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BeyondHeadlines > India > अगर मैं मुसलमान नहीं होता तो क्या कोई मुझ पर शक करता?
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अगर मैं मुसलमान नहीं होता तो क्या कोई मुझ पर शक करता?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 4, 2013 1 View
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9 Min Read
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Dilnawaz Pasha 

23 साल का वासे मिर्जा अपने किराए के घर में तख्त पर लेटा है. बगल में उसके अब्बा मिर्जा अब्दुल मन्नान बेग बैठे हैं. वासे का परिवार पिछले दस साल से किराये के मकान में रह रहा है. किसी ज़माने में हैदराबाद में उनका अपना घर होता था.

आर्थिक हालत खराब होने पर परिवार को अपना घर छोड़ना पड़ा और वासे को पढ़ाई. 7 वीं क्लास तक पढ़ा वासे दुकानों पर सेल्समैन का काम करके रोजी-रोटी के लिए दिन में 200-250 रुपये कमा लेता था. किसी ज़माने में वह लगातार बढ़ रही महंगाई से संघर्ष कर रहे अपने 9 सदस्यों के परिवार का सहारा था. लेकिन हैदराबाद के बम धमाकों ने उसे एक बार फिर बिस्तर पर लिटा दिया है.

वासे की खुशकिस्मती यह है कि वह बम धमाकों में सिर्फ घायल हुआ है,  लेकिन उसकी बदनसीबी यह है कि वह धमाकों में दूसरी बार घायल हुआ है. उसका दूसरा बार घायल होना ही उसके परिवार के लिए त्रासदी बन गया है. वह इससे पहले 2007 में हुए मक्का मस्जिद धमाकों में बुरी तरह घायल हुआ था और 4 ऑपरेशनों के बाद उसकी जान बच सकी थी.

Photo by Afroz Alam Sahil

धमाकों में दूसरी बार घायल होने पर उसे शक की निगाह से भी देखा गया. स्थानीय मीडिया और फिर राष्ट्रीय मीडिया ने उसे धमाकों का संदिग्ध करार दे दिया. वासे कहता है, ‘मुझे सिर्फ मुसलमान होने पर ही धमाकों का संदिग्ध मान लिया गया, किसी ने एक पल के लिए भी यह नहीं सोचा कि उस परिवार पर क्या बीत रही होगी जिसका सबसे बड़ा बम धमाकों का दूसरी बार निशाना बना है.’

वासे के पिता मिर्जा मन्नान बेग उर्फ शाहिद मिर्जा कहते हैं, ‘मेरी सबसे बड़ी शिकायत मीडिया है. मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस देश में मीडिया कबसे इंसाफ करने लगी है. मीडिया का काम जानकारी देना है,  न की गलत जानकारी देना. इस देश में अदालतें भी हैं, कौन दोषी है और कौन नहीं इसका काम अदालतों पर छोड़ देना चाहिए. मीडिया की त्रास्दी यह है कि बिना मेरे परिवार से बात किए ही वासे के बारे में उल्टी-सीधी बातें टीवी पर चला दी गईं. जब पुलिस कमिश्नर ने उसे बिलकुल निर्दोष करार दे दिया तब कोई भी मेरे घर पर हालात का जायजा लेने नहीं आया.’

वह कहते हैं, ‘मेरा बेटा अभी अस्पताल में ही लेटा था कि उस पर शक किया जाने लगा. मीडियावालों को यह भी सोचना चाहिए कि जिस परिवार का बड़ा बेटा अस्पताल में जिंदगी-मौत के बीच हो उस पर क्या बीत रही होगी.’

हालांकि समाज और रिश्तेदारों ने वासे के परिवार का साथ दिया. उनके पिता कहते हैं, ‘मेरी पैदाइश हैदराबाद की है. जो लोग मुझे जानते हैं वह यह बात समझते हैं कि मेरा बेटा देश के खिलाफ कुछ भी नहीं कर सकता. बल्कि हिंदुस्तान का मुसलमान किसी भी हालत में देश से गद्दारी नहीं कर सकता. वासे के दोबारा घायल होने पर सभी ने हमारा साथ दिया. लेकिन मीडिया ने बिना किसी ठोस आधार के अनाप-शनाप बातें टीवी पर चलाईं. मैं जोर देकर यह बात कहना चाहता हूं कि जब भी देश को ज़रूरत होगी तो सबसे पहले देश के लिए मैं खुद अपनी जान पेश करूंगा. लेकिन अब मीडिया को भी अपने गिरेबां में झांकना होगा कि क्या वह वाकई में लोगों के साथ इंसाफ कर रही है?’

स्पष्ट रहे कि वासे 2007 में हुए मक्का मस्जिद धमाकों में भी बुरी तरह घायल हुआ था.  उस वक्त वह लंबे वक्त तक अस्पताल में रहा था और उसके चार ऑपरेशन किए गए थे. चार ऑपरेशनों के बाद भी बम के टुकड़े उसके जिस्म से नहीं निकाले जा सके थे. आज भी उसके पैरों की हड्डियों में बम के टुकड़े फंसे हुए हैं. वासे उस वक्त चप्पलों की दुकान पर सेल्समैन का काम करता था.

