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BeyondHeadlines > India > यह ट्रेन क्या मेरे घर की है?
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यह ट्रेन क्या मेरे घर की है?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published February 14, 2013
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19 Min Read
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Anita Gautam for BeyondHeadlines

पिछले 25 जनवरी, 2013 किसी कारणवश मुझे अचानक मुंबई जाना पड़ा. तत्काल टिकट के लिए नई दिल्ली के आरक्षण केन्द्र पर  कोहरे और ठिठुरती ठंड में सुबह 7 बजे ही लाइन में लग गई. 10 बजे तत्काल काउंटर खुलने के 10 मिनट बाद मेरा नम्बर आया और कुल 3 घंटे 10 मिनट में लोगों की भीड़ में मुस्कुराते हुए गरीब रथ (12910) की टिकट मेरे हाथ में ऐसे सुशोभित हो रही थी कि मानों किसी प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त कर कोई मैडल ले कर आ रही हूं. किन्तु टिकट काउंटर पर बैठी कर्मचारी ने मुझसे पूछा कि बेड रोल (कम्बल, चादर और तकिया) लेंगी, मैंने मना किया क्योंकि आते समय कौन सी ट्रेन में सीट मिलेगी पता नहीं था, इसलिए मेरे लिए चादर और कंबल लेकर जाना  लगभग अनिवार्य ही था. किन्तु मेरे मना करने के बाद भी उसने 25 रू. अधिक लेकर 1090 रूपये की गरीब रथ (12910), में तृतीय वातानुकूलित श्रेणी की टिकट बना ही दी. बावजूद इसके मुझे ज़बरदस्ती 25 रूपये देने पड़े.

Train Ticket

मुंबई का तापमान जानने के बाद मैं इस उम्मीद से कि ट्रेन में कंबल और चादर तो मिलेगा ही, पहने हुए स्वेटर और ओढ़ी हुई शाल के अलावा कुछ भी गरम कपड़े नहीं ले गयी. किन्तु ट्रेन चलने के लगभग 10 मिनट बाद ही टीटीई महोदय, जिनका नाम उनके बैच पर लटके नाम के बाद भटनागर नजर आ रहा था, टिकट चेक करने आ गए. सामने की सीट पर बैठे मिनिस्ट्री ऑफ लेबर के अनुभाग अधिकारी उनसे किसी बात पर बहस कर रहे थे. जब मामला जानने की कोशिश की तब पता चला कि उनके तत्काल टिकट में जो आईडी संख्या दी गई थी, उसका मूल पहचान पत्र लाना भूल गए थे.

टीटीई ने चेतावनी देते हुए कहा कि या तो आप मथुरा स्टेशन पर उतर जाएं या पुनः फाईन सहित नई टिकट बनवायें. उनके चेहरे की परेशानी ठीक वैसी सी दिख रही थी जैसे मानों कोई बेचारा अपना लोन पास करवाने के लिए या किसी कागज पर हस्ताक्षर करवाने के लिए सरकारी बाबू के आगे-पीछे घूम रहा हो. उन्होंने रेल मंत्री के सीनियर पीपीएस से फोन पर बात करने का अनुग्रह भी किया, किन्तु टीटीई महोदय नई टिकट बनाने पर अड़े रहे. और हार उस अनुभाग अधिकारी को टिकट बनावानी ही पड़ी.

थोड़ी ही देर में टीटीई बोल पड़े हम क्या करें, रेल किराया बढ़ गया है, लिस्ट में मेरे पास 1 लाख रूपये से भी अधिक बढ़ी हुए रूपयों का ब्यौरा है, मुझे सबसे बढ़ी हुई टिकट का पैसा लेना है, मैंने भी टीटीई से पूछा, कि जिन लोगों ने पहले ही टिकट करवाई है, उनकी क्या गलती और रही बात रेल किराया बढ़ने की तो वह तो 21 जनवरी को बढ़ा है. टीटीई का कहना था, हम क्या करें, सरकार जो बोलती है, हमें तो वही करना है. खैर इन सब बातों मे 4 से 6 कब बज गए पता ही नहीं चला.

