BeyondHeadlines News Desk
दंतेवाड़ा ज़िले के बेंगपाल में शनिवार की सुबह सुरक्षा बल के जवानों ने ग्रामीणों पर कहर ढाया. साथ ही वो पांच ग्रामीणों को भी नक्सलियों की वर्दी पहनाकर अपने साथ ले गए.
ग्रामीणों के मुताबकि 18 मई की सुबह सुरक्षा बल के जवान ग्राम बेंगपाल पहुंचे. गांव ने उंडामी भीमा पिता देवा उंडामी, हुंगा पिता देवा, आयतू पिता नंदा एवं हिरोली दोकापारा निवासी जोगा कड़ती, लेखामी पोदिया, तुमनार निवासी लखमे एवं मोटू पिता देवा को पकड़ कर उनको काली वर्दी पहनाई. उसके बाद उक्त ग्रामीणों में से लखमें एवं मोटू को जवानों ने छोड़ दिया तथा शेष पांचों ग्रामीणों को अपने साथ हेलीकॉप्टर से पुरंगेल की ओर ले गए.
बेंगपाल के ग्रामीणों ने यह भी बताया कि सुरक्षा बल के जवानों ने ग्रामीणों के साथ मारपीट की एवं गांव के 25 घरों से रूपये, जेवरात, मुर्गा-मुर्गी एवं चावल लूट कर ले गए.
इस पूरे मामले पर मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार बताते हैं कि संभवत पुलिस उन पांचों को मार देगी, जैसा वो पहले से करते आई है. और फिर इसे एक मुठभेड़ बता देगी . उसके बाद इनके साहब को तरक्की मिल जायेगी और छत्तीसगढ़ सरकार को दिल्ली से और पैसा मिल जाएगा. रही बात आदिवासियों की तो इन्हें तो कोई भी नहीं बचा सकता अब. आदिवासियों की इस तरह की फर्जी हत्याओं के अनेकों मुकदमे अभी हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लटके हुए हैं . सच पूछे तो कोर्ट इन आदिवासियों के लिये नहीं हैं. सरकार इन्हें मार रही है . ये आदिवासी अपनी जान कैसे बचाएं ?
इसी बीच यह भी खबर मिली है कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर में फिर से आठ आदिवासियों को पुलिस ने मार डाला है . सभी गाँव वाले थे. पुलिस ने भी इनके माओवादी होने का दावा नहीं किया है.
ये सभी आदिवासी अपनी नई फसल की बुआई से पहले बीज की पूजा कर रहे थे. पिछले साल भी इसी समय बीज की पूजा करते हुए सत्रह निर्दोष आदिवासियों की इसी तरह हत्या कर दी गई थी. तब सरकार ने दावा किया था कि मारे गये लोग दुर्दांत माओवादी थे. लेकिन बाद में साबित हुआ कि वे तो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे और गाँव वाले थे.
मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार बताते हैं कि ‘हमने दंतेवाड़ा में अनेकों जनसंहार देखे हैं. इन में से सभी में आदिवासियों ने कभी पुलिस को किसी भी तरह से नहीं उकसाया. लेकिन पुलिस ने बिना किसी उकसावे के आदिवासियों का सामूहिक संहार किया है. हांलाकि ध्यान से देखा जाय तो इस तरह के जनसंहार से सरकार को फायदा कम और नुकसान ज़्यादा होता है. हम एक समाज हैं. समाज नियमों से चलता है. नियम समाज ने ही बनाये हैं. अगर सरकार नियम तोडती है तो उस पर से समाज का विश्वास कम हो जाता है. इस हालत में सरकार का विरोध करने वाली ताकतों के प्रति लोगों को अधिक सहानुभूति मिलने लगती है.’
आगे वो बताते हैं कि ‘अब सरकार जनता के बल पर नहीं बल्कि बाज़ार की शक्तियों के पैसों के दम पर चुनाव जीतती हैं. इसलिये सरकार को जनता की नहीं बल्कि खुद को पैसा देने वाले उद्योगपतियों की ज़्यादा परवाह है. इस हाल में जनता के कल्याण के नाम पर चुनाव जीतने वाली सरकार अपनी ही जनता को मारने लगती है. इसलिये हमें याद रखना चाहिये जब हम आदिवासियों की हत्या करते हैं तो दरअसल हम अपने लोकतन्त्र की हत्या कर रहे होते हैं. इसी के साथ अपनी संस्कृति, धर्म, परम्परा और सम्मान की भी हत्या कर देते हैं.’