BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Reading: नई दवा-नीति का सच…
Share
Font ResizerAa
BeyondHeadlinesBeyondHeadlines
Font ResizerAa
  • Home
  • India
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Search
  • Home
  • India
    • Economy
    • Politics
    • Society
  • Exclusive
  • Edit/Op-Ed
    • Edit
    • Op-Ed
  • Health
  • Mango Man
  • Real Heroes
  • बियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी
Follow US
BeyondHeadlines > India > नई दवा-नीति का सच…
IndiaLatest NewsLeadबियॉंडहेडलाइन्स हिन्दी

नई दवा-नीति का सच…

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 20, 2013 1 View
Share
7 Min Read
SHARE

Ashutosh Kumar Singh for BeyondHeadlines

पिछले 15 मार्च, 2013  को दिल्ली में दवा दुकाने बंद रहीं थी. क्योंकि केमिस्ट एसोसिएशन से जुड़े लोग नई दवा-नीति-2012 का विरोध कर रहे हैं. उनका तर्क है कि नई दवा-नीति लागू होने से उनके मुनाफे पर असर पड़ेगा. एसोसिएशन का यह तर्क सत्य की कसौटी पर कहीं भी खड़ा नहीं उतर रहा है. बल्कि सच पूछिए तो मुझे दाल में कुछ काला होने की आशंका है.

7 दिसम्बर 2012 को ‘भारत का राजपत्र’ में रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय (औषध विभाग) द्वारा जारी अधिसूचना को यदि गौर से पढ़ा जाए तो स्पष्ट हो जायेगा कि राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण नीति-2012 (एनपीपीपी-2012) को बनाते समय जनहित को पूरी तरह से नकार दिया गया है.

Photo Courtesy: www.thehindubusinessline.com

नई दवा-नीति को तीन सिद्धांतों के अंतर्गत तैयार हुई है. पहला *औषधियों की आवश्यकता* का सिद्धांत है, जिसके पक्ष में सरकारी तर्क है कि इस सिद्धांत के आधार पर ही सरकार ने ज़रूरी दवाइयों की नई सूची जारी की है और इन दवाइयों से देश की आबादी की प्राथमिक स्वास्थ्य ज़रूरतों की पूर्ति होती है. वहीं दूसरी तरफ दवा के जानकारों का मानना है कि नई दवा-सूची जिसमें 348 दवाइयों को शामिल किया गया है, ऊंट के मुंह में जीरा के फोरन के समान है.

दूसरा सिद्धांत है *केवल फार्मुलेशनों के मूल्यों का नियंत्रण*. इसके तहत सरकार इस मसौदे में लिखती है- राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण नीति-2012 में उल्लेखित दवाइयों का विनियमन केवल फार्मूलेशन के मूल्यों के विनियमन के आधार पर किया जायेगा. सरकार ने मसौदे के पैरा 3.2(iii)  में तर्क दिया है- बल्क औषधि और फार्मूलेशन दोनों के मूल्य निर्धारण का कार्य बहुत जटिल हो जाता है तथा उसमें बहुत समय लगता जो अंतिम अंत्य उत्पाद अर्थात् फार्मूलेशन (इसके बल्क घटकों से भिन्न बल्क औषधि से निर्मित) के मूल्य से वास्तव में दुष्प्रभावित होता है.

इस सिद्धांत के पक्ष में पैरा 3.2(v) में सरकार अपनी बात रखते हुए आगे लिखती है-चूकि बल्क औषधि विनिर्माता को नियत मूल्य पर बेचनी होती है इसलिए निर्माता सदैव संभावित नए क्रेता के स्थान पर मौजूदा क्रेता को वरीयता देता है. इससे मूल्य नियंत्रण क्षेत्र में नई कंपनियों और फार्मूलेशनों का उदय होता है और यह प्रक्रिया स्वभाविक रूप से प्रतिस्पर्धा के विरुद्ध होती है और इसके कारण उपभोक्ता भी लाभान्वित नहीं होता.

इस मसले पर सामाजिक चिंतकों का मानना है- औषधि जीवन-मरण से जुड़ा मसला है, इसको बाजार के खेल में शामिल ही क्यों किया जा रहा है?

अब बात करते हैं कि तीसरे सिद्धांत अर्थात् *बाजार आधारित मूल्य निर्धारण *की. इस सिद्धांत को लेकर सबसे ज्यादा विवाद है. मसौदे के पैरा ( 3.3 ) में लिखा है- राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण नीति, 2012 में औषधियों के मूल्यों का विनियमन बाजार आधारित ( एमबीपी ) के जरिए फार्मूलेशनों के मूल्यों के विनियमन के आधार पर होगा. इसके तर्क में पैरा (3.3(i)) में सरकार की शब्दावली कुछ इस तरह से है- लागत आधारित मूल्य नियंत्रण के अधीन औषधियों के मूल्य की गणना हर वर्ष विस्तार से की जानी होती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के जटिल आंकड़ों की आवश्यकता होती है. इसके लिए निर्माताओं (दवा) से अपेक्षा की जाती है कि वे अत्यधिक विस्तृत तरीके से अपने मूल्य निर्धारण आंकड़े दें जिससे अनुचित हस्तक्षेप होता है और अलग-अलग निर्माताओं द्वारा इसका विरोध भी किया जाता है, परिणामतः जोड़-तोड़ की आशंका होती है और आधार लागत संबंधित आंकड़ों को देने में विलंब होता है. अलग-अलग निर्माताओं द्वारा दिए गए आंकड़ों की समय पर तथा पर्याप्त ढ़ंग से उचित जांच करना भी कठिन हो जाता है. तदनुसार उत्पादन के लिए प्रयुक्त प्रौद्योगिकियों के आधार पर उत्पादन लागत के संदर्भ में आंकड़ों में भिन्नता हो सकती है.