आजकल वह पिछले दो-तीन महीने से दिलसुखनगर की ही एक दुकान पर सेल्समैन का काम कर रहा था. धमाके वाले दिन वह दिलसुखनगर में अपने दुकान से फुर्सत पाकर चाय पीने गया था. वासे कहता है, ‘मीडिया वालों ने मुझसे पूछा क्या करने आए थे, मैंने बता दिया कि मैं चाय पीने आया था.’

वासे के इस बयान के बाद से ही मीडिया उसे धमाकों का संदिग्ध बताकर पेश कर रहा था. हालांकि जल्दी ही हैदराबाद पुलिस ने उसे क्लीन चिट भी दे दी. वासे के पिता कहते हैं, ‘पुलिस ने हमे प्रताड़ित नहीं किया. सिर्फ जानकारी मांगी जो हमने दे दी. पुलिस का काम ही पूछताछ करना है, इससे हमें दिक्कत नहीं है.’

धमाके के दिन को याद करते हुए वासे कहता है, ‘मैंने चाय का प्याला लिया ही था कि धमाका हो गया. कुछ देर के लिए कान बिलकुल सुन्न हो गए. किसी ने मुझे अस्पताल में भर्ती कराया.’

वासे मिर्जा इस बार भी गंभीर रुप से घायल हुआ था. वह तीन दिन तक आईसीयू में भर्ती रहा. फिलहाल उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई है और वह अपने घर पर आराम कर रहा है.

जब प्रधानमंत्री यशोदा अस्पताल में घायलों से मिलने आए थे तब वासे मिर्जा की मुलाकात उनसे नहीं करवाई गई थी. पीएम के अस्पताल आने से पहले ही वासे को अलग कमरे में शिफ्ट कर दिया गया था. वासे के परिवार से कहा गया था कि उसे कृत्रिम अंगों की ज़रूरत नहीं है इसलिए पीएम से नहीं मिलवाया जा रहा है.

हालांकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ उन घायलों को ही पीएम से मिलवाया गया हो जिन्हें कृत्रिम अंगों की आवश्कता हो. यशोदा अस्पताल में भर्ती अधिकतर  घायलों से प्रधानमंत्री ने मुलाकात की थी.

बम धमाकों में दोबारा जिंदा बचने पर वासे थोड़ा खुश भी है. वह कहता है, ‘मेरे सामने ही कई लोगों ने दम तोड़ दिया और मैं जिंदा बच गया. दिलसुखनगर का धमाका होते ही मुझे मक्का मस्जिद ब्लास्ट का मंजर याद आ गया. एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद इस बार न बच पाऊं,  लेकिन फिर जान में जान आई और मैंने दोबारा बचने पर अल्लाह का शुक्र अदा किया.’

वासे के परिवार में उससे अलग 6 भाई-बहन और हैं. उसके दोनों छोटे भाई स्कूल जा रहे हैं लेकिन आर्थिक दिक्कतों के कारण बहनों की पढ़ाई छूट गई है. वासे फिलहाल सेल्समैन का काम करके अपने परिवार का हाथ बंटा रहा था लेकिन वह एक बार फिर बिस्तर पर है.

वासे के पिता कहते हैं, ‘पिछली बार हमें केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों की ओर से मदद की गई थी. इलाज फ्री हुआ था. लेकिन अस्पताल आने-जाने में ही काफी पैसा खर्च होता था. इसके घायल होने के कारण मुझे पूरी तरह देखभाल में लगना पड़ा जिसकी वजह से परिवार के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया था. अब एक बार फिर हालात ऐसे ही हैं.  जिंदगी मुश्किल थी,  अब एक बार फिर बम धमाकों ने उसे और भी मुश्किल कर दिया है.’

आतंकवाद पर वासे के पिता कहते हैं, ‘यह हमारे मुल्क के हिंदू-मुसलमानों के बीच डर और नफरत पैदा करने की साजिश है. इससे हमे मिलकर लड़ना होगा. यदि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम अलग-अलग हो गए तो आतंकी अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो जाएंगे.’

इस सबके बीच वासे अब कुछ अच्छा करना चाहता है. वह कहता है, ‘अल्लाह ने मुझे दोबारा जिंदगी बख्शी है. ज़रूर इसका कोई न कोई अच्छा मक़सद भी होगा. अब तक मैं सिर्फ दो वक्त की रोटी के बारे में सोचता था. अब मैं इससे आगे भी सोचूंगा और कुछ बेहतर करने की कोशिश करूंगा.’

(दिलनवाज़ पाशा की यह स्टोरी पहले भास्कर डॉट कॉम में प्रकाशित हो चुकी है.)

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