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ढ़ला सूरज कुछ समय बाद ज़रूर उगता है…

Anita Gautam for BeyondHeadlines

अंशुमाला जीं एवं उनकी बड़ी बहन रश्मि प्रिया जी से पिछले दो दिनों से संपर्क में हूं. कल बिताये कुछेक घंटों में एक अपनापन सा लगा. सुरों की मल्ल्किा जिसे सुर और ताल मां से विरासत में मिले हैं. उन्हें इस स्थिति में अस्पताल के जनरल वार्ड में जिसमें 10 से भी अधिक मरीजों के साथ रखा गया है. देख मन बहुत दुखी हुआ. आर्थिक स्थिति के चलते जनरल वार्ड में रह रही अंशुमाला लंग्स इन्फेक्शन की शिकार हैं. पिछले दिनों वेदांता मेडिसिटी अस्पताल में उनका किडनी ट्रांस्पलांट भी हुआ था. मां जो स्वयं एक गायिका हैं, उन्होंने अपने दिल के इस टुकड़े को अपनी ही किडनी दान की और पुनः जन्म दिया. वाकई मां बहुत महान होती है.

अंशुमाला जी का बीमारी के कारण शरीर कांप रहा था. दोनों हाथों में सुईयों के निशान बने हुए थे. पर सुखे होठों पर भी मुस्कुराहट खीली हुई थी. जब मैंने पूछा आप बचपन से गाती हैं तो बोली मैं संगीत के बिना अधूरी हूं. बचपन में जब कभी मन उदास होता. मैं संगीत की धोनी रमा लेती और मन को अंतःकरण से एक खुशी प्रदान होती. जितने देर भी मैं उनके साथ थी. बिना झल्लाए मुस्कुराहट के साथ मेरे से बात करती रहीं.

anshu mala jha

उनकी एक बात मुझे प्रेरणा के तौर पर मिली कि इंसान मन से मज़बुत हो तो दुनिया पर विजय पर सकता है. और जो बाहर से कितना भी साहसी क्यों न हो. मन की शक्ति का कमजोर है. कभी विजय प्राप्त नहीं कर सकता. उन्होंने ये भी बोला कि अब मेरे किडनी ट्रांसप्लांट और इस इंफेक्शन के बाद हो सकता है. मुझे शास्त्रीय संगीत गाने में कुछ तकलीफों का सामना भी करना पड़े, पर फिर भी मैं रियाज़ करूंगी और पुनः पहले की तरह गाउंगी.

पिछले 15 दिनों से बीमार अंशुमाला जी का गंगाराम के सिटी अस्पताल में ईलाज चल रहा था. उनके साथ रही बड़ी बहन रश्मि प्रिया जी जो स्वयं एक गायिका हैं. उनसे बात करने पर पता चला कि सिटी अस्पताल में डाक्टरों के मुताबिक वहां के केमिस्ट द्वारा खरीदी दवाईयां ही मरीजों को दी जाती हैं और बाहर की दवा मना है.

हैरत की बात है. कैमिस्ट और अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत के चलते वहां दवाईयां मनमाने दाम पर बिक रही हैं. मजबूरन वहां के मरीजों के परिजनो को हार कर वहीं से दवा खरीदनी पड़ती है. अस्पताल में दिन प्रतिदिन बढ़ रहे बिल के चलते उनकी बहन को गंगाराम के जनरल वार्ड में रखने का कठोर निर्णय लेना पड़ा. वो जानती हैं कि मेरी बहन को ज़रा सा भी इंफेक्शन हुआ तो पुनः उसकी जान पर बात आ सकती है. पर परिस्थितियां क्या नहीं करा देती हैं. आखिरकार वो उस जनरल वार्ड में हैं जहां पल-पल उन्हें इंफेक्शन होने का खतरा मंडरा रहा है.

अस्पताल प्रशासन मदद के नाम पर ऐसी दवाओं को मुफ्त में देने की बात कर रहा है, जो भारत सरकार द्वारा मरीजों को पहले से ही मुफ्त में दी जाती है. आश्चर्य है जब वो अपने लोक संगीत से उदास चेहरों का मन प्रसन्न करती थीं, तो दुनिया वाह-वाही करने सामने आती थी और आज जब बिस्तर पर कराह रही हैं, तो कोई हाथ मदद के लिए आगे नहीं बढ़ रहा. शायद ताली बजाने के लिए हाथ उठाना मदद करने के लिए उठाए गए हाथ से कहीं आसान होता है.

भारत सरकार की संस्कृति मंत्रालय ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति प्रदान की पर सरकार सदैव किसी का कितना साथ देती है यह बात आप सबको बखुबी पता है. वाकई मेरा देश बहुत महान है यहां की जनता सिर्फ उगते सूरज को ही सलाम ठोकती है. पर फिर भी ढला सूरज कुछ समय बाद ज़रूर उगता है और जग को रौशन करता है. वही स्थिति आज अंशुमाला जी के साथ है.

(अनीता गौतम प्रतिभा जननी सेवा संस्थान की दिल्ली स्टेट कोआर्डिनेटर हैं.)

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