BeyondHeadlines News Desk
इंटरनेट पर स्वतंत्रता के लिए ‘सेव यॉर वॉयस’ अभियान चला रहे आलोक दीक्षित ने अपने फेसबुक पर स्टेट्स पोस्ट किया, ‘I Love my Pakistan’. उनके इस स्टेट्स का खूब विरोध हुआ, चंद घंटों में ही 800 से अधिक टिप्पणियां आईं और अधिकतर लोगों ने उन्हें गंदी-गंदी गालियां और धमकियां दीं.
आलोक ने किसी को जबाव दिया और न ही किसी के खिलाफ कोई शिकायत की. लेकिन फिर भी उनका अपना स्टेट्स ही डिलीट कर दिया गया. फेसबुक की ओर से आलोक से कहा गया कि उनका स्टेट्स स्टेटमेंट ऑफ राइट्स एंड रेस्पोंसिबिलीटीज के तहत डिलीट किया जा रहा है.
दरअसल फेसबुक इस यूजर एग्रीमेंट के तहत हर उस सामग्री को डिलीट करने का अधिकार रखता है जो किसी और के अधिकारों का उल्लंघन हो. लेकिन ‘आई लव मॉय पाकिस्तान’ लिखने से किसी के भी किसी भी प्रकार के अधिकार का उल्लंघन होता है, यह समझ से परे हैं. खैर फेसबुक ने स्टेट्स डिलीट कर दिया है.
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत धीरे-धीरे सोशल सेंसरशिप की ओर बढ़ रहा है? आलोक दीक्षित कहते हैं, ‘धीरे-धीरे हम अल्पसंख्यक विचारों के लिए स्थान सीमित करते जा रहे हैं. मुझे लगता है कि कई लोगों की शिकायत के बाद मेरा स्टेट्स डिलीट कर दिया गया. फेसबुक पर भी अब हम अपनी बात नहीं रख सकते, यह भयावह स्थिति है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि किस दबाव में फेसबुक ने मेरा स्टेट्स डिलीट किया.’
अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के बाद उनके समर्थन में किए गए फेसबुक पोस्टों पर भी जांच एजेंसियों की नजर टेढ़ी हो गई है. पेशे से पत्रकार हसन जावेद ने अफजल गुरू की फांसी पर फेसबुक पर सवाल उठाए थे. अब जांच एजेंसियों ने उनके अकाउंट को ही बंद करवाने की धमकी दी है.
हसन जावेद के मुताबिक कल से उनके पास नोटिस आ रहा है जिसमें कहा गया है कि जांच एजेंसियां आपके कंटेटं को रिव्यू कर रही हैं इसलिए आपके अकाउंट को सस्पैंड किया जाता है. मेरे फेसबुक से मैसेज भेजना का ऑप्शन भी ब्लॉक कर दिया गया था.
हसन जावेद और आलोक का मामला कोई अकेला नहीं है. कई और लोगों ने फेसबुक पर सेंसरशिप की बात कही है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या फेसबुक पर भी अब आजाद ख्यालों के लिए स्थान सीमित हो गया है?
इससे पहले जब अमेरिका में पैगंबर मुहम्मद पर बनी विवादस्पद फिल्म को यूट्यूब पर रिलीज किया गया था तब यूट्यूब ने अमेरिकी सरकार के आग्रह के बावजूद यह कहा था कि वह लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करती है और फिल्म को नहीं हटाएगी. इसके बाद दुनियाभर में दंगे हुए थे, सैंकड़ों लोगों की मौत हुई थी लेकिन फिर भी यूट्यूब ने फिल्म को नहीं हटाया था.
ऐसे में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पैमाना अलग-अलग लोगों या धर्मसमूहों के लिए अलग कैसे हो गया यह भी बड़ा सवाल है. धीरे-धीरे अंधराष्ट्रवाद की ओर बढ़ रहे भारत का यह एक खतरनाक दौर है जहां आम नागरिकों को अभिव्यक्ति की आजादी भी नहीं है.
आलोक कहते हैं, ‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि मैंने कौन सा कानून तोड़ा है, किसी के प्रति प्यार या सम्मान का प्रदर्शन करने से लोगों को कबसे ठेस पहुंचने लगी। अमेरिकी में संविधान में फर्स्ट अमेंडमेंट के बाद हेट स्पीच तक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई थी लेकिन हम तो प्यार की बात भी नहीं कर सकते. यह बेहद खतरनाक वक्त है.’
