आईए! अब हिन्दी को बढ़ावा दें…

Beyond Headlines
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Anita Gautam for BeyondHeadlines

लंबे समय से चल रही भारतीय भाषा की बयार अब तुफान का रूप ले चुकी है. लोग पुनः हिन्दी, और हिन्द की बातें दोहराने लगे हैं. इस उम्मीद से कि शायद अब कुछ परिवर्तन आए. पर आज भी देश के ऐसे तमाम विद्यालय हैं जिनमें मैकाले की आत्मा बसी हुई है. यह इतनी दुष्ट और ताकतवर आत्मा है कि इसे पुस्तकों से निकाल फेंकने में बहुत ओझैती करने की ज़रूरत पडेगी.

इसकी जडें शायद बहुत नीचे तक जा बसीं है जिसे उखाड़ फेंकने में अभी और वक्त लगेगा. समाज में कई क्षेत्र ऐसे है जहां हिन्दी और हिन्दीभाषियों के साथ सौतेले से भी बद्तर व्यवहार किया जाता है. हमारे ही देश में जन्म लिये युवा और खासतौर से युवतियां, जो दूसरों को प्रभावित अथवा अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अंग्रेजी बोली का इस्तेमाल करती हैं. आप भी कभी गौर करिएगा कि अक्सर युवतियां लोगों की भीड़ में अंग्रेजी में बात करती हैं, मैं स्वयं लड़की हो कर इस बात की तह तक नहीं जा पाई आखिर वो अंग्रेजी बोलकर साबित क्या करना चाहती हैं?

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अंग्रेजी एक विषय हो सकता है, पर भारत की भाषा नहीं. लोग अंग्रेजी बोलचाल को अपना हाई स्टेटस मानते हैं. सरकारी दफ्तरों के कुछ विभागों को छोड़ दिया जाए तो शायद ही सरकारी अथवा गैर-सरकारी क्षेत्र में लोग हिन्दी का प्रयोग करते हों. अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र से लेकर संसद तक में अंग्रेजी का ज़बरदस्त फैशन है. फिल्म इंगलिश-विंगलिश देखकर हैरानी हुई कि जन्म देने वाली मां, जिसने अपने बच्चे को बोलना, खाना, चलना तक सिखाया वो बच्चे अंग्रेजी में बातचीत न कर पाने वाली मां को कैसे समाज से दूर रखते हैं.

भारत में न जाने ऐसे कितने अंग्रेजी स्पीकिंग कोर्सों की दुकान चल रही है जो 30 दिन 45 दिन में फर्राटेदार अंग्रेजी सिखाने का दावा करती है, शर्म की बात है लोगों को ठीक प्रकार हिन्दी बोलनी और लिखनी तो आती नहीं और मुंह उठाए चल देते हैं दूसरों की नकल करने. वहीं दूसरी ओर भाषाओं की जननी संस्कृत की बात की जाए तो लोग संस्कृत का संबंध सिर्फ पूजा करने वाले पंडित से ही जो़डते हैं. उन्हें लगता है पंडित जी को संस्कृत के 2-4 श्लोक पढ़कर पूजा करना होता, इससे हमें क्या मतलब. पर वह लोग भूल जाते हैं कि संस्कृत के मंत्रों में इतनी शक्ति होती है कि मृत्युशैय्या पर पड़ा व्यक्ति ठीक हो जाता है.

यही मीठी भाषा मानी जाने वाली उर्दू को भी लोगों ने नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया है. यही हाल दिल्ली की दूसरी सरकारी भाषा माने जाने वाली पंजाबी का भी है. सरकार स्कूलों में अंग्रेज़ी शिक्षा पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान दे रही है. आरटीआई से मिले आंकड़ें बताते हैं कि दिल्ली के नर्सरी व मिडिल स्कूलों में हिन्दी भाषा के लिए कुल 4606 शिक्षकों के पद रखे गए हैं, जिनमें 3376 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत हैं. यानी 1230 (26%) शिक्षकों के पद फिलहाल रिक्त हैं. यही नहीं, संस्कृत भाषा के लिए भी कुल 4179 शिक्षकों के पद रखे गए हैं, जिनमें 2463 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत हैं. यानी 1716 (41%) शिक्षकों के पद फिलहाल रिक्त हैं. दिल्ली में दूसरी सरकारी भाषा मानी जाने वाली उर्दू भाषा के लिए सिर्फ 262 शिक्षकों के पद ही रखे गए हैं, जिनमें 70 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत हैं. 192 यानी 73% शिक्षकों के पद फिलहाल रिक्त हैं. यही हाल दिल्ली में पंजाबी का भी है. पंजाबी भाषा के लिए कुल 254 शिक्षकों के पद रखे गए हैं, जिनमें 150 पदों पर ही शिक्षक कार्यरत हैं. यानी 104 (40%) शिक्षकों के पद फिलहाल रिक्त हैं. जबकि दूसरी तरफ अंग्रेज़ी भाषा के लिए कुल 5096 शिक्षकों के पद रखे गए हैं, जिनमें 3438 पदों पर शिक्षक कार्यरत हैं. यानी 1658 (32%) शिक्षकों के पद फिलहाल रिक्त हैं.

खैर, मेरा आप सभी बंधुओं से निवेदन है कि अपने दैनिक जीवन में हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करें. दफ्तरों में नोटिंग और ड्राफिटंग करने में हिन्दी को बढ़ावा दें, यदि आप किसी कारणवश हिन्दी मे कुछ लिख नहीं पाते तो कम से कम अपने हस्ताक्षर तो हिन्दी में करिए. मेरे, आपके और हमारे छोटे-छोटे प्रयासों से बहुत बदलाव हो सकता है.

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