Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines
देश की जनता का भला करने के नाम पर नेताओं की ऐश की कहानी कोई नई नहीं है, लेकिन सूचना के अधिकार ने इस पर पड़ी कुछ और परतों को उभारा है. ज़ाहिर है इस देश में नेताओं के बीच सबसे बड़ा रूतबा प्रधानमंत्री का ही होना है. यदि आंकड़ों की बात करें तो मनमोहन सिंह के विदेश यात्राओं पर औसतन 2 करोड़ 37 लाख रूपये हर रोज़ खर्च होते हैं.
भूटान जैसे देश में भी हमारे प्रधानमंत्री का हर रोज़ का खर्च 2 करोड़ 23 लाख रूपये है. और रूस का कोई शहर हो तो यह खर्च थोड़ा सा बढ़कर करीब 2 करोड़ 70 लाख हो जाता है. चीन व जापान के शहरों में भी तकरीबन इतना ही खर्च आता है. बांग्लादेश जैसे देश में यह खर्च और भी बढ़ जाता है. यहां हर रोज़ का खर्च करीब 3 करोड़ 78 लाख रूपये है. जबकि अमेरिका जैसे देश में हर रोज़ 3 करोड़ 30 लाख के खर्च से ही काम चल जाता है. लेकिन जैसे ही नाम डेनमार्क का आता है. तो यह सारे खर्च कम लगने लगते हैं. डेनमार्क के शहर कोपेनहेगन में हमारे प्रधानमंत्री जी 15th Conference of Parties of the United Nations Framework Conference on Climate Change in Copenhagen (UNFCCC) में शामिल होने गए थे. इस कांफ्रेस में सीखी बातों को चाहे अपने देश में इम्प्लीमेंट किया हो या न किया हो, लेकिन इस एक दिन के कार्यक्रम में हमारे देश की जनता गाढ़ी कमाई का 10 करोड़ 69 लाख रूपये खर्च हो गए.
यही नहीं, प्रधानमंत्री दफ्तर से सूचना के अधिकार की धारा-4 (1)(बी) के तहत जारी सूचना देखकर इस बात का भी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि हमारे सरकारी बाबू काम करने में कितना तेज़ हैं? शायद इनके तेज़ी का ही नतीजा है कि 2010 में 28-30 अप्रैल के भूटान यात्रा पर आने वाले खर्च को अब तक पेश नहीं किया जा सका है. यही हाल 2011 में 12-13 मई के अफगानिस्तान यात्रा और 2012 में 18-20 नवम्बर के कम्बोडिया यात्रा का भी है. 2013 के विदेश यात्राओं का तो फिलहाल बात ही करना बेकार है.
यही नहीं, BeyondHeadlines ने आगे और छानबीन की तो काफी हैरान कर देने वाले आंकड़े सामने आएं. प्रधानमंत्री दफ्तर भले ही केन्द्रीय सूचना आयोग के आदेश के बाद 09 जून को अपने वेबसाइट पर विदेश यात्राओं की सूचना डाली हो, लेकिन BeyondHeadlines ने पिछले साल ही इस संबंध में आरटीआई से यह महत्वपूर्ण दस्तावेज़ हासिल कर लिए थे.
2004 में जब मनमोहन सिंह ने जब पद संभाला तो 29-31 जुलाई को उन्हें बैंगकॉक जाने का अवसर प्राप्त हआ. वो बैंगकॉक पहले BIMST-EC Summit में भाग लेने गए थे. और इस समिट में भाग लेने के लिए कुल 5 करोड़ 38 लाख 95 हज़ार रूपये खर्च हुए. BeyondHeadlines के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक इस यात्रा में 45 लाख 14 हज़ार 466 रूपये Accommodation के नाम पर खर्च हुए. 27 लाख, 31 हज़ार 727 रूपये लोकल ट्रेवलिंग, 8 लाख 51 हज़ार, 088 रूपये DA और 3 लाख 18 हज़ार 123 रूपये अन्य खर्च हुए. इस तरह कुल मिलाकर यह खर्च सिर्फ 67, 20, 805 रूपये हुआ. बाकी सारा खर्च जहाज़ से आने जाने में खर्च कर दिया गया यानी सिर्फ जहाज़ से आने जाने में 4 करोड़ 71 लाख, 74 हज़ार, 195 रूपये खर्च हो गए.
