शरद पवार, फारुक अब्दुल्ला, नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली, सीपी जोशी ये कुछ ऐसे नाम हैं जो क्रिकेट की डोर अपने हाथ में रखते हैं. शाहरुख खान, जूही चावला, प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी सीधे तौर पर आइपीएल की टीमों के मालिकाना हक़ से जुड़े हुए हैं. ये सब कुछ इसलिए होता है, क्योंकि आइपीएल अब सिर्फ ‘खास’ लोगों की बपौती है.
Anurag Bakshi for BeyondHeadlines
क्रिकेट आज ऐसे लोगों के बंधन में है जिनके पास बेतहाशा पैसा है… ताकत है… शरद पवार, फारुक अब्दुल्ला, नरेंद्र मोदी, अरुण जेटली, सीपी जोशी ये कुछ ऐसे नाम हैं जो क्रिकेट की डोर अपने हाथ में रखते हैं. ये इन नामों की ताक़त ही है, जिसने नेशनल स्पोर्ट्स बिल को संसद में पास नहीं होने दिया था. क्योंकि उसमें बीसीसीआइ को आरटीआई के दायरे में लाने की बात कही गई थी.
उद्योगपतियों के तौर पर अंबानी, माल्या और श्रीनिवासन जैसे बड़े नाम आइपीएल से जुड़े हुए हैं. बॉलीवुड का ‘नेक्सस’ किसी से छुपा हुआ नहीं है. शाहरुख खान, जूही चावला, प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी सीधे तौर पर आइपीएल की टीमों के मालिकाना हक से जुड़े हुए हैं.
करीब दो दशक पहले जब मैच फिक्सिंग का मामला सामने आया था तब भी अजहरुद्दीन के साथ बॉलीवुड की एक अभिनेत्री के कनेक्शन की बात सामने आई थी. लेकिन ऐसी घटनाओं से सबक नहीं लिया गया. बॉलीवुड के छोटे-बड़े, हिट-फ्लॉप चेहरों को आइपीएल मैचों के दौरान लगातार खिलाड़ियों के इर्द-गिर्द देखा गया.
मैच फिक्सिंग में बैन किए गए हर्शल गिब्स को हिंदुस्तान में खेलने की इजाजत दी गई. नशीले पदार्थ के सेवन में बैन झेल चुके शेन वॉर्न को टीम का कप्तान बनाया गया. सवाल है कि आखिर क्यों..? करोड़ों रुपये कमाने वाले श्रीसंत, वह स्पॉट फिक्सिंग करते हैं.? विंदू दारा सिंह को क्या ज़रूरत पड़ती है कि वह बुकीज और खिलाड़ियों के बीच की कड़ी बनने के लिए तैयार हो जाता है.?
और इसका जवाब है इसलिए क्योंकि आइपीएल (क्रिकेट) एक बिजनेस है और बिजनेस में अच्छे-बुरे की नहीं. बल्कि इस बात की परवाह की जाती है कि वह आपके लिए कितने काम का आदमी है. ये सब कुछ इसलिए होता है, क्योंकि आइपीएल अब सिर्फ ‘खास’ लोगों की बपौती है.
चेन्नई में वर्किंग कमेटी की अहम बैठक के बाद बीसीसीआई के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन ने स्पॉट फिक्सिंग के मामले में जिस तरह की बेबसी जताई थी वह हैरान करने वाली है. श्रीनिवासन हर बात को घूमा फिरा कर वहीं ले गए कि दरअसल बीसीसीआई और आइसीसी के हाथ में कुछ है ही नहीं. क्रिकेट को अगर इस ‘नेक्सस’ से बाहर निकालना है तो सबसे पहले बीसीसीआई के अध्यक्ष को खुद पारदर्शिता लानी होगी. बोर्ड अध्यक्ष पर लंबे समय से इस बात के आरोप लग रहे हैं कि वह बोर्ड के मुखिया के साथ साथ आईपीएल की एक टीम का मालिकाना हक़ कैसे रख सकते हैं?
भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी बोर्ड अध्यक्ष के मालिकाना हक वाली टीम के सिर्फ कप्तान ही नहीं हैं. बल्कि वह उनकी कंपनी में बतौर वाइस प्रेसीडेंट भी हैं.
राजनेताओं, उद्योगपतियों और अभिनेताओं को शह देने का काम. या यूं कहें कि इस खेल को इस बुरी हालत तक पहुंचाने वाले वही लोग हैं जो इस खेल के कर्ता-धर्ता हैं. आज फिक्सिंग को लेकर सख्त कानून बनाने की बात हो रही है. सवाल यह है कि दो दशक से भी ज्यादा का वक्त बीत गया जब पहली बार देश में फिक्सिंग का बम फूटा था. तब से लेकर आज तक ऐसे कानून की ज़रूरत क्यों नहीं महसूस की गई.?
जिन खिलाड़ियों को फिक्सिंग के आरोप में प्रतिबंधित तक किया गया था. उन्हें दोबारा अलग-अलग क्षमताओं में इस खेल के साथ जुड़ने की अनुमति क्यों दी गई.? बीसीसीआई को प्राइवेट बॉडी के नाम पर हर तरह की मनमानी करने से क्यों नहीं रोका गया.? कुल मिलाकर घरेलू क्रिकेट को बढ़ावा देने के नाम पर शुरू किए गए टूर्नामेंट आइपीएल में क्रिकेट एक ऐसे बंधन या ‘नेक्सस’ में फंसता दिखाई दे रहा है. जहां हर रोज उसका दम घुट रहा है. उसकी मौत हो रही है.