देखते ही देखते भोजन का आर्डर लेने वाला वृंदावन कैटर्स का एक आदमी हाथ में कागज़ और पैन लिये आया, हालांकि मैं तो घर से ही खाना ले ही गई थी, किन्तु फिर भी मैंने खाने का दाम पूछा और दाम सुनते ही, जो मेरे पास भोजन था उसकी भूख तक मर गई. 84 रूपये की थाली, जिसमें 2 पराठा, चावल, दाल और सब्जी थी.

मैंने कैटरिंग वाले से पूछा- अगर खाली दो पराठा ही लेना हो तो मिल सकता है क्या ? सका उत्तर था- नहीं, अलग-अलग कुछ नहीं मिलता. मैंने रेट लिस्ट दिखाने के लिए कहा तो बोला हमारे पास नहीं होती. इतने में वृंदावन कैटर्स का एक और कर्मचारी हाथ में पैन और कागज लेकर आया और बोला, जिसे बेड रोल चाहिए नाम लिखवा दीजिए, मुझे लगा मैंने तो पहले से ही 25 रूपये अपनी टिकट में बेड रोल के नाम दिए हैं, फिर ये मुझ से भी क्यों पूछ रहा है, पर मैं जब तक कुछ बोलती सामने सीट पर बैठे एक बुजुर्ग बोले बेटा मुझे बेड रोल चाहिए उनके कहने भर की देर थी, धीरे-धीरे लोगों ने बेड रोल लेने की बात कही और मैं स्वयं बेड रोल मांगने लगी पर मेरा नम्बर आते ही वो मुझसे 25 रूपये मांगने लगा. मैंने उसे अपनी टिकट भी दिखाई तो बोला, ये सरकारी बेडरोल नहीं है, प्राइवेट है. अगर चाहिए तो लो वरना कोई बात नहीं…

Bed Roll Slip

मुझे सरकारी और प्राइवेट बेडरोल का खेल समझ ही नहीं आ रहा था. पर ऐसा सिर्फ मेरे ही साथ नहीं हो रहा था. मेरे जैसे और भी लोग थे, जो परेशान थे. जैसे-तैसे मैं टीटीई की खोज में एक कोच से दूसरे कोच में लगातार बढ़ती जा रही थी, पर टीटीई का पता नहीं चल रहा था. फिर अचानक एक कोने में टीटीई महोदय नज़र आ ही गए. जब मैंने उनसे अपनी समस्या के बारे में बताया तो बोले मैं क्या करूं? आप हमारे सीनियर दीक्षित जी के पास जाइए. और मैं पुनः दीक्षित जी की खोज में आगे बढ़ने लगी. जी-10 नम्बर कोच से जी-6 में दीक्षित जी मिले.

जब उनसे बेड रोल के बारे में पूछा तो बोले मैं क्या करूं? यह ट्रेन क्या मेरे घर की है? जब हमारे पास बेड रोल नहीं है तो हम कहां से दें? मैंने उनसे कहा कि मैंने टिकट में बेड रोल के 25 रूपये अधिक दिए हैं मुझे या तो बेड रोल उपलब्ध कराइए या मेरा पैसा वापिस करिए. वो और तेज़ चिल्लाकर बोला- मैं क्यों पैसा वापिस करूं? मैंने लिया था क्या?

उसकी यह बात मुझे इस प्रकार चुभी मानों मैं भीख मांग रही हूं और वह किसी धनी व्यक्ति के समान मुझे दूत्कार कर भगा रहा हो. उसके मुंह से निकली यह बात पहले तो मैंने धैर्यपूर्वक सुनी फिर मैंने उससे पूछा कि ठीक है आप पैसा वापिस नहीं करेंगे. कोई बात नहीं फिर आप मुझे इस बात का जवाब दीजिए कि जो बढ़े हुए पैसे हैं, वो आप क्यों ले रहे हैं? सरकार कहां है? वो और झल्ला गया और बोला मेरे पास तुमसे बात करने की फुरसत नहीं. ज्यादा दिक्कत है तो जीएम के पास जाओ और जो करना है वो करो.

