BeyondHeadlines News Desk
उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) द्वारा जारी किया गया एक पम्फलेट…
दोस्तों,
सीओ जिया उल हक़ की हत्या ने साफ कर दिया है कि सपा के जंगल राज में सिर्फ आम आदमी ही नहीं, ईमानदार पुलिस अधिकारी भी सुरक्षित नहीं हैं. और सरकार जनता के प्रति वफादार होने के बजाय सदियों से शोषितों का खून चूसने वाले सामंतवाद के प्रतीक रघुराज प्रताप सिंह जैसे आदमखोरों के लिए काम कर रही है. इस हत्या कांड में मारे गये ग्राम प्रधान नन्हें यादव और सुरेश यादव के परिजनों और जिया उल हक़ की विधवा परवीन आजाद के बार-बार कहने के बावजूद कि उनके पति की हत्या रघुराज प्रताप के इशारे पर हुई है और सरकार उसे गिरफ्तार तक नहीं कर रही है.
यहां यह जान लेना भी ज़रूरी होगा कि जिया उल हक़ आगामी 12 मार्च को पिछले साल अस्थान, प्रतापगढ़ में रघुराज प्रताप के गुंडों द्वारा किये गये अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा पर हाई कोर्ट में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने वाले थे. जाहिर है उनकी हत्या के तार अस्थान कांड से भी जुड़े हैं. इसलिये सिर्फ जिया उल हक की हत्या की ही नहीं अस्थान कांड की भी जांच सीबीआई से करायी जाये तभी इस हत्या कांड की सच्चाई सामने आएगी.
दोस्तों, यह वही रघुराज है जिसका परिवार सदियों से कमजोर तबके के लोगों का खून चूस रहा है, चुनावों में गरीबों का वोट जबरन अपने पक्ष में डलवाता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वो अपने विरोधियों को पालतू मगरमच्छों के सामने डाल देता है. लेकिन अपने को समाजवादी कहने वाले मुलायम इस दरिंदे को कभी सरकार बनते ही जेल से बाहर लाते हैं तो कभी मंत्री बनाकर इसकी ताजपोशी करते हैं. आज ज़रुरी हो जाता है कि हम जिया उल हक़ की विधवा परवीन आजाद के संघर्ष में शामिल होकर इस दरिंदे को जेल भिजवाने की मुहीम का हिस्सा बनें और जिया उल हक़ की हत्या को गुड़ों की इस सरकार के ताबूत में अंतिम कील बना दें. आईए, इंसानियत के हक़ में हम यह जंग ज़रूर जीतें.