‘लाश’ ने हाथ उठाया और कहा कि मैं ज़िन्दा हूं…

Beyond Headlines
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Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

हैदराबाद : “आतंकवाद के साथ धर्म को जोड़ना सही नहीं है. सच तो यह है कि हमारी पुलिस प्रशासन बेलगाम हो चुकी है. मुझे तो लगता है कि सरकार के हाथ से पुलिस की बागडोर निकल चुकी है, उसे हमारी एजेंसियां ही चला रही हैं. मैं भारत वासियों से यही कहना चाहुंगा कि आतंकवाद के खिलाफ एक साथ उठ खड़े हों. और इसकी सही जांच पड़ताल की मांग होनी चाहिए ताकि कोई बेगुनाह न फंसे. अगर बेगुनाहों को इस तरह के मामलों में फंसाया गया तो हमारा देश खतरे में पड़ जाएगा.”

यह विचार 45 साल के मोहम्मद अब्दुल समद के हैं, जो पेशे से हिन्दी व राजनीतिक विज्ञान के शिक्षक हैं. हैदराबाद ब्लास्ट में ज़ख्मी होने वाले लगभग 119 लोगों में समद भी शामिल है. इन्हें यसोधा अस्पताल में भर्ती कराया गया है. मूल रूप से करीमनगर जिले के रहने वाले अब्दुल समद बतौर गेस्ट लेक्चरर हैदराबाद में काम करते हैं. इसके अलावा वो एक सामाजिक कार्यकर्ता व ग्रामीण शिक्षा व विकास अनुसंधान में एजुकेशनल एडवाईजर हैं. समद अपनी बीवी व तीन बच्चों के साथ करीमनगर में किराए के मकान में रहते हैं. अब वो इस बात से परेशान हैं कि उनका घर कैसे चलेगा? किराया कहां से आएगा?

Mohd. Abdus Samad

जब हमने उनसे 21 फरवरी के घचना के बारे में पूछा तो समद बताते हैं कि वो हिन्दी अकाडेमी में कार्यरत अपने एक मित्र से मिलने के लिए हैदराबाद आए थे. वह अपने मित्र से मिलने के बाद बस स्टॉप पर बैठे ही थे कि धमाका हो गया. हमारी कान के परदे बंद हो गए और आंखों के सामने बिल्कुल अंधेरा. आगे उस दिन को याद करते हुए वह कहते हैं कि ‘मुझे लाशों के बीच डाल दिया गया था. जब मुझे थोड़ा होश आया तो मैंने आवाज़ लगाई, अपना हाथ उठाया तब मुझे अस्पताल पहुंचाया गया.’

समद का एक बेटा और दो बेटियां हैं. अस्पताल में भर्ती समद को अपने परिवार के पालन-पोषण की चिंता सता रही है. उनकी पत्नी शुरूर फातिमा पास ही बैठी हैं. 9वीं क्लास में पढ़ने वाला बेटा अम्मार समद भी अपने पिता को इस हालत में देखकर उदास है.

समद बताते हैं कि अस्पताल में घायलों को देखने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी आए थे. लेकिन समद को इस बात का गुस्सा है कि वो दूर से ही नमस्कार करके चले गए. वह कहते हैं, ‘धमाके में घायल लोगों की सरकार को मदद करनी चाहिए. मैं अकेला कमाने वाला हूं. और डॉक्टर ने मुझे दो-तीन महीने आराम करने को बोला है. मेरे पूरे परिवार पर अब संकट खड़ा हो गया है. समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अब क्या करूं? बच्चे परेशान हैं और उनके पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है.’

समद चाहते हैं कि आतंकवाद जैसे समस्या का निवारण इस देश में जल्द से जल्द से किया जाए. वो कहते हैं कि हैदराबाद में यह तीसरा धमाका है, और इसमें नुकसान हम जैसे आम लोगों का ही हुआ है. यह कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ जाता है कि मैं तो फिर भी अपनी जिन्दगी जी चुका हूं, लेकिन उनका क्या कसूर जिन्होंने अभी अपनी ज़िन्दगी की शुरूआत की है. जिनके आंखों में न जाने कितने सपने पल रहे थे. आगे वो बताते हैं कि मरने व घायल होने वालों में अधिकतर संख्या ऐसे छात्रों व युवाओं की थी जो किताबें खरीदने या कोचिंग के लिए आए हुए थे. उनके परिवार पर क्या बीत रही होगी? और अफ़सोस अब इसके बाद इस मामले में ज़्यादातर गिरफ्तारियां युवाओं की ही होंगी. वो और भी ज़्यादा खतरनाक है. ज़रा सोचिए कि उस पर क्या गुजरती होगी जो लगातार 14-15 साल तक हर दिन मरता है और फिर उसके बाद वो अदालत से बेगुनाह साबित होता है.

समद का मानना है कि नेता लोग ही ज़्यादातर ऐसे घटनाएं कराते हैं, ताकि अपनी राजनीतिक रोटी सेंक सकें. क्योंकि ऐसा काम एक साधारण मानव नहीं कर सकता. खैर, जो भी ज़िम्मेदार है उन्हें हर हाल में सज़ा मिलनी चाहिए. वो सिर्फ इस देश का अपराधी नहीं बल्कि पूरी मानवता का मुजरिम है.

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