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एसटीएफ अधिकारियों को बचाने के लिए की गई खालिद की राजनितिक हत्या

BeyondHeadlines News Desk

उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच ने खालिद मुजाहिद की हत्या को सपा सरकार की सरपरस्ती में एसटीएफ अधिकारियों को बचाने के लिए की गई साजिशन राजनितिक हत्या क़रार देते हुए कहा कि इस शहीद मौलाना खालिद मुजाहिद के जनाजे से सपा सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो गई है.

रिहाई मंच ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार इस मुगालते में न रहे की कि मौलाना खालिद की हत्या कराकर इस आंदोलन को रोक देगी. 2007 में खालिद-तारिक की रिहाई को लेकर शुरु हुआ बेगुनहों की रिहाई का यह आंदोलन जिसके नीवं में खालिद के चचा ज़हीर आलम फलाही रहे हैं, को हम मंजिल तक पंहुजाएंगे. क्योंकि यह दिन हमारे लिये शोक का नहीं बल्कि संकल्प का दिन है.

मंच ने बाराबंकी में खालिद मुजाहिद के पंचनामे पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिस तरह से बाराबंकी प्रशासन ने पंचनामे में समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं को पंच बनाया और इस तथ्य को परिजनों तथा वहां मौजूद सैकड़ों लोगों  से छिपाया उससे जाहिर हो जाता है कि प्रशासन की नियत वास्तविक तथ्यों को छिपाने का था. रिहाई मंच के नेताओं ने कहा कि खालिद के चचा जहीर आलम फलाही समेत कई लोगों ने खालिद के शव का निरिक्षण किया, जिसके मुताबिक खालिद के कान और नाक के आस-पास खून के धब्बे थे, उनके गर्दन की हड्डी पर किसी भारी चीज से मारे जाने का जख्म के निशान के चलते वहां काला धब्बा और सूजन थी, बायें हाथ की कोहनी के ऊपर काला निशान और चेहरा शरीर के बाकी हिस्से के मुकाबले स्याह होना तथा सूजा हुआ था.

इसके बावजूद पोस्ट मार्टम के पहले ही बाराबंकी के पुलिस अधिक्षक सैयद वसीम अहमद का यह कहना कि खालिद की मौत स्वाभाविक कारणों से हुई है, प्रशासन को कटघरे में खड़ा करता है कि पुलिस का पूरा जोर मौलाना की हत्या के वास्तविक तथ्यों को छिपाना था.

Khalid's custodial assasination in Barabanki, Rihai Manch puts 12 point demand.

रिहाई मंच के अध्यक्ष और खालिद के अधिवक्ता मोहम्मद शुएब ने कहा कि फैजाबाद जेल में 3 साढे़ तीन बजे वो साथ थे और खालिद पूरी तरह स्वस्थ था और उसने अपने परिवार वालों को सलाम भी भेजा था. सबसे अहम बात कि फैजाबाद में वह कुर्ते-पैजामे में था जबकि सुबह जब पोस्टमार्टम के समय शव को परिजनों को दिखाया गया तो वो टी शर्ट और लोवर में था, जिसे मौलाना खालिद कभी पहनते ही नहीं थे. और उनके साथ दिखाए गए सामानों में भी कुर्ता-पैजामा नहीं था, जिससे साफ हो जाता है कि स्कोर्ट ने जब हत्या की तो मौलाना खालिद के नाक-कान से निकला खून जो उनके कपड़े पर भी गिर गया, जिसे छुपाने के लिए उनके कुर्ते-पैजामें को छुपा दिया गया और मौलाना खालिद को टी शर्ट-लोवर पहना दिया गया.

इन सब बातों से स्पष्ट हो जाता है कि खालिद की मौत स्वाभाविक नहीं बल्कि सपा सरकार के सरंक्षण में सुनियोजित आपराधिक षडयंत्र के तहत की गई जघन्य हत्या है.

रिहाई मंच को शक है कि जिस तरह से पंचनामे से ही तथ्यों को छिपाने की कोशिश शुरु हो गई उससे प्रशासन की नियत पर संदेह बढ़ जाता है कि वह पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट में भी इन तथ्यों को छिपाते हुए इसे स्वाभाविक मौत करार दे.
बाराबंकी में मौजूद रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुएब और प्रवक्ता शाहनवाज आलम और राजीव यादव ने कहा कि वहां मौजूद लोगों द्वारा जिलाधिकारी बाराबंकी से मांग के बावजूद कि वहां मुख्यमंत्री आकर परिजनों से मिलें और
उनकी बात सुने. लेकिन संवेदनहीन अखिलेश को यह बात मंजूर नहीं हुई.

मंच ने कहा कि खालिद के चचा ज़हीर आलम फलाही द्वारा डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल, मनोज कुमार झा, चिरंजीवनाथ सिन्हा, एस आनंद और आईबी के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराने के बावजूद न अब तक इन अधिकारियों को और न ही इस हत्या को अजांम देने वाले पुलिस स्कोर्ट को अब तक गिरफ्तार किया गया और न ही इनको निलंबित किया गया.

मडि़याहू में मौजूद रिहाई मंच आज़मगढ़ के संयोजक मसीहुदीन संजरी, तारिक शफीक, शाहनवाज आलम, राजीव यादव, सालिम दाउदी, गुलाम अम्बिया, सादिक खान, शौकत अली, वर्धा महाराष्ट्र से आए लक्षमण प्रसाद, अब्दुल्ला एडवोकेट, दिल्ली से आए एपीसीआर के राष्ट्रीय संयोजक अखलाक अहमद ने बताया कि जिस तरह आज खालिद के जनाजे में बीसीयों हजार से ज्यादा लोगों ने शिरकत की और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए उसने यह साफ कर दिया है कि सपा सरकार ने खालिद की हत्या करवाकर अपनी कब्र खोद ली है. जिसका मुहतोड़ जवाब देने के लिए जनता तैयार है.

