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तारिक-खालिद प्रकरण : अखिलेश सरकार की नीयत साफ नहीं

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : बाराबंकी सेशन कोर्ट द्वारा धारा 321 सीआरपीसी के तहत मुक़दमा वापस लिए जाने संबंधी राज्य सरकार के प्रार्थनापत्र को खारिज किये जाने के आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शुऐब ने कहा कि राज्य सरकार ने सही तथ्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए बल्कि तथ्यों को छिपाया और केवल कागजी खानापूरी करके मुसलमानों को गुमराह किया है.

निमेष आयोग की रिपार्ट मिल जाने के बाद कानूनी रूप से सरकार का यह दायित्व था कि वह 31 मार्च 2013 तक उसे विधान सभा पटल पर रखती और उसमें उठाए गये संदेह उत्पन्न करते प्रश्नों पर और गवाहों के बयानों के आधार पर अंतर्गत धारा 173(8) सीआरपीसी के तहत पूरक रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करती जिसके आधार पर मुक़दमा वापस लिया जाता. परन्तु सरकार ने ऐसा नहीं किया और अंतर्गत धारा 321 प्रार्थनापत्र दिया जिसके साथ जिला अधिकारी ने अपना शपथ पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया और कोई कारण भी मुक़दमा वापस लेने का नहीं बताया.

tariq and khalid

इससे साबित होता है कि राज्य सरकार इस पूरे मसले पर इमानदार नहीं थी और उसने जान बूझ कर न्यायालय को ऐसे बहाने मुहैया कराए जो प्रार्थना पत्र खारिज होने का आधार बने. उन्होंने कहा कि यदि सरकार सचमुच तारिक़ और खालिद की रिहाई के लिये इमानदार होती तो वह धारा 173(8) के तहत पुर्नविवेचना करवाती तो नतीजे में जो नये तथ्य व साक्ष्य सामने आते वे मुक़दमा वापसी के उचित आधार बनते और दोषी पुलिसकर्मियों के विरूद्ध भी कार्यवाही होती. लेकिन सरकार ने अपने साम्प्रदायिक और अपराधी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिये धारा 173 (8) के तहत कोई कार्यवाही नहीं की और धारा 321 के अंर्तगत कमजोर आधारों पर प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर दिया जिसे खारिज होना ही था.

उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि माननीय न्यायालय द्वारा अध्यक्ष अधिवक्ता परिषद बाराबंकी तथा एक अन्य संस्था वाद हितकारी कल्याण समिति के प्रार्थनापत्रों की भी सुनवायी की जो मुक़दमा वापसी के प्रार्थनापत्र के विरूद्ध दिये गये थे. न्यायालय द्वारा बिना किसी उचित आधार के इन प्रार्थनापत्रों पर सुनवायी की गयी. यह प्रार्थनापत्र कब और किस प्रकार रिकार्ड पर आए इसका भी पता नहीं चलता. प्रतीत होता है कि सरकारी वकील द्वारा चोर दरवाजे से इन्हें रिकार्ड पर लिया गया. तारिक और खालिद के वकीलों को किसी भी प्रार्थनापत्र की प्रति उपलब्ध नहीं करवायी गयी.

रिहाई मंच के नेता व अधिवक्ता मो. असद हयात ने बाराबंकी विशेष सत्र न्यायाधीश श्रीमती कल्पना मिश्रा और जिला जज श्री राकेश कुमार के विधि और न्याय सिद्धान्तों के आचरण के विरुद्ध प्रशासनिक जज उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ को शिकायती पत्र भेजा है.

19 मार्च 2013 को भेजे गये इस प्रार्थनापत्र में हयात ने कहा था कि उनकी उपस्थिति में तारिक़ कासमी को पुलिस जनों द्वारा जबरन अपनी हिरासत में दिनांक 12 दिसंबर 2007 को लिया गया था. राज्य सरकार द्वारा तारिक और खालिद की 22 दिसंबर 2007 को पुलिस द्वारा बतायी गयी गिरफतारी  इस घटना की सत्यता की जांच हेतु निमेष आयोग बनाया गया. जिसने अपनी रिपोर्ट दिनांक 31 अगस्त 2012 को राज्य सरकार को सौंप दी. जिसमें आयोग ने कहा है कि पुलिस द्वारा 22 दिसंबर 2007 को तारिक और खालिद की गिरफ्तारी की पुलिसिया कहानी संदिग्ध है.

हयात ने जज श्रीमती कल्पना मिश्रा की अदालत में एक प्रार्थनापत्र अंतर्गत धारा 311 सीआरपीसी प्रस्तुत किया था जिसमें शपथ पत्र भी निमेष आयोग की कापी के साथ प्रस्तुत था. इस प्रार्थनापत्र में कहा गया था कि हयात का गवाह के रूप में बयान लिया जाय और निमेष आयोग की रिपोर्ट को अदालत में तलब करके उन गवाहों का भी बयान रिकार्ड किया जाय जिन्होंने निमेष आयोग के समक्ष गवाही दी है. परन्तु जज श्रीमती कल्पना मिश्रा द्वारा यह प्रार्थनापत्र लेने से इंकार कर दिया गया और सरकारी वकील ने भी कोई सहयोग नहीं किया. तत्पश्चात हयात द्वारा जिला जज बाराबंकी को प्रार्थनापत्र दिया गया कि वे जज श्रीमती कल्पना मिश्रा को आदेश दें कि वे असद हयात का प्रार्थनापत्र रिकार्ड पर लेकर उस पर आदेश पारित करें.

