उन्होंने ट्रेन का टिकट निरस्त करा दिया और तीन दिन बाद जहाज से गये. तैयय्ब शाहिद को दिल्ली में एक एनजीओं के बैठक में आना था. उसके माता-पिता ने उसे दिल्ली जाने से रोक दिया.

आज़मगढ़ का इस तरह नाम आने से मोकामी पुलिस की सरगर्मी बढ़ जाती है. जिनके परिवार के बच्चे दिल्ली, पुणे, चण्डीगढ़, अलीगढ़ आदि शहरों में जाकर पढ़ते है, उनके परिवार वाले फोन से नसीहत देना शुरू कर देते है कि घूमना फिरना नहीं बस कालेज और अपने हास्टल या कमरे में रहो. अगर हो सके तो घर चले आओं, फिर कुछ दिनों में माहौल शान्त हो जाने पर चले जाना.

वामपंथी नेता जयप्रकाश राय, शिक्षक हरमन्दिर पाण्डे, चिकित्सक डा. बी. एन. गौड़, अधिवक्ता अनिल राय जैसें प्रबुद्ध आज़मगढ़वासियों का मानना है कि जिले के किसी आम शहरी का इण्डियन मुजाहिद्दीन और लश्कर तोयबा जैसे आतंकवादी संगठन कोई संबध नहीं है. यह सब एक खास वर्ग को ध्यान में रखकर गलत प्रचारित किया जा रहा है.

मीडिया के इस ‘‘रस्योद्घाटन’’ से आज़मगढ़ की छवि खलनायक जैसे बन गई. भरतीय प्रेस परिषद के सदस्य और वयोवृद्ध पत्रकार शीतला सिंह कहते हैं कि आज़मगढ़ को लेकर मीडिया ट्रायल करना गलत है. हैदराबाद बम विस्फोट से आज़मगढ़ से संबंध का कोई ठोस सबूत नहीं है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस के आईजी (कानून व्यवस्था) बी. पी. सिंह ने कहा है कि हैदराबाद बम विस्फोट से आज़मगढ़ का कोई संबध नहीं है. पुलिस के पास एैसी कोई जानकारी नहीं है, न ही इस विस्फोट के संबध में उन्हें किसी आज़मगढ़वासी की तलाश है. फिर भी खुफिया एजेंसियों के एक हिस्से के उसकावे पर मीडिया का एक वर्ग आज़मगढ़ को कटघरे में खड़ा करने पर तुला हुआ है.

पहले भी हिन्दी मीडिया का एक हिस्सा बिना किसी तथ्य के कभी दाऊद इब्राहिम का घर आज़मगढ़ में ढ़ूढ़ निकालती रही है तो कभी पूर्वांचल के इस अजीमोशान जिलों को आतंकवाद की नर्सरी घोषित करती रही है.

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