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झारखंड में केवल 4 प्रतिशत ग्रामीण ही घर पर हिंदी बोलते हैं

BeyondHeadlines News Desk

रांची, (झारखंड) : सामान्य धारणा के विपरीत, झारखंड में ग्रामीण आबादी के केवल 4 प्रतिशत लोग ही घर में हिंदी बोलते हैं. 96 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण आबादी की मातृभाषा आदिवासी या क्षेत्रीय भाषा है. ग्रामीण आबादी की एक तिहाई, यानी 33 प्रतिशत लोग घर में संथाली बोलते हैं, इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं में खोरथा – 17.5 प्रतिशत, कुरूख – 9.5 प्रतिशत, नागपुरी- 8.2 प्रतिशत, मुंडारी – 7.6 प्रतिशत, सदरी – 6.7 प्रतिशत और हो –5.7 प्रतिशत लोगों द्वारा बोली जाती है. इसके अलावा बोली जाने वाली अन्य भाषाओं में बांग्ला – 2 प्रतिशत, मगही – 1.6 प्रतिशत और उरांव – 1.1 प्रतिशत शामिल है. झारखंड के ग्रामीण इलाकों में मुख्य रूप से 19 से अधिक मातृभाषाएं बोली जाती हैं.

आदिवासी कल्याण शोध संस्थान द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से राज्य में कराए गए भाषाई विविधता को लेकर एक अध्ययन में ये बातें सामने आई हैं. 2012 में कराए गए इस अध्ययन में राज्य के सभी 24 जिलों के 72 प्रखंडों के 216 गांवों को शामिल किया गया था.

अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में बोली जाने वाली भाषा और स्कूलों में बोली जाने वाली भाषा के बीच काफी अन्तर है. 97 प्रतिशत से अधिक बच्चे घर पर आदिवासी या क्षेत्रीय भाषा बोलते हैं, जबकि स्कूलों में 92 प्रतिशत से अधिक शिक्षक बच्चों से संवाद करने के लिए हिंदी का उपयोग करते हैं. 90 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों ने कहा कि वे आदिवासी या उस क्षेत्र विशेष में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषा में बात कर सकते हैं.

सर्वे में शामिल लगभग सभी बच्चों (97 प्रतिशत) ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली पाठ्य-पुस्तकों की भाषा हिंदी है. 78 प्रतिशत से अधिक शिक्षकों का मानना है कि घर और स्कूल की भाषा में अंतर होने के कारण बच्चों को पढ़ने-लिखने में समस्याएं आती हैं.

हालांकि 96 प्रतिशत ग्रामीण लोग घर पर आदिवासी या क्षेत्रीय भाषाएं बोलते हैं, लेकिन उनमें से 90 प्रतिशत लोग हिंदी भी बोल सकते हैं. वहीं इनमें से आधे लोगों यानि करीब 50 प्रतिशत का कहना था कि वे हिंदी में बातचीत के दौरान गलतियां करते हैं. अध्ययन के अनुसार गांवों के हाट-बाजारों में लोगों द्वारा बोली जाने वाली लोकप्रिय भाषा- आदिवासी या क्षेत्रीय भाषा है (67 प्रतिशत), लेकिन एक तिहाई (33 प्रतिशत) लोग बाजारों में हिंदी में संवाद करते हैं.

अध्ययन इस बात की सिफारिश करता है कि आंगनबाड़ी केंद्रों और प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को दिए जाने वाले निर्देशों की भाषा उनके द्वारा घरों में बोली जाने वाली मातृभाषा होनी चाहिए, जो कि आदिवासी या क्षेत्रीय भाषा है. अध्ययन इस बात की भी सलाह देता है कि आदिवासी और क्षेत्रीय भाषा की अध्ययन सामग्रियों को विकसित किया जाना चाहिए और इसका उपयोग कक्षाओं में किया जाना चाहिए ताकि घर और स्कूल की भाषा के बीच के अंतर को दूर जा सके. इसके अलावा शिक्षकों को इस बात के लिए उन्मुख किया जाना चाहिए कि वे स्थानीय संसाधनों और संस्कृति को समझें और उसका सम्मान करें. साथ ही बच्चों के साथ स्थानीय भाषा में ही संवाद करें.

आदिवासी कल्याण शोध संस्थान में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान इस अध्ययन को आज जारी किया जाएगा. श्री एल. खियांगटे, प्रधान सचिव, कल्याण विभाग, श्री कुमार शर्मा, आदिवासी कल्याण आयुक्त एवं निदेशक, आदिवासी कल्याण शोध संस्थान और श्री जोब जकारिया, प्रमुख, यूनिसेफ झारखंड इस कार्यक्रम में उपस्थित रहेंगे.

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