मैंने उससे बोला आप मेरी टिकट पर लिख भी दिजीए कि आप लोग बेड रोल नहीं देंगे. ट्रेन में बेड रोल नहीं है पर वो यह बात सुनकर मुझसे और चिढ़ गया और बोला मैं नहीं लिखता जाओ. अपने कोच के टीटीई से लिखवाओ. इसके बावजूद मैंने उसका बैच नम्बर पूछने की कोशिश की पर उसने मुझे बताने से साफ मना कर दिया. तमाम लोगों के बीच मैं शायद 25 रूपये के लिए तमाशा करती नज़र आ रही थी. कुछेक लोगों ने मुझे बोला भी कि अरे कोई नहीं सुनता, सब लोग बिके हुए हैं. आप अकेली हो, रात का समय है और दूर का सफर… अपनी चिंता करो. 25 रूपये के लिए मत उलझो. पर मेरे लिए बात 25 रूपये की नहीं थी. बात थी कि मुझे आरक्षण केन्द्र पर मेरे न चाहने के बाद भी ज़बरदस्ती बेड रोल के पैसे चुकाने पड़े और फिर जब ट्रेन में यह सुविधा है तो मैं क्यों इसका फायदा न लूं. उस बेड रोल की आस में मैं घर से कोई कम्बल या चादर तक नहीं लाई थी. एक दो लोगों ने मुझे उल्टा-सीधा भी कहा पर मैं जी-1 कोच के आखिर में जहां पैंट्री थी जीएम की खोज में अकेले ही चल पड़ी. पर मन में थोड़ा डर भी था कि न जाने क्या होगा? शायद पैंट्रीं में कोई भी न हो या शायद आदमी ही आदमी हों पर मेरी चाल ट्रेन की गति के साथ और मन के आए डर को अपने गुस्सा पर हावी किए आगे बढ़ रही थी.

मैं जैसे ही पैंट्री में पहुंची खाने के तमाम पैकेट, चद्दरें, कम्बल, और तकियों का ढेर लगा हुआ था. देखकर हैरानी हुई कि अभी तो टीटीई बोल रहा था कि बेड रोल नहीं है. फिर ये कहां से? तभी सामने बैठे तीन लोगों पर मेरी नज़र पड़ी जिसमें से एक टीटीई था. मुझे उसका नाम तो नहीं पता पर मैं अंदर आने की इजाज़त लेते हुए बिना पूछे उसके सामने वाली सीट पर बैठ गई और एक बार फिर अपना दुखड़ा एक नये राग के साथ गाने लगी. क्योंकि इस बार गुस्सा बहुत ज्यादा था. और अब न तो मेरे अंदर इतनी हिम्मत थी कि इधर-उधर भाग सकूं और न ही उम्मीद की अब कोई और सीनियर मेरी बात सुनेगा.

उन महानुभाव ने मेरी बात सुनी तो पर मेरे से मिलता जुलता एक नया दुखड़ा गा दिया. राग का मात्र इतना ही अंतर था कि हम क्या करें? सब कुछ प्राइवेट कांट्रेक्ट और सरकार के हाथ में है. 20 दिन से लगातार हमें रोज ऐसी परेशानी का सामना कर पड़ रहा है. और वो मेरी समस्या सुलझाना तो दूर मुझसे स्वंय पूछने लगे अब आप ही बताओ हम क्या करें?

मैंने उनसे कहा कि आप अपने अधिकारियों से शिकायत क्यों नहीं करते? वो बोले, कोई कुछ नहीं करता और हमेशा हमें ही भुगतना  पड़ता है. खैर, वहां जाकर मेरा उद्देश्य उनकी परेशानी का निवारण करना नहीं अपितु मेरी समस्या का समाधान करवाना था. पर अब मुझे साफ समझ आ रहा था कि ये लोग सब मिले हुए है. कोई कुछ नहीं करेगा. अब मेरे पास आखरी रास्ता शिकायत पुस्तिका में शिकायत लिखना ही था.

जैसे ही मैंने उनसे शिकायत पुस्तिका मांगी उन्होंने देने से साफ मना कर दिया. टीटीई के साथ बैठे एक शराब पीए हुए आदमी की नज़र काफी देर से मेरे ही उपर थी, जिसे मैं बार-बार नज़रअंदाज कर रही थी. काफी देर से वो चुप था, पर अब उसके मुंह से बकार फूट ही गई. मैडम इतनी रात में क्यों परेशान हो रही हो. शिकायत लिख कर क्या कर लोगी?

