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न्यायिक हिरासत में खालिद मुजाहिद की मौत या हत्या?

BeyondHeadlines News Desk

लखनऊ : निमेष कमीशन रिपोर्ट को आम करने व खालिद मुजाहिद व तारिक कासमी की रिहाई के मामले में अखिलेश सरकार की मुसीबतें वैसे भी कम नहीं हुई थी कि एक और नया मामला सामने आ गया है. यह मामला खालिद मुजाहिद की हत्या का है. जिसको लेकर उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में ज़बरदस्त गुस्सा है.

पुलि‍स के अनुसार यह मौत आज दोपहर के समय हुई है. पुलिस के अधिकारी बताते हैं कि शनि‍वार को फैजाबाद पेशी पर खालिद को ले जाया गया था, वहां से लौटते समय राम सनेही घाट के पास उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई और वह बेहोश हो गया, इसके बाद जिला अस्‍पताल में उसे मृत घोषित किया गया.

लेकिन आरोपी के लखनउ के वकील रणधीर सिंह सुमन ने आरोप लगाया है कि पुलि‍स वालों ने रास्‍ते में खालि‍द की हत्‍या कर दी है. रणधीर सिंह का कहना है कि खालि‍द की हत्‍या करने के लि‍ए पुलि‍सवालों के पास मज़बूत उद्देश्‍य था क्‍योंकि नि‍मेष आयोग की रि‍पोर्ट के मुताबि‍क कई पुलि‍सकर्मी बेगुनाहों को आतंकी मामले में फंसाने के आरोप में फंस रहे हैं. उन्‍हें डर था कि कहीं खालि‍द उनके खि‍लाफ बयान न दे दे.

वहीं खालि‍द के फैजाबाद में वकील जमाल ने बताया कि वह शनि‍वार दोपहर दो बजे से चार बजे तक खालि‍द व अन्‍य तीन आरोपि‍यों के साथ कोर्ट में थे. खालि‍द पूरी तरह से नॉर्मल थे और कहीं से बीमार नहीं थे. उन्‍होंने कहा कि यह जांच का वि‍षय है कि चार बजे के बाद खालि‍द अचानक इतना ज्‍यादा बीमार कैसे हो गए कि उनकी मौत हो गई.

रिहाई मंच से जुड़े एडवोकेट शोएब और राजीव यादव बताते हैं कि अखिलेश सरकार का असल चेहरा अब देश के लोगों के सामने खुलकर आ चुका है. पुलिस व एजेंसी के लोगों ने खालिद हत्या की है. रिहाई मंच इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं करेगा. वहीं पिपुल्स कैंपेन अगेंस्ट पॉलिटिक्स ऑफ टेरर से जुड़े अमीक जामई ने भी इसे एक साज़िश के तहत हत्या करार दिया है. अमीक जामई निमेष कमीशन रिपोर्ट को आम करने के लिए पहले से ही 20 जून से भूख हड़ताल पर बैठने का ऐलान कर चुके थे. अब अनका कहना है कि पीसीपीटी तत्काल एक मीटिंग करके इस मामले पर अपना फैसला लेगी और पूरे देश में एक आंदोलन करेगी.

Khalid Mujahid in judicial custody death or murder?

यूपी के सीएम अखिलेश यादव ने फैजाबाद जिला कचहरी में हुए सीरियल ब्लास्ट के आरोपी खालिद मुजाहिद की मौत की जांच के आदेश दे दिए हैं. यह जांच शासन स्तर पर सचिव गृह ​और एक एडीजी या आईजी स्‍तर के अधिकारी की समिति द्वारा की जाएगी. उन्‍होंने कहा कि मौत के संबंध में न्‍यायिक जांच कराई जाएगी. अगर इस संबंध में कोई लापरवाही हुई है तो पूरी जांच कराई जाएगी. उन्‍होंने बताया कि सभी को लखनऊ जेल से आज फैजाबाद न्‍यायालय पेशी पर ले जा गया था. खालिद का पोस्‍टमार्टम डॉक्‍टरों के पैनल से कराया जाएगा. वीडियोग्राफी भी होगी. यही नहीं मामले की जानकारी मानवाधिकार आयोग को भी दी जाएगी.

स्पष्ट रहे कि 23 नवंबर 2007 को उत्तर प्रदेश के तीन शहरों लखनऊ, फैजाबाद और वाराणासी में 25 मिनट के भीतर सिलसिलेवार धमाके हुए. इन धमाकों में 18 लोग मारे गए और 21 घायल हुए. उत्तर प्रदेश में हुए इन धमाकों से दिल्ली तक दहल गई.

आतंक के साए में जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी. इसी बीच 12 दिसंबर 2007 को अपने यूनानी दवाखाने से लौट रहे एक डॉक्टर को टाटा सूमो में सवार कुछ अज्ञात लोग उठा कर ले गए. 16 दिसंबर 2007 को ऐसी ही एक घटना में एक शिक्षक को टाटा सूमो से उठा लिया गया.