रिहाई मंच ने मांग की है कि:-

1- खालिद मुजाहिद के चचा ज़हीर आलम फलाही द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर में नामित डीजीपी विक्रम सिंह, एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल, मनोज कुमार झा, चिरंजीवनाथ सिन्हा, एस आनंद पुलिस अधिकारीयों और खालिद को ले जा रहे पुलिस स्कोर्ट को तत्काल प्रभाव से टर्मिनेट किया जाय, तथा आईबी समेत सभी दोषियों को तत्काल गिरफ्तार करके कानूनी कार्यवाई शुरु की जाए.

2- सपा सरकार अपने चुनावी वादे के मुताबिक आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह नौजवानों को तत्काल रिहा करे. क्योंकि मौलाना खालिद की हत्या ने साफ कर दिया है कि जो सरकार मौलाना की हत्या करवा रही है वो किस आधार पर अन्य को सुरक्षा दे सकती है.

3- शहीद मौलाना खालिद मुजाहिद और हकीम तारिक कासमी को निर्दोष साबित करने वाली आरडी निमेष कमीशन की रिपोर्ट को तत्काल सदन के पटल पर रखा जाए.

4- मौलाना खालिद की हत्या की सीबीआई जांच तत्काल शुरु की जाए.

5- गृह सचिव, बाराबंकी जिलाधिकारी और सरकारी वकील द्वारा बाराबंकी न्यायालय में मौलाना खालिद मुजाहिद और हकीम तारिक कासमी पर से मुकदमा वापसी की प्रक्रिया में जानबूझकर की गई आपराधिक साजिश जिसकी वजह से रिहाई संभव नहीं हो पाई, एवं मौलाना खालिद की बाराबंकी में हत्या भी हो गई, ऐसे में इन सभी शासन व प्रशासन के अधिकारियों को जांच के दायरे में लाया जाए और कार्यवायी की जाए.

6- मौलाना खालिद मुजाहिद और तारिक कासमी की 22 दिसंबर 2007 को बाराबंकी रेलवे स्टेशन से की गई फर्जी गिरफ्तारी और 18 मई 2013 को मौलाना खालिद की बाराबंकी में की गई हत्या से स्पष्ट होता है कि इस हत्या के तार बाराबंकी से गहरे जुड़े हैं, ऐसे में दिसंबर 2007 और मई 2013 के दौरान बाराबंकी के पूरे प्रशासनिक अमले को जांच के दायरे में लाया जाए.

7- 16 दिसंबर 2007 को मौलाना खालिद मुजाहिद को मडि़याहूं से अपहरण करने के बाद उच्च पुलिस अधिकारी अमिताभ यश, एसटीएफ के अधिकारियों समेत अन्य पुलिस अधिकारियों द्वारा जिस तरीके से उत्पीड़न किया गया और जिसके बारे में मौलाना ने शिकायत भी की थी, जिस पर अब तक कोई कार्यवाई नहीं हुई, ऐसे में इन दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाई की जाए.

8- मौलाना खालिद मुजाहिद को लगातार जेल और पेशी के दौरान जिस तरीके से एसटीएफ-एटीएस के इशारे पर स्कोर्ट द्वारा उत्पीडि़त किया जाता था और हत्या करने की धमकी दी जाती थी, और जिसकी शिकायत भी उनके अधिवक्ताओं द्वारा लखनऊ, बाराबंकी और फैजाबाद के न्यायधीशों को शिकायती पत्रों द्वारा अवगत कराया जाता था, पर इसके बावजूद कोर्ट ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया और ना ही कोई कार्यवाई इन दोषी पुलिस वालों पर हुई, ऐसे में इन दोषी पुलिस अधिकारियों समेत लखनऊ, बाराबंकी और फैजाबाद के जिन न्यायधीशों ने दोषियों को बचाया उनको भी जांच के दायरे में लाते हुए कार्यवाई की जाए.

9- खालिद की हत्या के बाद जिन पुलिस अधिकारियों ने तारिक कासमी से बाराबंकी कोतवाली में दबाव देकर झूठा बयान दिलवाया कि खालिद की तबीयत पहले से खराब थी (जिसे की जेल प्रशासन और खालिद के वकील मो. शुऐब ने इंकार किया है) उन सभी अधिकारियों को जांच के दायरे में लाते हुये कार्यवायी की जाए.

10- मौलाना खालिद मुजाहिद की हत्या इस बात की पुष्टि करती है कि सरकारी एजेंसियों एसटीएफ-एटीएस और आतंकी संगठनों में गठजोड़ है जो खालिद मुजाहिद की रिहाई को लेकर भयभीत थे जिसके चलते मौलाना खालिद की हत्या कर दी गई. ऐसे में कचहरी धमाकों समेत यूपी में हुई आतंकी घटनाओं की जांच कराई जाए. जिससे खुफिया एजेंसियों, एटीएस और आतंकी संगठनों का गठजोड़ सामने आ सके.

11- उत्तर प्रदेश के जितने युवक आतंकाद के आरोप में दूसरे राज्यों में बंद हैं उनके सुरक्षा की गारंटी उत्तर प्रदेश सरकार सुनिश्चित कराए.

12-  पीडि़त परिवार को तत्काल एक करोड़ रूपये मुआवजा दिया जाए.

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