दो दिन तक जिला जज रमेश कुमार ने यह प्रार्थनापत्र अपने पास रखा और जज श्रीमती कल्पना मिश्रा को बुलाकर उनसे वार्ता की. आखिर में जिला जज द्वारा असद हयात को उनका प्रार्थनापत्र, शपथ पत्र और संलग्न निमेष आयोग रिपोर्ट की प्रति मौखिक रूप से यह कह कर वापिस कर दिया कि वे इस पर कोई आदेश पारित नही करेंगे.

उपरोक्त दोनों जजों द्वारा विधि और न्याय सिद्धान्तों के विरुद्ध किये गये इस आचरण से त्रस्त होकर असद हयात द्वारा 6 मई 2013 को अब प्रशासनिक न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालय लखनऊ पीठ को प्रार्थनापत्र दिया गया है कि वे निचली अदालतों को निर्देश दें कि वे हयात के प्रार्थनापत्र को रिकार्ड पर लेकर विधि संगत आदेश पारित करें.

हयात ने जजों के इस आचरण पर हैरानी जताते हुए कहा है कि सरकार की तरफ से कोई विशेष लॉबी काम कर रही है जो नहीं चाहती कि सत्य सामने आये और तारिक और खालिद को इंसाफ मिले. यदि न्यायाधीशों की राय में हयात का प्रार्थनापत्र आधारहीन था तो वे उसे रिकार्ड पर लेकर विधि संगत आदेश पारित करके खारिज कर सकते थे. परन्तु रिकार्ड पर प्रार्थनापत्र को लिए बगैर उसे लौटा देना न्यायाधीशों का वह आचरण है जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती और यह प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के विपरीत है. हयात ने कहा कि वे इसके विरुद्ध जल्द रिट पिटीशन दाखिल करेंगें.

असद हयात ने बताया कि एटीएस अधिकारियों को पत्र लिखकर खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी से संबंधित प्रकरण मुक़दमा अपराध संख्या 1891 सन् 2007 कोतवाली नगर बाराबंकी की पुर्नविवेचना की मांग निमेष आयोग की रिपोर्ट के आधार पर की है. इस संबंध में लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि निमेष आयोग ने एटीएस द्वारा दाखिल किये गये आरोप पत्र दिनांक 15 मार्च 2008 और मामले की विवेचना पर अनेक प्रश्न खड़े किये हैं जिनके आधार पर आयोग ने एटीएस व पुलिस द्वारा खालिद और तारिक की दिनांक 22 दिसंबर 2007 को की गयी गिरफतारी को संदिग्ध माना है.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विवेचना अधिकारी ने इन मुद्दों पर जांच नहीं की और न ही पुलिस और अभियोजन के गवाहों ने कोई संतोष जनक उत्तर दिया. आयोग ने सवाल किया है कि –

1. तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद की पुलिस द्वारा 22 दिसंबर 2007 से पहले ही अपनी गेरकानूनी हिरासत में लिए जाने की अखबारों में छपी खबरों का सत्यापन क्यों नही किया.

2. अजहर अली द्वारा तारिक के अपहरण की रानी सराय थाने पर दिनांक 14 दिसंबर 2007 को दर्ज कराई रिपोर्ट पर कार्यवाही क्यों नही की?

3. तारिक की मोबाइल का लोकेशन क्यों नही पता लगाया.

4. इसी प्रकार तारिक कासमी के अपहरण की रिपोर्टों की जांच क्यों नहीं की गयी.

5. खालिद को उठाने की खबरें 13 एवं 17 तथा 20 दिसंबर 2007 को अखबारों में छपीं जिनकी सत्यता का पता क्यों नहीं लगाया गया जबकि खालिद के चाचा ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को 16 दिसंबर को ही फैक्स करके सूचित कर दिया था कि एसटीएफ के लोग खालिद को उठा ले गये हैं.

हयात ने अपने पत्र में अनुरोध किया है कि चूंकि आयोग द्वारा उक्त बिंदुओं पर गंभीर प्रश्न उठाए गए हैं इसलिए विवेचना अधिकारी इन बिंदुओं पर जांच करके अपनी रिपोर्ट अंतर्गत धारा 173(8) न्यायालय में प्रस्तुत करें तथा अपनी रिपोर्ट में उन गवाहों का भी बयान दर्ज करें जिनकी उपस्थिति में तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद को क्रमशः 12 और 16 दिसंबर 2007 को उठाया गया था.

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