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ऑक्सीजन के सहारे ऑटो चालक की बेटी ने मारा मोर्चा

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published May 29, 2013 1 View
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5 Min Read
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Shailendra Singh for BeyondHeadlines

कहते हैं न उड़ान पंखों से नहीं, हौसलों से भरी जाती है, बस एक कोशिश ज़रूरी है. 12वीं बोर्ड की परीक्षा में कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है दिल्ली के ऑटो चालक की उस बेटी ने जो सांस लेने के लिए 24 घंटे ऑक्सीजन मशीन पर निर्भर है. लोधी कॉलोनी के बीके दत्त कॉलोनी में रहने वाली नेहा मेंहदीरत्ता की इस उपलब्धि ने एक ऐसा इतिहास रच दिया है, जो किसी मिसाल से कम नहीं है.

डेढ़ साल से पूरी तरह से ऑक्सीजन के सहारे 24 घंटे सांस ले रही नेहा ने चाह ही थी जिसके बूते उसने 12वीं की परीक्षा में 52.4 फीसदी अंक के साथ सफलता पाई. लोदी रोड स्थित सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली नेहा ने ऑक्सीजन के ज़रिए न सिर्फ बारहवीं बोर्ड की परीक्षा दी बल्कि उसमें सफलता भी हासिल की.

पल्मोनरी अर्टरी नामक बीमारी से पीड़ित नेहा के फेफड़े संक्रमित हो चुके हैं और इसके चलते उसका श्वसन तंत्र काम नहीं कर पाता है. यही कारण है कि जिसके चलते शरीर में रक्त प्रवाह के लिए उसे 24 घंटे ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है. सांस लेने में होने वाली परेशानी के चलते नेहा बहुत ज़्यादा बोल भी नहीं पाती है. बारहवीं के बाद अब नेहा पहले अपना ग्रेजुएशन पूरा करना चाहती है और फिर उसका लक्ष्य आईएएस की परीक्षा देना है. नेही कहती है कि बीमारी से जब उन्हें राहत मिलेगी तो यह पढ़ाई ही उनके काम आएगी.

नेहा के पिता ऑटो ड्राइवर राजकुमार मेंहदीरत्ता ने बताया कि डॉक्टर ने 11वीं क्लास में ही पढ़ाई जारी रखने से मना कर दिया था, क्योंकि नेहा के हालात ही कुछ ऐसे थे. लेकिन हम नेहा की जिद और लगन को देखते हुए डॉक्टर की सलाह से अधिक महत्व बेटी की इच्छा को दिया.

राजकुमार कहते हैं कि सफदरजंग अस्पताल में नेहा का इलाज चल रहा है और डॉक्टरों का कहना है कि अब सिर्फ फेफड़ों का ट्रांसप्लांट करना ही एकमात्र रास्ता बचा है जिसके लिए करीब 50 लाख रूपये तक का खर्चा आएगा. विदेश में होने वाले इस उपचार के लिए ऑटो चालक राजकुमार के पास पैसे नहीं हैं.

neha

सीबीएई ने नहीं, स्कूल ने दी मदद   

नेहा ने 12वीं बोर्ड की परीक्षा में होम साइंस में 69, अंग्रेज़ी में 45, हिन्दी में 59, राजनीतिशास्त्र में 45 और इकोनॉमिक्स में 44 अंक हासिल किए हैं. बिना ट्यूशन और गंभीर स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के बावजूद नेहा ने हार नहीं मानी और परीक्षा दी और सफलता के लिए हर संभव प्रयास किया. नेहा कहती है कि 3 घंटे की परीक्षा में करीब एक घंटा तो उन्हें परीक्षा केन्द्र में स्थिर होने में ही लग जाता था, फिर भी उसने हौंसला नहीं छोड़ा.

नेहा के पिता बताते हैं कि जब अपनी बेटी के लिए उन्होंने सीबीएसई से सेंटर पर ऑक्सीजन सिलेंडर ले जाने की मांग की तो मदद तो दूर बोर्ड अधिकारियों ने उनकी बात को ठीक से सुनना भी उचित नहीं समझा. जैसे-तैसे परीक्षा केन्द्र पर जाकर बात की और बच्ची के लिए परीक्षा का मार्ग प्रशस्त किया. परीक्षा के दौरान पिता सेन्टर पर ऑक्सीज़न सिलेंडर को डेस्क के साथ बांधकर आते थे.

ज़मीन बेचकर खरीदी ऑक्सीज़न की मशीन

ऑटो चालक राजकुमार बताते हैं कि बीमारी की शुरूआत में वह अपनी बच्ची के  लिए 160 रूपये में मिलने वाला ऑक्सीजन का सिलेंर खरीदते थे. एक सिलेंडर करीब 3 घंटे तक चलता था और चुंकि 24 घंटे नेहा को ऑक्सीजन की ज़रूरत रहती थी सो सिलेंडर का खर्च ही महीने में करीब 4-5 हज़ार रूपये तक आता था. राजकुमार आगे बताते हैं कि परेशानी को बढ़ता देख उन्होंने एक 12 गज़ ज़मीन के अपने टुकड़े को बेचा और डेढ़ लाख रूपये खर्च करके ऑक्सीजन मशीन खरीदा जो ऑक्सीजन बनाती है. मशीन भी ऑरो वाटर या मिनरल वाटर के ज़रिए ही चल पाती है.

परिवार और किताब से है प्यार

किताबों से प्यार और टीवी, रेडियो से दूर रहने वाली नेहा की मां दिन-रात उसकी सेवा में लगी रहती हैं, जबकि उसकी छोटी बहन उसकी सहेली है. करीब में रहने वाले भइया व भाभी उसकी पढ़ाई में मदद करते हैं. नेहा को फिल्में पसंद नहीं है. बस कुछ टीवी सीरियल या थोड़ी देर डिस्कवरी चैनल ही देखना पसंद है.

TAGGED:neha the real hero of our country
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