अचानक गायब हुए इन लोगों के परीजन परेशान हो गए. पुलिस थाने के चक्कर काटे. अख़बारों में उनकी गुमशुदगी खबर बनी. कुछ स्थानीय राजनेताओं ने बड़े-बड़े अधिकारियों को ज्ञापन दिए. धरने-प्रदर्शन हुए. सवाल खड़े हुए. अचानक अपहरण किए गए युवकों के परिजनों ने उनके बारे में जानकारी इकट्ठा करने की हर संभव कोशिश की. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

14 दिसंबर 2007 को डॉक्टर के परिजनों ने स्थानीय थाने रानी सराय में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई. स्थानीय नेताओं ने अपहृत किए गए डॉक्टर के विषय में जानकारी पाने के लिए जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया तथा मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा. परिजनों ने डॉक्टर के बीएसएनएल के मोबाइल को भी सर्विलांस पर लगाकर लोकोशन पता लगाने का आग्रह किया.

16 दिसंबर 2007 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली और डीजीपी उत्तर प्रदेश को शिक्षक की गिरफ्तारी के विषय में फैक्स किया गया. 17 दिसंबर 2007 को अख़बारों में शिक्षक की गिरफ्तारी का समाचार प्रकाशित हुआ. स्थानीय लोगों के डेलीगेशन ने थाने में जाकर मुलाकात भी की. इसी दिन प्रदेश की मुख्यमंत्री, जौनपुर जिले के डीएम, राज्य के गवर्नर एवं मुख्य सचिव को फैक्स के ज़रिए गिरफ्तारी की जानकारी दी गई. इसी बीच 18/19 दिसंबर की रात कुछ अज्ञात लोग शिक्षक के घर पहुंचे और कुछ किताबें ले गए. 19 दिसंबर को ही एक बार फिर मुख्यमंत्री, डीएम और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को फैक्स करके घटना की जानकारी दी गई.

23 दिसंबर 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस ने सनसनीखेज खुलासा करते हुए दो आतंकवादियों की गिरफ्तारी की घोषणा की. गिरफ्तार आतंकवादियों में से एक के पास से जिलेटिन की छड़ें, कलर डेटोनेटर, नोकिया मोबाइल, सिम कार्ड जबकि दूसरे के पास से 3 डेटोनेटर, पॉलीथीन में लिपटा हुआ आरडीएक्स, नोकिया मोबाइल व सिमकार्ड बरामद दिखाया गया. पुलिस ने यह भी दावा किया कि इन आतंकियों को 22 दिसंबर को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से गिरफ्तार किया गया.

पुलिस के प्रेस कांफ्रेंस अख़बारों की सुर्खियों में दो आतंकवादियों के चेहरे छपे. इनमें से एक का नाम मोहम्मद तारिक़ कासमी और दूसरे का नाम खालिद मुजाहिद बताया गया. इत्तेफाक़ से ये वही लोग थे जिनके टाटा सूमो से अपहृत किए जाने का आरोप उनके परिजन लगा रहे थे.

12 और 16 दिसंबर को अपहृत किए गए तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद को 22 दिसंबर 2007 को बाराबंकी के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार दिखाया गया. घटना के बाद स्थानीय लोगों ने गुस्से का इज़हार किया. फरवरी 2008 में नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी के चौधरी चरण पाल सिंह और मज़हर आजाद ने लखनऊ में विधानसभा के बाहर आमरण अनशन किया. पुलिस ने 6 दिन के अंदर ही जबरन अनशन समाप्त करवा दिया. इसी बीच तारिक़ कासमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी की न्यायिक जांच की मांग लगातार जारी रही.

14 मार्च 2008 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन डीजीपी विक्रम सिंह ने मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन को पत्र लिखकर न्यायिक जांच का अनुरोध किया जिसके बाद इसी दिन प्रदेश सरकार ने अधिसूचना जारी करके सेवानिवृत न्यायाधीश आरडी निमेष आयोग का गठन किया. इस एक सदस्यीय आयोग को 6 महीने के भीतर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा गया. निमेष आयोग ने पूरे घटनाक्रम और तथ्यों की जांच की और 31 अगस्त 2012 को जांच रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को प्रस्तुत भी कर दी. लेकिन आयोग की रिपोर्ट को विधानसभा में पेश नहीं किया गया. बार-बार मांग किए जाने का बावजूद भी इस रिपोर्ट को विधानसभा में अब तक पेश नहीं किया गया है.

निमेष आयोग ने अपनी रिपोर्ट में खालिद मुजाहिद और तारिक़ कासमी की गिरफ्तारी और उनकी आतंकी घटनाओं में संलिप्तता को संदिग्ध बताया है. साथ ही आयोग ने उनका अपरहण करने वाले अधिकारियों की पहचान करने तथा उनके खिलाफ़ विधि अनुरूप कार्यवाई करने की सिफारिश भी की है. निमेष आयोग की यह रिपोर्ट और अब खालिद की मौत उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस व्यवस्था पर कई बड़े सवाल खड़े करती है.

निमेष कमीशन की पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं….

निमेष आयोग ने उठाए यूपी पुलिस पर सवाल

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