BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने पीलीभीत के बरखेड़ा और डालचंद गांव में भड़काऊ भाषण के आरोप से वरुण गांधी के बरी हो जाने को उनके निर्दोष होने के बजाय सपा सरकार की मुस्लिम विरोधी राजनीत का परिणाम बताया. संगठन ने जारी बयान में कहा कि जब पिछले साल सरकार ने वरुण गांधी पर से मुक़दमा हटाने की बात की थी तभी यह तय हो गया था कि मुसलमानों के हाथ काटने की धमकी देने वाले इस सांप्रदायिक नेता को सरकार छोड़कर मुस्लिम समाज में भय का माहौल पैदा करके 2014 के चुनावों की फसल काटना चाहती है.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने कहा कि वरुण गांधी के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ने की सपा सरकार की इच्छा शक्ति किस कदर कमजोर है इसकी पुष्टि इससे हो जाती है कि सरकार के इस बयान के बाद ही इस मामले के गवाह थोक में पलटने लगे. मसलन 24 और 29 नवंबर को कुल 18 गवाह अपने पुराने बयान से एक साथ मुकर गए, जो एक असामान्य परिघटना है. नेताओं ने सरकारी वकील के रवैए पर कहा कि सरकारी वकील को जब एटा जेल में वरुण गांधी ने अपनी आवाज़ का नमूना देने से इन्कार कर दिया तब भी सरकारी वकील ने कोर्ट में उनकी आवाज़ का नमूना लेने की प्रार्थना नहीं की. जबकि फारेंसिक रिपोर्ट के लिए वरुण की आवाज़ का नमूना लिया जाना ज़रुरी था. इसीलिए फारेंसिक रिपोर्ट में यह बात साफ-साफ कही गई है कि बिना आवाज़ का नमूना लिए हुए हम यह पुष्ट नहीं कर सकते कि आवाज़ वरुण गांधी की है या नहीं.
नेताओं ने कहा कि सरकारी वकील ने फारेंसिक रिपोर्ट में वरुण की आवाज़ लिए जाने की मांग के बावजूद उनका आवाज़ नहीं लिया गया. इससे साबित होता है कि सरकार की मंशा वरुण गांधी को सजा दिलाने के बजाए उनके लिए बरी होने का रास्ता तैयार करना था. नेताओं ने कहा कि वरुण गांधी ने अपने बचाव में कहा था कि यह आवाज़ उनकी नहीं है और उनकी आवाज़ के साथ छेड़-छाड़ की गई है. ऐसे में कानूनी तौर पर यह जिम्मेदारी वरुण गांधी की ही थी कि वे अपने दावे को प्रमाणित करें कि यह आवाज़ उनकी नहीं है. लेकिन न्यायाधीश ने इस कानूनी प्रक्रिया को अपनाने के बजाए सरकार के दबाव में वरुण गांधी के झूठे दावे पर गैरकानूनी तरीके से मुहर लगा दी. जिससे साबित होता न्यायालय ने वरुण गांधी के बचाव पक्ष में खुद एक पार्टी बनते हुए सपा सरकार के इशारे पर सांप्रदायिक और समाज के लिए खतरनाक इस व्यक्ति को बरी कर दिया.
रिहाई मंच ने कहा कि इस मुक़दमें में न्यायपालिका किस तरह सरकार के इशारे पर वरुण गांधी को छोड़ने के लिए आमादा थी इसकी पुष्टि इससे भी हो जाती है कि आवामी काउंसिल के महासचिव व रिहाई मंच के नेता अधिवक्ता असद हयात ने जब 25 फरवरी को पीलीभीत के सीजीएम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था कि वरुण गांधी के भाषण से उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हुई हैं लिहाजा उनके भाषण प्रसारित करने वाले एनडीटीवी, सीएनएन आईबीएन चैनलों को गवाह के बतौर बुलाया जाए और वरुण गांधी की आवाज़ का नमूना लिया जाए और वो आवाज़ नहीं देते हैं तो इसे उनके खिलाफ़ विपरीत अभिमत (एडवर्स इन्फरेंस) माना जाए कि यह आवाज़ उन्हीं की है. लेकिन सरकारी वकील के विरोध के चलते कोर्ट ने उनकी इस मांग को नहीं माना और 27 फरवरी को प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया. जिसके खिलाफ़ उन्होंने हाई कोर्ट में रिवीज़न एप्लीकेशन लगाई और फिर उन्होंने सीजेएम कोर्ट में दूसरी प्रार्थना पत्र लगाई कि 27 फरवरी के सीजेएम कोर्ट के फैसले के खिलाफ़ हाई कोर्ट में उनकी अर्जी पर सुनवाई होने तक फैसला न सुनाया जाए. लेकिन सरकारी वकील के विरोध के चलते 4 मार्च को उनका यह प्रार्थना पत्र भी सीजेएम कोर्ट ने खारिज कर दिया और 5 मार्च को वरुण गांधी को बरी कर दिया. जिससे साबित होता है कि इस मामले में गवाह नहीं बल्कि अपने को धर्म निरपेक्ष कहने वाली और मुसलमानों के वोट से ही पूर्ण बहुमत में पहुंचने वाली सपा सरकार होस्टाइल हुई है.
रिहाई मंच ने कहा कि इस अदालत के पास कॉमन सेंस नहीं था या फिर उसने सरकार के दबाव में अपने विवके का इस्तेमाल करना उचित नहीं समझा और इस भड़काऊ भाषण की असलियत को जानने के लिए चैनलों को नहीं तलब किया. यह सामान्य सा तर्क था कि चुनावों के दौरान वरुण के भाषण को चैनलों द्वारा प्रसारित किया गया और वरुण का कहना था कि यह उनकी आवाज़ नहीं है और उनकी आवाज़ के साथ छेड़खानी की गई है. ऐसे में अगर वरुण को बरी कर दिया गया तो इसका यह अर्थ है कि इन चैनलों ने छेड़खानी की तो न्यायालय बताए कि क्या यह जुर्म नहीं है और इन चैनलों को तलब करने के लिए उसके पास स्वविवेक नहीं है.
