अल्लाह का नाम लेकर मुसलमानों को क़ानूनी और लोकतांत्रिक अधिकारों से वंचित कर रहे हैं आज़म खान

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BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच ने बाराबंकी कोर्ट से तारिक-खालिद के मुक़दमा वापसी के राज्य सरकार के प्रार्थना पत्र के खारिज हो जाने पर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आज़म खान द्वारा दिये गये बयान की उनकी सरकार अपील के लिए हाई कोर्ट जाएगी और वहां भी फैसला पक्ष में नहीं आया तो फिर अल्लाह की अदालत की शरण में जायेगी को अगंभीर व मुसलमानों को भ्रमित करने वाला क़रार दिया है.

रिहाई मंच के वरिष्ठ नेता और इंडियन नेशनल लीग के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहम्मद सुलेमान ने कहा कि सरकार अपना राज धर्म नहीं निभा रही है और उसे आज़म खान जैसे लोग मुसलमानों को अल्लाह का वास्ता देकर सरकार को क्लीन चिट देने का वही काम कर रहे हैं जैसा कि उन्होंने कोसी कलां दंगे समेत इस सरकार में हुये 27 बड़े दंगों में सरकार को क्लीनचिट देकर करते आए हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार का राजधर्म यह था कि वे कचहरी धमाकों के आरोप में फंसाए गए तारिक़ और खालिद की बेगुनाही के सबूत निमेष आयोग की रिपोर्ट को स्वीकार करके उसे विधानसभा में प्रस्तुत करती और उसके आधार पर दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ़ कार्यवाही करती जिन्होंने तारिक और खालिद का झूठा अभियोजन किया है.

S. R. Darapuri

सरकार का यह दायित्व था कि वह निमेष आयोग रिपोर्ट के आधार पर स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराकर अदालत के सामने पूरक रिपोर्ट अंतर्गत धारा 173(8) दाखिल कराकर तारिक और खालिद को रिहा करने की प्रार्थना करती. परन्तु सरकार ने निमेष आयोग की रिपोर्ट को छिपाते हुए और मुसलमानों को गुमराह करते हुए अदालत में अंतर्गत धारा 321 प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया जिसे अदालत को खारिज करना ही था, क्योंकि कोई मज़बूत कारण मुक़दमा वापसी का सरकार ने अदालत को नहीं बताया और न ही जिलाधिकारी द्वारा शपथपत्र प्रस्तुत किया गया.

रिहाई मंच के महासचिव और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक श्री एस आर दारापुरी ने कहा कि जब सरकार द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया प्रार्थनापत्र ही अधूरा और दोषपूर्ण है तो उस पर पारित आदेश के विरूद्ध अपील भी कमजोर और निरर्थक होगी.

उन्होंने कहा कि आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों के मुक़दमें में सरकार द्वारा मुक़दमा वापसी का फैसला औचित्यपूर्ण और मज़बूत आधार पर होना चाहिए जो कि निमेष आयोग की रिपोर्ट वह सभी तथ्य और साक्ष्य सरकार को उपलबध कराती है जिनके आधार पर मुक़दमा वापसी का फैसला जनहित, मानवाधिकार और सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए लाभकारी प्रमाणित होता है. क्योंकि निमेष आयोग की रिपोर्ट यह प्रमाणित करती है कि किस प्रकार एजेंसियां एक विशेष वर्ग के निर्दोष युवकों को आतंकवाद के नाम पर झूठा फंसा रही है. इन हालात में जो सरकार निमेष आयोग की रिपोर्ट पर अमल नहीं कर रही उसे कैसे ईमानदार और राजधर्म का पालन करने वाली सरकार कहा जा सकता है.

रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि आजम खां को याद होना चाहिए कि वो बूढ़ और कमजोर लोग जो आतंकवाद के मामलों में झूठे फंसाए गये हैं, किस प्रकार का अमानवीय, यातनापूर्ण और बीमार अवस्था में जेलों के अंदर जी रहे हैं.
रामपुर सीआरपीएफ हमले का आरोपी और रामपुर निवासी जंग बहादुर हार्ट की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है. ऐसे में उसे या जेलों के अंदर लंबे समय से यंत्रणा झेल रहे आतंकवाद के नाम पर बंद किसी कैदी के साथ कोई अप्रिय घटना होती है तो इसकी जिम्मेदार वादा खिलाफ सपा सरकार होगी.

नेताओं ने सपा सरकार द्वारा अपने मंत्रियों, सत्ता के हिमायती कथित उलेमाओं, कार्यकर्ताओं समेत 254 मुसलमानों पर से मुकदमा हटाने को आतंकवाद के नाम पर बंद बेगुनाहों को छोड़ने के वादे से मुकरने पर मुसलमानों में व्याप्त गुस्से को नियंत्रित करने की हताश कोशिश करार देते हुए कहा कि इससे मुसलमान भ्रम में नहीं आने वाला क्योंकि चुनावी वादा अपने कार्यकर्ताओं पर से मुक़दमा हटाने का नहीं बल्कि आतंकवाद के नाम पर कैद निर्दोषों पर से मुक़दमा हटाने का था.

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