पर मैं भी जिद पर अढ़ गई और मैंने उनसे बोला- अगर मुझे शिकायत पुस्तिका नहीं दोगे तो मैं चैन पूल कर दूंगी और रही बात मेरी सुरक्षा की तो मेरे परिवार वालों को एक-एक घटना के बारे में पता है, अगर मुझे बांद्रा स्टेशन पहुंचने के बीच तक कुछ भी हुआ तो ड्यूटी पर लगे उपर से लेकर नीचे तक एक-एक कर्मचारी फसेंगे. अचानक जिनके लिए कुछ मिनट पहले तक मैं मैडम थी वो वही वरिष्ठ टीटीई महोदय बोले, बेटी अभी शिकायत पुस्तिका मगांता हूं और तुरंत कैटरिंग के मैनेजर को शिकायत पुस्तिका देने का इशारा किया.

मैं फिर से असमंजस्य में पड़ गई कि शिकायत पुस्तिका तो टीटीई के पास होनी चाहिए तो फिर ये इस प्राइवेट कांन्ट्रेक्टर से क्यों बोल रहे हैं? मैंने जैसे ही शिकायत लिखी कान्ट्रेक्टर ने शिकायत की प्रति मुझे दिए बिना ही तुरंत उसे अपने जेब मे रख लिया. मेरे मांगने पर भी उसने वो प्रति देने से आनाकानी की. उसने यहां तक बोला कि मैडम आप चिंता मत करिए. आपके लिए बेड रोल का प्रबंध हो जाएगा.

Railway Complaint

पर मुझे उस समय बेड रोल से ज्यादा उस प्रति की ज्यादा आवश्यकता थी. मैंने उस टीटीई को मेरी टिकट पर, ट्रेन में बेड रोल नहीं है लिखने के लिए कहा. किन्तु उन्होंने लिखने के लिए मना किया और फिर एक सलाह दी की अपने कोच के टीटीई से लिखवाओं.

खैर, शिकायत पुस्तिका में शिकायत लिखकर मेरे लगभग 3 घंटे और मानसिक शोषण की तो समाप्ति तो नहीं हुई पर मन में कुछ संतुष्टि ज़रूर हुई. और इस बात का आश्चर्य भी था कि पूरी ट्रेन में सिर्फ 3 ही टीटीई थे कोई ट्रेन सुपरिटेंडेंट तक नहीं था. पूरी ट्रेन में सुरक्षाकर्मी के नाम पर सीआरपीएफ का एक जवान तक नज़र नहीं आ रहा था. तीनों टीटीई अपनी जिम्मेवारी से पल्ला झाड़ते हुए एक दूसरे के पास यह बोल कर भेज रहे थे कि क्या मेरी तनख्वाह उससे ज्यादा है और एक दूसरे पर ही आरोप-प्रत्यारोप कर रहे थे.

वहां से बाहर निकलते हुए मैंने बेडरोल वाले को अपनी सीट पर बेडरोल देने के लिए कहा. वो मुझे 25 रूपये के बेडरोल  के 35 रूपये बता ही रहा था कि अंदर से निकला वो कान्ट्रेक्टर बोला, अरे ये क्या बोल रहो हो, नहीं! नहीं! मैडम 25 रूपये का ही है. आप अपने कोच में जाइए, अभी बेडरोल आता है.

मैं वहां से बेडरोल की 25 रूपये की अदायगी वाली पर्ची, शिकायत की प्रति हाथ में लिये गर्व से आगे बढ़ने लगी. तभी वो लोग जो तब 25 रूपये के लिए बवाल करने वाली लड़की बोल रहे थे, एकाएक बोले मैडम कुछ हुआ? अब क्या सबको बेड रोल मिल जाएगा? या आपके 25 रूपये वापिस मिले? मैंने मुस्कुराते हुए वो शिकायत की प्रति सबको दिखाई और कहा ये 25 रूपये से बढ़कर है, यदि आप लोगों को लगता है कि उस सरकार को जगाना ज़रूरी है, जो इतने दिनों पहले बुकिंग कराए लोगों से भी नये किराये की अधिक राशि वसूल कर रही है, जो सिर्फ जनता का पैसा लेना ही जानती है, तो आप लोगों को भी शिकायत ज़रूर करवानी चाहिए.

