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Reading: ऐसे लोगों के लिए पुलिस सख्त क़दम क्यों नहीं उठाती?
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BeyondHeadlines > India > ऐसे लोगों के लिए पुलिस सख्त क़दम क्यों नहीं उठाती?
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ऐसे लोगों के लिए पुलिस सख्त क़दम क्यों नहीं उठाती?

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published March 6, 2013 1 View
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5 Min Read
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Anita Gautam for BeyondHeadlines

अभी 7.15 ही बजे थे कि मैं और मेरी सहेली शिवाजी स्टेडियम के पीछे की ओर से गुजरें. वहां एक ओपन रेस्टोरेंट दिखा. हमने भी कुछ खाने के लिए अपनी गाड़ी उस रेस्टोरेन्ट के साइड में लगा दी. वो अभी बाहर ही गई थी कि मेरी नज़र एक कोने में खड़े शराबी पर गई. उसका पूरा ध्यान वहां बैठे लड़का और लड़की के मोबाइल पर था. तभी दूसरी ओर से गंदा कपड़े पहने कूड़ा बटोरने वाला लड़खड़ाते पांव अपना छोला रखकर हाथ में प्लास्टिक का गिलास लिए उस गैंग में शामिल हो गया. तो तीसरा आदमी दारू की बोतल हाथों में कसकर पकड़ा हुआ आया और चौथा, पर उसके पास कुछ नहीं था.

उन चारों में से एक आदमी चारो तरफ पानी ढूंढ़ रहा था. तभी उसे कचरे के डिब्बे से उसको बिसलरी का आधा बोतल पानी मिल गया. और वो चारो उस ओपन रेस्टोरेंट के साइड में ही बैठ गए और तीन लोग दारू पीने लगे. पर मैंने देखा चौथा आदमी दारू नहीं पी रहा और बाकी तीनों जो दारू पी चुके थे. उसे टकटकी लगाए देख रहे थे. मन में बहुत उत्सुकता थी. यह जानने की कि आखिर ये कर क्या रहा है.

ऐसे लोगों के लिए पुलिस सख्त क़दम क्यों नहीं उठाती?

तब मेरी सहेली भी आ गई. मैं उसे यह सब बता ही रही थी कि चौथा आदमी जेब से रूमाल जो की अच्छी तरह से फोल्ड किया सा लग रहा था. उसे किनारे से चुसने लगा. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था फिर एकाएक याद आया ये तो कागज़ में लगाने वाला फ्लूड या कोई और नशा सूंघ या चूस रहा है.

पहले भी ऐसा ही कुछ मैंने नई दिल्ली स्टेशन की ओर जाते हुए कई बार बच्चों को करते देखा था. सामने एक पुलिस वाला भी था. पर न जाने क्यों उसकी नज़र इन लोगों पर नहीं गई. हमने गाड़ी से उतर कर उस पुलिस वाले को बताया भी पर वो बोला कि अरे मैडम ये तो स्मैकिये हैं. क्नॉट प्लेस, जनपथ, मिंटो रोड, अजमेरी गेट, शिवाजी स्टेडियम इस इलाके में खुब होते हैं, ये लोग नशा किये पड़े रहते हैं, हम भी क्या करें?

पुलिस स्टेशन में इन्हें कैसे रखें? एक दिन अगर ये नशा नहीं करेंगे तो दूसरे दिन मरने की हालत में हो जाएंगे. मुझे पुलिस वाली की बातें समझ नहीं आ रही थी कि एक तरफ़ तो सरकार और दिल्ली पुलिस क्नॉट प्लेस को सेफ प्लेस बनाने में लगी हुई है तो फिर जनपथ, मिंटो रोड, अजमेरी गेट, नई दिल्ली, शिवाजी स्टेडियम के इलाकों में ऐसे लोग खुलेआम कैसे घुम सकते हैं? क्योंकि क्नॉट प्लेस तो दिल्ली की सबसे महंगी, चहल-पहल और आधी रात तक उजाले में रहने वाली जगह है?

आखिर नशा करने के लिए ये लोग किसी न किसी का जेब तो काटते  ही होंगे. घरों से चोरियां करते होंगे यहां तक की महिलाओं को चाकू दिखा कर गहने और पर्स भी छिन लेते होंगे. फिर क्यों ऐसे लोगों के लिए पुलिस सख्त क़दम नहीं उठाती? अपने ही आंखों के सामने देखते हुए अनदेखा कर रही है? जब भी कहीं अपराध होता है तो सबसे पहले क्यों महिलाओं पर ही बेढंगे कपड़े और ऑड टाइम्स का हवाला देकर निशाना साधा जाता है?

आज जाना और देखा भी कि दिल्ली पुलिस का दिल वाकई बड़ा है, जो नशा करने वाले ऐसे स्मैकियों को नशा करने, अपराध करने के लिए स्वतंत्रता दे रहे हैं तो बेकसूर वृद्धों, महिलाओं, बच्चों और किशोरियों को असुरक्षा तथा उनके जीवन से स्वतंत्र रूप से खिलवाड़ करने का न्यौता भी ऐसे असामाजिक तत्वों को खुलेआम दे रहे हैं. इनमें से न जाने कितने बच्चे भी नशे को गले लगाए फिरते हैं.

हम एक ओर तो पढ़ा-लिखा समाज और बच्चों को संस्कार देने की बात करते हैं. अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाने की बात करते हैं. तो क्यों फिर अपने आसपास हो रही ऐसी घटनाओं के विरूद्ध आवाज़ उठाने से डरते हैं? आखिर ऐसे छोटे बच्चों को सुधार गृह में  डालकर मुफ्त शिक्षा दी जाए तो यही बच्चे जो चोरी और नशा करने में महारथ पाए हुए हैं. यकीनन अपना भविष्य अच्छा बना सकेंगे.

अगर नशा करने वाले बेरोज़गारों के लिए सरकार रोज़गार के बारे में सोचे तो शायद दिनभर की थकान से चुर इन लोगों के लिए नींद और भरपेट खाना किसी नशे से कम नहीं होगा. जब तक समाज नशा मुक्त नहीं होगा तब तक अपराध किसी न किसी रूप में होता ही रहेगा. ज़रूरत है तो बस ठोस क़दम उठाने की… आपके और मेरे द्वारा…

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