मैं खालिद मुजाहिद हूँ… मैं एक बेगुनाह हूँ… मैं एक हिन्दुस्तानी हूँ… मुझे हिमालय की कसम… मुझे गंगा जमना की क़सम, जिसके संगम पर मैंने अपने मदरसे में कुरान पाक याद किया… मैंने अपने मुल्क के किसी भी शहरी को कभी भी अपनी ज़बान से, हाथ से, अपने ख्याल में भी कोई तकलीफ नहीं दी है.
शादी के दो महीने के अन्दर ही मेरे और मेरी बीवी के बीच में जेल के दीवार खड़ी कर दी गयी. लेकिन मैंने दीवार के पीछे उसके रोने के आवाज़ सुनी है. वो मुझसे नाराज़ हो गयी थी. उसने मेरे लिखे ख़त के जवाब देना बंद कर दिये थे. लेकिन मुझे मालूम है कि वो मेरा इंतज़ार कर रही है…
आप लोगों ने संघर्ष करके मेरी रिहाई की कोशिश की… ऐसा लगा कि अब मैं रिहा हो जाऊंगा. मेरे बूढ़े चचा की आँखों के चमक कहती थी कि मैं घर वापस जाऊंगा… मेरा बड़ा भाई भी खुश था… लेकिन उस दिन आखरी बार सुनवाई हुई और मुझे रस्ते में किसी ने बेरहमी से मारा… मैंने मदद को आवाज़ लगाई… मैंने अखिलेश सिंह की सरकार को गुहार लगाई… मैंने हिंदुस्तान के संविधान को पुकारा… किसी ने मेरी नहीं सुनी…
मैं खामोश हो गया… सब लोग कह रहे हैं कि मैं मर गया हूँ… लेकिन मैं मरा नहीं हूँ… मैं अभी भी अदालत के बाहर खड़ा हूँ… अपनी तारीख का इंतज़ार कर रहा हूँ… मैं विधान सभा के बाहर खड़ा हूँ… मैं राष्ट्रपति के दरवाज़े पर खड़ा हूँ… न्याय के लिए….
मेरी बेगुनाही साबित हो जाने तक मैं मरूँगा नहीं… मैं हर हिन्दुस्तानी के ज़मीर को आवाज़ देता रहूँगा… उस वक़्त तक जब तक मेरी बेगुनाही का फैसला लेकर आप मेरी कब्र पर दोबारा फातिहा पढ़ने न आ जाये… वही मेरी बेगुनाही का ख़त मेरी कब्र के पास लगा दीजियेगा… ताकि मुझे भरोसा हो जाय कि मेरी मौत के साथ इस मुल्क में इन्साफ की मौत नहीं हुई है… क्योंकि मैं बेगुनाह हूँ और बेगुनाह कभी मरता नहीं…
आपका
खालिद मुजाहिद
(यह पत्र I am Khalid Mujahid and I am innocent फेसबुक पेज़ से लिया गया है, जो खालिद मुजाहिद की बेगुनाही को देश-वासियों के सामने लाने के लिए चल रहे अभियान का एक हिस्सा है.)