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बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर मंहगा पड़ेगा सपा को यह नाटक

BeyondHeadlines News Desk

आज़मगढ़ :तारिक-खालिद प्रकरण में बाराबंकी सेशन कोर्ट द्वारा मुक़दमा वापस लिए जाने संबंधी राज्य सरकार के प्रार्थनापत्र को खारिज किये जाने के आदेश पर उत्तर प्रदेश के रिहाई मंच आज़मगढ़ ईकाई ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने सही तथ्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए बल्कि तथ्यों को छिपाया और केवल कागजी खानापूर्ति करके मुसलमानों को गुमराह किया है.

आज़मगढ़ रिहाई मंच के संयोजक मसीहुद्दीन संजरी और तारिक शफीक ने कहा कि मुक़दमा वापसी के नाम पर सरकार कोर्ट में जो नाटक कर रही है उससे पीडि़त परिवारों की भावनाओं को ठेस पहुंच रहा है और जिस तरह आज़म खान और कुछ गैर जिम्मेदार उलेमा-मौलाना मुसलमानों को भ्रमित कर रहे हैं उसका जवाब 2014 में सपा को भुगतना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि सपा के मुस्लिम विधायक जवाब दे कि वो किस आधार पर मुसलमानों से वादा खिलाफी करने वाली सपा सरकर के साथ हैं. एक तरफ सरकार गोरखपुर से मुक़दमें वापसी की बात कर रही तो दूसरी तरफ आज़मगढ़ के मिर्जा शादाब बेग के घर की कुर्की करवा रही है.

SP govt's wrong action taken in Barabanki court conceling Nimesh Commisssion report.

आज जब निमेष आयोग की रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि नितिगत स्तर पर आईबी और एसटीएफ मुसलमानों को आतंकी वारदातों के आरोप में झूठा फंसाती है तो आखिर क्यों नहीं उस रिपोर्ट को सपा सार्वजनिक कर रही है.

आज़मगढ़ रिहाई मंच के ने कहा कि निमेष आयोग की रिपार्ट मिल जाने के बाद कानूनी रूप से सरकार का यह दायित्व था कि वह 31 मार्च 2013 तक उसे विधान सभा पटल पर रखती और उसमें उठाए गये संदेह उत्पन्न करते प्रश्नों पर और गवाहों के बयानों के आधार पर अंतर्गत धारा 173 (8) सीआरपीसी के तहत पूरक रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करती जिसके आधार पर मुकदमा वापस लिया जाता. परन्तु सरकार ने ऐसा नहीं किया और अंतर्गत धारा 321 प्रार्थनापत्र दिया जिसके साथ जिला अधिकारी ने अपना शपथ पत्र भी प्रस्तुत नहीं किया और कोई कारण भी मुक़दमा वापस लेने का नहीं बताया.

इससे साबित होता है कि राज्य सरकार इस पूरे मसले पर इमानदार नहीं थी और उसने जान बूझ कर न्यायालय को ऐसे बहाने मुहैया कराए जो प्रार्थना पत्र खारिज होने का आधार बने.

उन्होंने कहा कि यदि सरकार सचमुच तारिक और खालिद की रिहाई के लिये इमानदार होती तो वह धारा 173 (8) के तहत पुर्नविवेचना करवाती तो नतीजे में जो नये तथ्य व साक्ष्य सामने आते वे मुक़दमा वापसी के उचित आधार बनते और दोषी पुलिसकर्मियों के विरूद्ध भी कार्यवाही होती. लेकिन सरकार ने अपने साम्प्रदायिक और अपराधी पुलिसकर्मियों को बचाने के लिये धारा 173 (8) के तहत कोई कार्यवाही नहीं की और धारा 321 के अंर्तगत कमजोर आधारों पर प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर दिया जिसे खारिज होना ही था. उन्होंने कहा कि यह भी हैरानी की बात है कि माननीय न्यायालय द्वारा अध्यक्ष अधिवक्ता परिषद बाराबंकी तथा एक अन्य संस्था वाद हितकारी कल्याण समिति के प्रार्थनापत्रों की भी सुनवायी की जो मुक़दमा वापसी के प्रार्थनापत्र के विरूद्ध दिये गये थे.

न्यायालय द्वारा बिना किसी उचित आधार के इन प्रार्थनापत्रों पर सुनवायी की गयी. यह प्रार्थनापत्र कब और किस प्रकार रिकार्ड पर आए इसका भी पता नहीं चलता. प्रतीत होता है कि सरकारी वकील द्वारा चोर दरवाजे से इन्हें रिकार्ड पर लिया गया. तारिक़ और खालिद के वकीलों को किसी भी प्रार्थनापत्र की प्रति उपलब्ध नहीं करवायी गयी.

रिहाई मंच आज़मगढ़ ने कहा कि आरडी निमेष आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विवेचना अधिकारियों ने इन मुद्दों पर जांच क्यों नहीं की और न ही पुलिस और अभियोजन के गवाहों ने कोई संतोष जनक उत्तर दिया. आयोग ने सवाल किया है कि –

1. तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद की पुलिस द्वारा 22 दिसंबर 2007 से पहले ही अपनी गेरकानूनी हिरासत में लिए जाने की अखबारों में छपी खबरों का सत्यापन क्यों नही किया.

2. अजहर अली द्वारा तारिक के अपहरण की रानी सराय थाने पर दिनांक 14 दिसंबर 2007 को दर्ज कराई रिपोर्ट पर
कार्यवाही क्यों नही की?

3. तारिक की मोबाइल का लोकेशन क्यों नही पता लगाया.

4. इसी प्रकार तारिक कासमी के अपहरण की रिपोर्टों की जांच क्यों नहीं की गयी.

5. खालिद को उठाने की खबरें 13 एवं 17 तथा 20 दिसंबर 2007 को अखबारों में छपीं जिनकी सत्यता का पता क्यों नहीं लगाया गया जबकि खालिद के चाचा ने राष्टीय मानवाधिकार आयोग को 16 दिसंबर को ही फक्स करके सूचित
कर दिया था कि एसटीएफ के लोग खालिद को उठा ले गये हैं.

रिहाई मंच आज़मगढ़ ने सपा सरकार और और उसके दाग मिटाने वाले मुस्लिम मंत्रियों, उलेमा-मौलानाओं को नसीहत देते हुए कहा कि बेगुनाहों की रिहाई के सवाल पर सरकार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की राजनीति से बाज आए क्योंकि मुस्लिम बेगुनाहों की रिहाई का सवाल सिर्फ बेगुनाहों की रिहाई का नहीं बल्कि कि इन आतंकी वारदातों में मारे गए और घायल हुए लोगों के साथ न्याय का भी सवाल है, जो तब तक हल नहीं हो सकता जब तक इन वारदातों के असली दोषियों को पकड़ा नहीं जाता. ऐसे में सरकार शिगूफेबाजी छोड़ कर बेगुनाहों को फंसाने वालों पर कार्यवाई और आतंकी घटनाओं की उच्च स्तरीय जांच को सुनिश्चित करे.

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