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एसीपी जी.एल. सिंघल की गिरफ्तारी : मोदी सरकार के मुंह पर ज़ोरदार तमाचा

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ में आरोपी एसीपी जी.एल. सिंघल की गिरफ्तारी का स्वागत करते हुए इसे न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धी बताई है.

रिहाई मंच द्वारा जारी विज्ञप्ती में रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा कि यह गिरफ्तारी आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों की हत्या करने वाली नरेन्द्र मोदी सरकार के मुंह पर जोरदार तमाचा है. उन्होंने कहा कि यदि न्याय प्रणाली इस मसले पर ठीक से काम करे तो वह दिन दूर नहीं जब मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बल्कि इसी मामले में सलाखों के पीछे होंगे.

Photo Courtesy: hindustantimes.com

रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने कहा कि इस घटना से यह साफ हो जाता है कि राजनीतिज्ञों पर कथित हमले के नाम पर किए गए तमाम एनकाउंटर फर्जी हैं तथा ये हत्याएं राजनीतिक लाभ के लिए की जाती हैं. ऐसे में यह ज़रुरी हो जाता है कि उन तमाम घटनाओं की सीबीआई से जांच करवाई जाए जिसमें राजनेताओं पर आतंकवादी हमले के नाम पर मुस्लिम युवकों का कत्ल किया गया है या उन्हें जेलों में सड़ाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसके तहत यूपी में 2007 में राहुल गांधी पर हमलें के नाम पर दो यवकों को आतंकी कह पकड़ा गया, तो वहीं दिसंबर 2007 में तत्तकालीन मुख्यमंत्री मायावती की हत्या करने की साजिश के नाम पर चिनहट में कश्मीर से शाल बेचने आए दो युवकों की हत्या कर दी गई थी.

उस दौर के मीडिया रिपोर्टों में भी यह बात आई थी कि जब तत्कालीन एडीजी बृजलाल से पत्रकारों ने पूछा कि चिनहट में एनकाउंर कैसे हुआ तो बृजलाल ने कहा कि मारे गए युवकों के मोबाइल सर्विलांस पर थे जिसके ज़रिए उन्हें ट्रेस किया गया था, तो वहीं जब एक पत्रकार ने यह सवाल किया कि मारे गए दोनों युवकों के पास से कोई मोबाइल जब्ती नहीं हुई तो बृजलाल ने सवाल टाल दिया. ऐसे में तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल समेत इन दोनों अभियानों में शामिल पुलिस कर्मियों को जांच के दायरे में लाया जाए. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं चूंकि राजनीतिक कारकों से होती हैं जो सिर्फ अफसरशाही के इशारे पर नहीं हो सकतीं बल्कि सत्ताधारी पार्टी का नेतृत्व इसमें शामिल रहता है. इसलिए राहुल गांधी और मायावती को भी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए ताकि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर राजनेताओं और सुरक्षा एजेंसियों के बीच बने इस आतंकवादी गठजोड़ का खुलासा हो सके.

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