BeyondHeadlines News Desk
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने पिछले बुद्धवार को गृह सचिव सर्वेश चन्द्र मिश्रा द्वारा आरडी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कचहरी धमाकों के आरोपियों तारिक और खालिद की बाराबंकी से गिरफ्तारी को संदेहास्पद बताने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर सरकार का एक नुमाइंदा इस बात को कह रहा है तो फिर सरकार निमेष जांच आयोग रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने से क्यों कतरा रही है.

रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुएब ने कहा कि निमेष जांच आयोग रिपोर्ट में हुए खुलासों के बाद सरकार किस कदर सांप्रदायिक एसटीएफ और आईबी के अधिकारियों को बचाने की फिराक में है और इस प्रक्रिया में सरकार चलाने वालों का मानसिक संतुलन किस कदर बिगड़ गया है यह इससे भी पता चलता है कि एक महीना पहले गृह विभाग ने आरटीआई कार्यकर्ता उर्वर्शी द्वारा मांगे गए सवाल के जवाब में कह चुकी है कि उसके पास निमेष जांच आयोग रिपोर्ट नहीं है. और अब गृह सचिव निमेष कमीशन की रिपोर्ट के हवाले से बात कर रहे हैं. उन्होंने निमेष कमीशन रिपोर्ट को तत्तकाल सदन के पटल पर रखने की मांग करते हुए कहा कि बेगुनाहों की रिहाई का सवाल सिर्फ पीडि़तों के लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा सवाल नहीं है बल्कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर भारतीय समाज को बांटने और उनका ध्यान आमजन समस्याओं से हटाने के लिए किया जाने वाला षडयंत्र है. जो बहुत ही सार्वजनिक महत्व का मुद्दा है, जिस पर सदन में बहस करवाकर सभी दलों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.
रिहाई मंच के महासचिव और पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि जब गृह सचिव यह मान रहे हैं कि बाराबंकी से तारिक और खालिद की गिरफ्तारी फर्जी है तो फिर सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए कि तारिक और खालिद से बरामद दिखाया गया सवा किलों आरडीएक्स, जिलेटिन राड, डेटोनेटर आदि एसटीएफ को कहां से मुहैया हुआ?
उन्होंने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम युवकों को फंसाने के लिए पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि तारिक और खालिद की झूठी गिरफ्तारी ने सिद्ध कर दिया है कि पुलिस ऐसे विस्फोटकों का जखीरा अवैध तरीके से रखती है जिसे वो बेगुनाहों को फंसाने के लिए उनके साथ बरामदगी दिखाती है. इसीलिए रिहाई मंच लगातार इस बात की मांग करता रहा है कि 2000 से अब तक हुई समस्त आतंकी वारदातों, गिरफ्तारियों और बरामद दिखाए गए विस्फोटक पदार्थों की जांच हो.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने मुस्लिम होने के नाते यूपी के कैबिनेट मंत्री आज़म खान के साथ अमरीका में हुई वारदात की निंदा करते हुए कहा कि इस घटना के बाद उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे खुद मुसलमानों के बारे में सांप्रदायिक पुलिस और खुफिया एजेंसियों द्वारा बनाई गई गलत छवि के शिकार हुए हैं, जिसके चलते उनके सूबे में ही दर्जनों बेगुनाह युवक जेलों में बंद हैं. उन्होंने कहा कि आज़म खान अब इस घटना के बाद भी अगर आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सपा सरकार के साथ बने रहते हैं तो यह सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि सपा सरकार में शामिल समस्त मुस्लिम मंत्रियों और मुस्लिम विधायकों के लिए शर्मनाक है.