मुझे आश्चर्य हुआ कि उस युवा भीड़ को देखकर जो तुरंत एक समूह बनाकर शिकायत लिखने चल पड़े. यह सब देख कर मेरे कोच के टीटीई ने मजबुरन मेरे टिकट पर लिख दिया-बेडरोल नहीं है. पर अपने नाम के साथ हस्ताक्षर करने का कड़ा विरोध भी किया.

इस पूरी घटना से रात भर यह सोच कर नींद नहीं आई कि बिना बजट सत्र के रेलवे ने किराया किस आधार पर बढ़ाया? और जब किराया बढ़ाया भी तो उन लोगों के जेब से अतिरिक्त पैसे जाने का क्या मतलब? जिन्होंने 21 जनवरी से पहले ही टिकट बुक कराई थी. ये कौन सा कानून है? क्या रेलगाडि़यों में इस्तेमान होने वाले ईंधन के लिए भी भारतीय रेलगाडि़या ठीक उसी प्रकार पेट्रोल पंप की लाइन में खड़े हो ईंधन की टंकी फूल करवाती हैं, जिस प्रकार हम पेट्रोल के दाम बढ़ने के एक रात पहले अपने वाहनों की टंकी फूल करवाते हैं?

आप ही सोचिए कि क्या पवन बंसल के आते ही रेल मंत्रालय एकाएक घाटे में चला गया. जिसके कर्मचारी आरक्षण सीट से लेकर टीटीई सब, हम आम आदमी से जबरन वसूली कर रहे हैं. रेल मंत्रालय का असली चेहरा तो 26 फरवरी को बजट सत्र के दौरान फिर सामने आएगा पर हाल ही के एक समाचार के अनुसार राजधानी, शताब्दी और दुरंतों में 15-20 रूपये की बढ़ोतरी भी होने वाली है.

रेलवे उस खाने के भी दाम बढ़ाने की बात कर रही है, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से एकदम घटिया है. जिसे बिना किसी जांच के लोगों के सामने परोस दिया जाता है. यह वह भोजन होता है जिसमें शायद कई बार कीड़े और बाल मुफ्त में मिलते हैं. ऊपर से रेल नीर की सिल बंद पानी की बोतल के नाम पर हमें घाट-घाट का पानी न चाहते हुए भी पीना ही पड़ता है. बात चाय कि की जाए तो जिस चाय का दाम 5 रूपये में 150 एमएल होता है, उसे 7 रूपये में 75 एमएल से भी कम में दिया जाता हैं. बेडरोल के नाम पर मैली चादर, किनारों से फटे कंबल मिलते हैं और गलती से आपको इतने घंटे की यात्रा में शौचालय जाना पड़ जाए तो नाक पर कपड़ा बांधते हुए सांस बंद तक करना पड़ता है और उस शौचालय में पानी का होना असंभव ही होता है.

क्यों एक ही कांट्रेक्टर को भोजन, सफाई और बेड रोल जैसी तमाम सुविधा मुहैया करवाने के नाम कांट्रेक्ट दिया जाता हैं? जहां तक  मुझे ज्ञात है, हर सुपरफास्ट ट्रेन के हर कोच में एक टीटीई का होना अनिवार्य होता है और हर ट्रेन में एक गाड़ी अधीक्षक (Train Superintendent) का होना अनिवार्य होता है फिर भी देश में रेल सेवा भगवान भरोसे ही चल रही है. सुरक्षा के नाम पर किसी पुलिसकर्मी की तैनाती नहीं होती. इसके चलते न जाने कितनी लड़कियां बलात्कार का शिकार भी हो जाती हैं.

वास्तव में भारतीय रेल की यात्रा इतनी कष्टदायक होती है कि आप और मेरे जैसे इंसान को सफर में सफर करना पड़ता है और नास्तिक से नास्तिक इंसान भी उस समय भगवान को याद कर ही लेता है. हंसी आती है, भारतीय रेल के टिकट के ऊपर लिखी उस पंक्ति को पढ़ कर- जिसमें लिखा होता है शुभ यात्रा, किन्तु ये सरकार की चेतावनी है या सलाह, समझ नहीं पाती? क्या आपको नहीं लगता कि देश में स्वास्थ्य, सुरक्षा या परिवहन के नाम पर आम आदमी को ही कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है?

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