इसी तरह पैरा ( 3.3 (iv) ) में सरकार का तर्क है- भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्यतः बाजार संचालित है, विशेष रूप से निर्मित उत्पादों के मूल्य निर्धारण के क्षेत्र में मूल्यों का निर्धारण बाजार स्थितियों तथा बाजार ताकतों द्वारा होता है. निर्देशित मूल्य केवल कुछेक क्षेत्रों में मौजूद है, जैसे पेट्रोलियम उत्पादों का मूल्य निर्धारण और अनाज का क्रय मूल्य लेकिन यह सरकार द्वारा प्रदत्त सब्सिडी प्रणाली से पूर्णतः जुड़े हैं.

सरकार के उपरोक्त तर्क से स्पष्ट होता है कि सरकार औषधियों के मामले में पूरी तरह से बाजार के बस में हो गयी है. बाजार आधारित मूल्य निर्धारण का एक उदाहरण देकर समझाता हूं. सिप्रोप्लाक्सासिन और टिनिडाजोल नामक मूल औषधि को मिलाकर सिपला कंपनी एक दवा सिप्लॉक्स टीजेड के नाम से बना रही है, इसी कंबीनेशन की दवा एफडीसी जॉक्सन टीजेड के नाम से बनाती है. सिपला सिपलॉक्स टीजेड 105 रूपये में बेच रही है और एफडीसी जॉक्सन टीजेड 28 रूपये में बेच रही है. नई दवा नीति लागू होने के बाद इस दवा की कीमत 105+28=133/2=66.5 रूपये हो जायेगी. यानि मार्केट में सस्ती दवा का जो विकल्प है वह भी खत्म हो जायेगा.

ऐसी स्थिति में यदि सरकार लागत आधारित मूल्य निर्धारण नीति न लागू कर के बाजार आधारित मूल्य निर्धारण नीति लागू करने जा रही है तो दवा दुकानदारों को नुक्सान कहां हो रहा है? हड़ताल में शामिल सभी दवा दुकानदारों को वास्तविकता तो मालूम होती नहीं है, उनके एसोसिएशन के लोग जो कहते हैं उन्हें वहीं मानना पड़ता है. इस संदर्भ में दिल्ली के दवा दुकानदारों का बंद कहीं से भी मुझे तार्किक नहीं लग रहा है.

एक आशंका ज़रूर है कि हो सकता है कि यह बंद सरकार प्रायोजित हो, क्योंकि सरकार अपनी नई दवा-नीति को जनहितैषी साबित करना चाहती है. ऐसे में अगर दवा दुकानदार इसका विरोध करेंगे तो निश्चित रूप से आम आदमी का मनोविज्ञान यहीं कहेगा कि सरकार ने उनके लिए कुछ बेहतर किया है.

(लेखक स्वस्थ भारत विकिसति भारत अभियान चला रही प्रतिभा-जननी सेवा संस्थान के नेशनल को-आर्डिनेटर व युवा पत्रकार हैं)

TAGGED:medicineMedicine PolicyNew Medicine Policy
Share This Article
Facebook Copy Link Print
What do you think?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
“Gen Z Muslims, Rise Up! Save Waqf from Exploitation & Mismanagement”
India Waqf Facts Young Indian
Waqf at Risk: Why the Better-Off Must Step Up to Stop the Loot of an Invaluable and Sacred Legacy
India Waqf Facts
“PM Modi Pursuing Economic Genocide of Indian Muslims with Waqf (Amendment) Act”
India Waqf Facts
Waqf Under Siege: “Our Leaders Failed Us—Now It’s Time for the Youth to Rise”
India Waqf Facts

You Might Also Like

ExclusiveHaj FactsIndiaYoung Indian

The Truth About Haj and Government Funding: A Manufactured Controversy

June 7, 2025
EducationIndiaYoung Indian

30 Muslim Candidates Selected in UPSC, List is here…

May 8, 2025
Latest News

Urdu newspapers led Bihar’s separation campaign, while Hindi newspapers opposed it

May 9, 2025
IndiaLatest NewsLeadYoung Indian

OLX Seller Makes Communal Remarks on Buyer’s Religion, Shows Hatred Towards Muslims; Police Complaint Filed

May 13, 2025
Copyright © 2025
  • Campaign
  • Entertainment
  • Events
  • Literature
  • Mango Man
  • Privacy Policy
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?