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लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच (Forum for the Release of Innocent Muslims imprisoned in the name of Terrorism) ने पिछले बुद्धवार को गृह सचिव सर्वेश चन्द्र मिश्रा द्वारा आरडी निमेष जांच आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कचहरी धमाकों के आरोपियों तारिक और खालिद की बाराबंकी से गिरफ्तारी को संदेहास्पद बताने पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर सरकार का एक नुमाइंदा इस बात को कह रहा है तो फिर सरकार निमेष जांच आयोग रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने से क्यों कतरा रही है.
रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शुएब ने कहा कि निमेष जांच आयोग रिपोर्ट में हुए खुलासों के बाद सरकार किस कदर सांप्रदायिक एसटीएफ और आईबी के अधिकारियों को बचाने की फिराक में है और इस प्रक्रिया में सरकार चलाने वालों का मानसिक संतुलन किस कदर बिगड़ गया है यह इससे भी पता चलता है कि एक महीना पहले गृह विभाग ने आरटीआई कार्यकर्ता उर्वर्शी द्वारा मांगे गए सवाल के जवाब में कह चुकी है कि उसके पास निमेष जांच आयोग रिपोर्ट नहीं है. और अब गृह सचिव निमेष कमीशन की रिपोर्ट के हवाले से बात कर रहे हैं. उन्होंने निमेष कमीशन रिपोर्ट को तत्तकाल सदन के पटल पर रखने की मांग करते हुए कहा कि बेगुनाहों की रिहाई का सवाल सिर्फ पीडि़तों के लोकतांत्रिक अधिकारों से जुड़ा सवाल नहीं है बल्कि आतंकवाद से लड़ने के नाम पर भारतीय समाज को बांटने और उनका ध्यान आमजन समस्याओं से हटाने के लिए किया जाने वाला षडयंत्र है. जो बहुत ही सार्वजनिक महत्व का मुद्दा है, जिस पर सदन में बहस करवाकर सभी दलों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.
रिहाई मंच के महासचिव और पूर्व पुलिस महानिरिक्षक एसआर दारापुरी ने कहा कि जब गृह सचिव यह मान रहे हैं कि बाराबंकी से तारिक और खालिद की गिरफ्तारी फर्जी है तो फिर सरकार को इसकी जांच करानी चाहिए कि तारिक और खालिद से बरामद दिखाया गया सवा किलों आरडीएक्स, जिलेटिन राड, डेटोनेटर आदि एसटीएफ को कहां से मुहैया हुआ?
उन्होंने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम युवकों को फंसाने के लिए पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि तारिक और खालिद की झूठी गिरफ्तारी ने सिद्ध कर दिया है कि पुलिस ऐसे विस्फोटकों का जखीरा अवैध तरीके से रखती है जिसे वो बेगुनाहों को फंसाने के लिए उनके साथ बरामदगी दिखाती है. इसीलिए रिहाई मंच लगातार इस बात की मांग करता रहा है कि 2000 से अब तक हुई समस्त आतंकी वारदातों, गिरफ्तारियों और बरामद दिखाए गए विस्फोटक पदार्थों की जांच हो.
रिहाई मंच के प्रवक्ताओं शाहनवाज़ आलम और राजीव यादव ने मुस्लिम होने के नाते यूपी के कैबिनेट मंत्री आज़म खान के साथ अमरीका में हुई वारदात की निंदा करते हुए कहा कि इस घटना के बाद उन्हें समझ लेना चाहिए कि वे खुद मुसलमानों के बारे में सांप्रदायिक पुलिस और खुफिया एजेंसियों द्वारा बनाई गई गलत छवि के शिकार हुए हैं, जिसके चलते उनके सूबे में ही दर्जनों बेगुनाह युवक जेलों में बंद हैं. उन्होंने कहा कि आज़म खान अब इस घटना के बाद भी अगर आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों को छोड़ने के वादे से मुकरने वाली सपा सरकार के साथ बने रहते हैं तो यह सिर्फ उनके लिए ही नहीं बल्कि सपा सरकार में शामिल समस्त मुस्लिम मंत्रियों और मुस्लिम विधायकों के लिए शर्मनाक है.