BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने लियाकत शाह की गिरफ्तारी को फर्जी क़रार देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के खिलाफ मुक़दमा दर्ज करने की मांग की है. साथ ही इस गिरफ्तारी में शामिल पुलिस अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की भी मांग की है.
रिहाई मंच के महासचिव पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस आर दारापुरी ने कहा कि लियाकत शाह की गिरफ्तारी फर्जी है क्योंकि दिल्ली पुलिस ने सुनौली में उनकी गिरफ्तारी के बारे में स्थानीय पुलिस को नहीं बताया. जबकि गिरफ्तारी की कानूनी प्रक्रिया के अनुसार दिल्ली पुलिस को स्थानीय पुलिस को साथ लेकर लियाकत को गिरफ्तार करके सुनौली थाने में दाखिल करना चाहिए था और उसके बाद स्थानीय न्यायालय में प्रस्तुत करके उस का ट्रांजिट रिमांड लेकर ही दिल्ली ले जाना चाहिए था. परन्तु दिल्ली पुलिस द्वारा कानून का कोई भी पालन नहीं किया गयाय. इस प्रकार दिल्ली पुलिस द्वारा लियाकत की की गयी गिरफ्तारी गैर कानूनी है. लेहाजा सपा सरकार दिल्ली पुलिस स्पेशल के अधिकारियों पर तत्काल अपहरण का मुकदमा दर्ज करे.
रिहाई मंच के महासचिव ने दिल्ली पुलिस पर हाजी अराफात गेस्ट हाउस में हथियार खुद रखने और बाद में हथियारों का ज़खीरा बरामद दिखाने का आरोप लगाते हुये कहा कि दिल्ली पुलिस के इस तर्क को कि जम्मू कश्मीर पुलिस ने लियाकत के आत्मसमपर्ण करने की योजना की जानकारी उसे नहीं दी थी को अगर सही मान भी लिया जाये तो क्या इस से दिल्ली पुलिस को लियाकत को गलत ढंग से गिरफ्तार करके फर्जी केस में फंसाने का अधिकार मिल जाता है? उन्होंने दिल्ली पुलिस द्वारा जारी कथित आतंकी के स्केच पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि सीसीटीवी फुटेज में दिखने वाला कथित आतंकी स्पोर्ट्स कैप पहना है जबकि पुलिस द्वारा जारी स्केच में उसे मुस्लिम पहचान वाली टोपी पहने दिखाया गया है. इसीतरह फुटेज में दिखने वाले व्यक्ति के पास सिर्फ एक बैग है जबकि बरामदगी में कई बैग दिखाए गए हैं. जिससे दिल्ली पुलिस की मुस्लिम विरोधी कार्यप्रणाली का अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस तरह वह षडयंत्र रचती और बेगुनाह मुस्लिम युवकों को फंसाती होगी.
उन्होंने कहा कि यदि केंद्र सरकार सचमुच आतंकवाद से लड़ना चाहती है तो उसे दिल्ली में पूर्व में त्यौहारों के समय हुये सभी आतंकी घटनाओं की जांच करानी चाहिये क्योंकि इन कथित आतंकी घटनाओं पर मानवाधिकार संगठनों द्वारा काफी सवाल उठाए जा चुके हैं. जो लियाकत शाह के प्रकरण के खुल जाने के बाद और भी ज़रूरी हो जाता है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मो शुऐब ने कहा लियाकत शाह की फर्जी गिरफ्तारी की पोल खुल जाने के बाद अब केंद्र सरकार इस पूरे प्रकरण से संदेह में आई आईबी की भूमिका पर पर्दा डालने की कोशिश कर रही है. इसीलिये सरकार अब सिर्फ दिल्ली और जम्मू कश्मीर पुलिस के बीच के तकनीकी अन्र्तविरोधों को इस घटना के लिये जिम्मेदार बताने की कोशिश कर रही है.
जबकि इस पूरे प्रकरण में खुफिया विभाग की भूमिका सबसे बड़े अपराधी की रही है. उन्होंने कहा कि एक तरफ तो केंद्र सरकार आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने के लिये फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने की बात कर रही है. लेकिन वहीं दूसरी ओर आतंकवाद के मामलों में निर्दोष मुस्लिमों को फंसाने वाले दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल के संजीव यादव जैसे साम्प्रदायिक और आपराधिक प्रवित्ति के अधिकारियों को बचाने में लगी है.