BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : सपा सरकार के एक साल पूरे होने पर उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच द्वारा यूपी प्रेस क्लब लखनऊ में आयोजित सम्मेलन में सरकार को वादा खिलाफ सांप्रदायिक और सामंती करार दिया गया. इस दौरान मंच ने सपा सरकार के शासन में हुए दंगों में सरकारी मशीनरी की भूमिका पर ‘मुसलमानों को न सुरक्षा, न निष्पक्ष विवेचना न न्याय’ रिपोर्ट को जारी करते हुए प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में तस्दीक किए गए 27 सांप्रदायिक दंगों की सीबीआई जांच कराने की मांग की गई.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए अवामी काउंसिल के महासचिव व रिहाई मंच नेता असद हयात ने कहा कि पुलिस द्वारा दंगों से जुड़े मुक़दमों की विवेचना निष्पक्षता पूर्वक नहीं की जा रही है. वरुण गांधी से संबधित मुक़दमें में सरकारी वकील की भूमिका अभियोग पक्ष को मज़बूत करने की न होकर बचाव पक्ष को लाभ पहुंचाने की रही. तो वहीं पिछले दिनों सीओ जियाउलहक की हत्या के बाद चर्चा में आए अस्थान प्रतापगढ़ सांप्रदायिक हिंसा में प्रवीण तोगडि़या के भड़काऊ भाषण देने और उसके नतीजे में उनकी मौजूदगी में मुसलमानों के घर लूटने और आगजनी की घटनाओं में उन्हें अभियुक्त नहीं बनाया गया.
फैजाबाद, कोसी कलां, अस्थान, बरेली, डासना, मसूरी समेत सभी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की जांच सीबीआई द्वारा कराया जाना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इन दंगों में पुलिस स्वंय एक पक्षकार की भूमिका में रही है जो अपने ही विरुद्ध पाए जाने वाले सबूतों को न केवल मिटा रही है बल्कि गवाहों को भी प्रताडि़त कर निष्पक्ष जांच को प्रभावित कर रही है. कोसी कलां के खालिद और भदरसा फैजाबाद के सद्दू पर रासुका लगाना अन्यायपूर्ण है, जिसे वापस लिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा आरडी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट जारी न करने के खिलाफ वह कोर्ट जाएंगे.
रिहाई मंच के महासचिव व पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि सपा सरकार में मुसलमानों, दलित-वंचित तबकों पर सामंती हमले बढ़े हैं. मुलायम सिंह ने जनता द्वारा पूर्ण बहुमत से भेजे जाने पर जनता को नए तरह का सामंती निजाम तोहफे में दिया है. इन तबकों पर होते जुल्म को देख कर ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश सामंती युग में चला गया है जहां सरकार आम जनता के बजाय सामंती ताकतों के पक्ष में काम कर रही है.
ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष लालबहादुर सिंह ने कहा कि कुंडा के सीओ जियाउलहक की हत्या साबित करती है कि समाजिक न्याय के नाम पर वोटों की सौदागरी करने वाली सरकार रघुराज प्रताप सिंह जैसे सामंतों से लड़ने वालों को बर्दाश्त नहीं कर सकती. उन्होंने कहा कि सपा का अवसरवादी धर्मनिरपेक्षता मोदी के फांसीवाद से नहीं लड़ सकता. ऐसे में ज़रुरी हो जाता है कि तमाम धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतें एक नए विकल्प की तैयारी करें.
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे ने सम्मेलन में अफ़ज़ल गुरु द्वारा जेल से भेजे गए पत्र को पढ़ा जिसमें उन एसटीएफ और खुफिया विभाग के अधिकारियों का जिक्र था जिन्होंने उन्हें संसद हमले में फंसाया और फांसी तक पहुंचा दिया. उन्होंने आगाह किया कि अंधराष्ट्रवाद के नाम पर जिस तरह कांग्रेस भावनाओं को भड़का रही है वो देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.
इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मुस्लिम मशावरत के महासचिव मो0 सुलेमान ने कहा कि अब देश को सोनिया और मुलायम जैसे सांप्रदायिक और अमरीका के इशारे पर घुटने टेकने वाले लोगों के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता. उन्होंने कहा कि मशावरत दिसंबर में आतंकवाद के नाम पर निर्दोषों को फंसाने वाली राजनीत पर श्वेतपत्र लाएगी. उन्होंने कहा कि इस श्वेतपत्र से भाजपा समेत तमाम कथित सेक्युलर पार्टियां आवाम के बीच नंगी हो जाएंगी.
एपवा नेता ताहिरा हसन ने कहा कि एक गुंडा जिसको हर बार सपा सरकार जेल से निकालकर कभी जेल मंत्री बनाती है तो कभी हत्याओं की खुली छूट देती है वह न राजा है न भैया है. क्योंकि लोकतंत्र में न कोई राजा होता है न कोई ऐसा भाई होता है जो किसी बहन का सुहाग उजाड़ दे और जिसके गुंडे सरेआम बलात्कार करते हों. उन्होंने मीडिया से अपील करते हुए कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है इसलिए उसे लोकतांत्रिक मूल्यों का परिचय देते हुए रघुराज प्रताप को राजा भैया न लिखे.
सम्मेलन में मौजूद आतंकवाद के नाम पर कैद लखनऊ के फरहान की बहन साइमा ने कहा कि सपा हुकूमत से उम्मीद थी की उनके भाई छूट जाएंगे, लेकिन बेगुनाहों को छोड़ने के अपने चुनावी वादे से मुकरने से उन जैसे तमाम परिवारों को निराशा हुई है, जिनके बच्चे बिना किसी जुल्म के आतंकवाद के मामले में बंद किए गए हैं.
मौलाना मोहम्मद जमील ने कहा कि कुछ उलेमा और मुस्लिम नेता हुकूमत के इशारे पर बेगुनाहों को छुड़वाने के नाम पर जनता को गुमराह कर रहे हैं जिससे जनता को चौकन्ना रहना होगा.
राष्ट्रीय मुस्लिम संघर्ष मोर्चा के नेता आफताब खान ने कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगे के विरोध में तमाम सिख सांसदों ने संसद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन 27 दंगे और बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर आज़म खान और अहमद हसन जैसे तमाम नेताओं की ज़बान नहीं खुलती और वे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुलायम जैसे फिरकापरस्त के साथ चिपके रहते हैं. उन्होंने कहा कि सपा के तमाम मुस्लिम सांसदों और विधायकों को अवाम से यह बताना चाहिए कि इतना कुछ हो जाने के बावजूद वे सपा में क्यों बने हुए हैं.
रिहाई मंच इलाहाबाद के संयोजक राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि साल भर में तीन हजार बलात्कार, चार हजार हत्याएं और 27 दंगे कराने वाली सरकार ने प्रदेश में गुंडा राज ही नहीं मोदी राज भी कायम कर दिया है जिसे 2014 में जनता सबक सिखाएगी.
सम्मेलन की अध्यक्षता रिहाई मंच के अध्यक्ष मो0 शुएब ने की और संचालन रिहाई मंच आज़मगढ़ के संयोजक मसीहुद्दीन संजरी ने किया. सम्मेलन को सोशलिस्ट फ्रंट ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष मो आफाक, अनिल आज़मी, मो आरिफ, जहांगीर आलम कासमी, मो0 समी, दिनेश सिंह, केके वत्स, रणधीर सिंह सुमन इत्यादि ने संबोधित किया.
सम्मेलन में बलबीर यादव, अबु जर, गुफरान, मोईद अहमद, आफताब, प्रबुद्ध गौतम, शुभांगी, आसमा, अंकित चौधरी, सीमा, संदीप दूबे, विवेक गुप्ता, सादिक, संजीव पांडे, समीना बानो, बाबी रमाकांत, इशहाक, बृजेष पांडे, शोभा, योगेन्द्र यादव, शाहनवाज आलम, राजीव यादव आदि सम्लित थे.
