Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
जिन दवाओं का इस्तेमाल विकसित देश अपने जानवरों पर भी नहीं करते, उन दवाओं का उपभोग भारत के लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं. सरकार सो रही है और भारत का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा है. धन्य है हम हिन्दुस्तानी! धन्य है हिन्दुस्तान की लोककल्याणकारी सरकार!
भारत में ग़रीबी दर 29.8 फीसदी है या कहे कि 2010 के जनसांख्यिकी आंकड़ों के हिसाब से यहां 35 करोड़ लोग ग़रीब हैं. वास्तविक ग़रीबों की संख्या इससे भी ज़्यादा है. ऐसी आर्थिक परिस्थिति वाले देश में दवा कारोबार की कालाबाज़ारी चरम पर है. मुनाफा कमाने की होड़ लगी है. धरातल पर स्वास्थ्य सेवाओं की चर्चा होती है तो मालूम चलता है कि स्वास्थ्य के नाम पर सरकारी अदूरदर्शिता के चलते आम जनता लूट रही है और दवा कंपनियां, डॉक्टर एवं दुकानदार मालामाल हो रहे हैं. लोग दवा सेहतमंद होने के लिए खाते हैं,लेकिन पैसे कमाने की होड़ में दवा दुकानदार व कंपनियों को लोगों के जीवन से भी खिलवाड़ करने में कोई हर्ज नहीं है.
हमारे देश में आज भी प्रतिबंधित दवाइयों की खुलेआम बिक्री जारी है. इन्हें कोई रोकने वाला नहीं है. लोग इन दवाओं को साधारण मर्ज खत्म करने के लिये खा रहे हैं, लेकिन उल्टे वो नये जानलेवा बीमारी से ग्रसित हो रहे हैं और हमारी सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है. जब हमने नेशनल फार्मास्यूटिकल्स प्राइसिंग ऑथरिटी (एन.पी.पी.ए) से सूचना के अधिकार तहत यह जानकारी मांगी कि पूरे देश में किस जिला, राज्य में दवाइयों को रैंडम सैंपलिंग के लिए सबसे ज्यादा भेजा गया है? इस सवाल के जवाब में एन.पी.पी.ए का उत्तर चौंकाने वाला है. अंग्रेजी में दिए अपने जवाब में एन.पी.पी.ए लिखता हैं ‘Most of the random sampling has been done from Delhi/ New Delhi during the current year.’ यानी इस साल रैंडम सैम्पलिंग के ज्यादातर कार्य दिल्ली और एन.सी.आर में ही कराए गए हैं. इस जवाब से कई सवाल उठते हैं. क्या पूरे देश में जो दवाइयां बेची जा रही हैं उनकी जाँच की जरूरत नहीं हैं? क्या केवल दिल्ली और एन.सी.आर के लोगों को ही गुणवत्ता परक दवाइयों की जरूरत है? इस तरह की लापरवाही से यह साफ-साफ दिख रहा हैं कि देश की जनता के स्वास्थ्य को लेकर सरकारी व्यवस्था पूरी तरह से अव्यवस्थित है.
हाल में यह बात सामने आई है कि पूरी दुनिया के साथ-साथ हिन्दुस्तान में भी ‘एनालजिन’ नामक दवा पर पाबंदी के बावजूद खुलेआम इसकी बिक्री जारी है. इस मामले को लेकर पार्लियामेंट की एक कमिटी ने अत्यंत गुस्सा ज़ाहिर किया है और कहा है कि एक महीने में इस दवा पर पाबंदी लगाने का फैसला किया जाए.
यह कहानी सिर्फ एनालजिन दवा की ही नहीं, बल्कि ऐसे अनेकों दवाईयां जो विदेशों में बैन हैं लेकिन हमारे देश में धड़ल्ले से बिक रहीं हैं. यही नहीं, नकली दवाओं का कारोबार भी हमारे देश में चरम पर है. लेकिन अफसोस हमारी सरकार को इसकी भी जानकारी नहीं है. जब हमने आरटीआई के ज़रिए एन.पी.पी.ए. से पूछा कि नकली दवा बनाने वाली कम्पनियों के कितने मामले आपके विभाग में आए हैं. नकली दवा बनाने वाली समस्त कम्पनियों के नामों की सूची उपलब्ध कराएं. तो उनका जवाब था उनके पास ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.
यही नहीं, इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि कौन-सी दवा उपयोगी है और कौन सी गलत, यह जानने के लिए भारत पूरी तरह पश्चिमी देशों पर निर्भर है. इसके बावजूद हम ऐसी कई दवाओं को धड़ल्ले से खरीद-बेच रहे हैं, जिनके इस्तेमाल पर पश्चिमी देशों ने पाबंदी लगा रखी है.
हैरत की बात तो यह है कि इनमें से कई दवाएं तो अमेरिका जैसे देशों में जानवरों को भी नहीं देते लेकिन भारत में मंत्रालय बेतुके तर्क देता है कि ज़रूरी नहीं कि जो दवा विदेश में सेहत खराब करे वह भारत में भी बुरा असर डाले. ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया का यह भी दावा है कि एक साल में 15 दवाओं पर पाबंदी लगी लेकिन कई दवाएं अब भी देश में ऐसी बिक रही हैं जो सात साल से ऊपर के बच्चों को नुकसान पहुंचा सकती है. देश में 11 ऐसी दवाएं बिक रही हैं जो विदेश में पूरी तरह बैन हैं, जिनमें एनालजीन, निमेसुलाइड, फिनालबीटा
यही नहीं हमारे देश में तो प्रतिबंधित नशीली दवाएं भी धड़ल्ले से बेरोकटोक बिक रही हैं. देश के ज़्यादातर मेडिकल स्टोर्स निर्धारित नियमों को ताक पर रखकर नशे की दवाइएं को खुलेआम बेच रहे हैं. इन नशीली दवाइओं का सबसे ज्यादा युवा वर्ग इस्तेमाल करता है क्योंकि यह नशा सस्ता होने के साथ-साथ उन्हें आसानी से मिल जाता है. बताते चलें कि हमारे देश में इस समय कई हज़ार ऐसे मेडिकल स्टोर हैं जिनके पास लाइसेंस ही नहीं है.
खैर, इन सबके बीच एक अच्छी खबर यह आ रही है कि भारत सरकार उन दवाओं की बिक्री रोकने की योजना बना रही है, जिन पर साइड इफेक्ट्स के कारण दुनिया के 6 बड़े ड्रग मार्केट में पाबंदी लगी हुई है. हेल्थ मिनिस्ट्री के अधिकारियों के मुताबिक अगर कोई दवा अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जापान और यूरोपीय यूनियन या ऑस्ट्रेलिया में नहीं बेची जा रही है तो इंडिया में भी उसकी बिक्री पर रोक लगा दी जाएगी. यह रोक तब तक जारी रहेगी जब तक कंपनी क्लिनिकल डाटा उपलब्ध नहीं कराती कि उस दवा का मरीज पर कोई बुरा असर नहीं पड़ रहा है. इसमें इंटरनैशनल रेग्युलेटर्स के फ्यूचर ऐक्शन के आधार पर ऐसे प्रतिबंध लगाए जाएंगे. यानी जिन दवाओं का इस्तेमाल डिवेलप्ड कंट्रीज में नहीं होता है,इंडिया में उन दवाओं की बिक्री अपने आप रुक जाएगी. अब आगे इस पर कितना अमल होता है यह उपर वाला ही बेहतर बता सकता है. तब तक आप नकली व विदेशों में बैन किए दवाओं को खाते रहिए.