प्रधानमंत्री की दूसरी यात्रा 2004 में ही 19-26 सितम्बर तक न्यूयॉर्क व लंदन की थी. इस यात्रा पर कुल 11 करोड़, 97 लाख, 31 हज़ार का खर्च आया. जिनमें से करीब 8 करोड़ 15 लाख रूपये Accommodation, लोकल ट्रेवलिंग, DA व अन्य चीज़ों पर खर्च हुआ. यानी यहां भी करीब 3 करोड़ 83 लाख रूपये सिर्फ आने जाने पर हुआ. अगर तीसरी यात्रा की बात की जाए तो 2004 में ही 07-10 नवम्बर को हमारे प्रधानमंत्री निदरलैंड के हेग शहर में India-EU Summit के लिए गए. यहां कुल खर्च करीब 6 करोड़ 17 लाख रूपया हुआ. जिनमें से करीब 1 करोड़ 71 लाख रूपये ही Accommodation, लोकल ट्रेवलिंग, DA व अन्य चीज़ों पर खर्च हुआ. बाकी सारा खर्च यानी करीब 4 करोड़ 45 लाख रूपये सिर्फ और सिर्फ आने जाने में हुआ. आगे के आंकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं.
2008 के 16-17 मई को हमारे प्रधानंत्री भूटान गए. भूटान के इस दो दिवसीय यात्रा पर कुल खर्च करीब 4 करोड़ 46 लाख रूपये बताया गया. जिनमें से सिर्फ 34 लाख रूपये Accommodation, लोकल ट्रेवलिंग, DA व अन्य चीज़ों पर खर्च हुआ. यानी यहां भी करीब 4 करोड़ 12 लाख रूपये सिर्फ और सिर्फ भूटाम आने जाने में हुआ है.
इस प्रकार जब हम पूरी लिस्ट देखते हैं तो यह खेल हर साल हो रहा है. तकरीबन 80 फीसद खर्च सिर्फ और सिर्फ आने जाने पर हुआ है. इसके अलावा लोकल ट्रेवलिंग व अन्य खर्च भी काफी दिलचस्प है. उद्धाहरण के तौर हमारे प्रधानमंत्री 17 दिसम्बर, 2009 को डेनमार्क के कोपेनहेगन गए. यहां उन्हें 15th Conference of Parties of the United Nations Framework Conference on Climate Change in Copenhagen (UNFCCC) में शामिल होना था. इस एक दिवसीय यात्रा पर कुल 10 करोड़ 69 लाख 28 हज़ार का खर्चा आया. जिनमें से करीब 1 करोड़ 49 लाख रूपेय Accommodation पर, करीब 89 लाख लोकल ट्रेवलिंग, करीब 2 लाख 80 हज़ार DA पर और करीब 10 लाख 27 हज़ार रूपये अन्य चीज़ों पर खर्च हुआ. यानी इस एक दिन में करीब 2 करोड़ 51 लाख रूपये खर्च हो गए. यह रूपये कैसे खर्च हुए यह एक चिंतनीय विषय है. इससे अधिक सोचने की बात यह है कि सिर्फ आने जाने में करीब 8 करोड़ 20 लाख रूपये कैसे खर्च हो गए?
ऐसे में यह सवाल और भी गंभीर तब हो जाता है, जब देश की जनता महंगाई की मार झेल रही हो. देश की आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे अपना जीवन गुज़र बसर कर रहा हो. ऐसे में देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री इतना खर्च करें तो देश की जनता का परेशान होना लाज़िमी है.