Ritu Choudhary for BeyondHeadlines
अब जब मोदी जी चुनाव प्रचार अभियान का कमान संभाल ही लिया है तो कम से कम फेंकने से बाज़ आ जाएं. कम से कम अपने फेंकू वाले इमेज से तो बाहर निकले. वो क्या बोलते हैं? क्यों बोलते हैं? शायद उन्हें भी खुद नहीं पता तो फिर हमें कैसे पता होगा?
अभी हाल ही में अपने चुनाव प्रचार अभियान को एक नारा दिया है – “कांग्रेस मुक्त भारत”… अब उन्हें यह कौन बताए कि यह घीसा-पीटा नारा संघियों ने 60 के दशक में ही दे दिया था. संघी हर बार चुनाव में कहते रहे कि इस भारत को इस बार कांग्रेस मुक्त करेंगे. 2004 में अरूण जेटली ने भी यही कहा. लेकिन हिन्दुस्तान कांग्रेस मुक्त होने के बजाए अगले सत्र में भी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आ गई.
हमारे यह मोदी जी आवेश में आकर बहुत कुछ बोल देते हैं, जिनका वास्तकविकता से कोई लेना देना नहीं होता. सच पूछे तो मोदी के विचारों में कहीं भी गंभीरता या ठहराव दिखाई नहीं देता है. वो कांग्रेस को जड़ से समाप्त कर देना चाहते हैं, लेकिन यह काम कैसे करेंगे उन्हें खुद भी पता नहीं. शायद उन्हें पता नहीं कि कांग्रेस सिर्फ एक दल नहीं बल्कि एक विचारधारा है, जो हर लोकतांत्रिक विचारधारा के भारतीयों के दिलों में बसती है.
इसके विपरित संघ परिवार हमेशा से ही हिन्दू राष्ट्र का समर्थन करता रहा है. यहां हिन्दू का मतलब उनके नजदीक सिर्फ और सिर्फ ब्रहमणवाद, जातिवाद और साम्प्रदायिकता है. अब ज़रा सोचिए कि उनका क्या होगा? जो ब्रहमण नहीं है और ब्रहमणवाद को नहीं मानता है. जो जातिवाद को नहीं मानता है. और जो साम्प्रदायिक नहीं है. उसको यह लोग कैसे बढ़ने देंगे? संघ के हिन्दू राष्ट्र में यह कैसे जीवित रहेंगे?
पुराने उद्धाहरण की बात करें तो हमारे राष्ट्र पिता गांधी जी को इनके आतंकवाद का शिकार होना पड़ा. अभी ताज़ा उद्धाहरण उमा भारती का दिया जा सकता है, जिन्होंने बाबरी मस्जिद कांड में भाजपा का बढ़-चढ़ कर साथ दिया. उनकी इस उपलब्धियों को देखते हुए आज पार्टी में एक महत्वपूर्ण जगह होनी चाहिए थी, लेकिन बेचारी वो बैकवार्ड कास्ट से संबंध रखती हैं, इसलिए उन्हें दरकिनार कर दिया गया. आज वो भी हाशिये पर हैं और उनकी तरह बहुत सारे नेता व कार्यकर्ता जो पार्टी को खड़ा करने में अपना सबकुछ निछावर कर दिया, उन्हें ही आज भूला दिया गया है. और अगर हैं भी तो हाशिए पर धकेल दिए गए हैं.
ब्रहमणवाद या जातिवाद को दरकिनार भी कर दें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि अब तो भाजपा में नैतिकता भी नहीं रही. ‘पार्टी विथ डिफ्रेंस’ का सच सबके सामने आ चुका है. भले ही किसी मजबूरी के तहत आडवाणी मान गए हों, लेकिन जो उनके साथ हुआ उनसे आप सब बखूबी वाकिफ हैं. इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि भाजपा को देश व राष्ट्र से कोई मतलब नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ पद से मतलब है. खुद आडवाणी ने भी अपने पत्र के माध्यम से देश के सामने इस सच को रख चुके हैं.
उन्होंने अपने पत्र में लिखा था – “… पिछले कुछ समय से पार्टी जिस दिशा में बढ़ रही है उसके साथ चलना मेरे लिए मुश्किल है. कई नेता सिर्फ व्यक्तिगत एजेंडे पर काम कर रहे हैं… ”
मोदी जी खुद को स्वर्ण तो समझ रहे हैं लेकिन यह किसको पता है कि संघ उन्हें स्वर्ण समझता है या नहीं. अब मोदी जी यह भूल गए हैं कि वो भी ओबीसी हैं. और पार्टी में गैर-स्वर्णों से क्या सलूक किया जाता है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं हैं. अब भाजपा उन्हें हाशिए पर कब धकेलती है, ये भविष्य में देखने वाली बात है. और सच पूछे तो यह मोदी नाम का पटाखा कोई लम्बा चलने वाला नहीं है. यह तो किसी वक़्त भी ट़ाय टाय फ़ूस्स होकर भाजपा को भी ले डूबेगा. वैसे भी देश की जनता अब पहले जितनी बेवकूफ नहीं रह गई है. कम से कम इतनी समझदार तो ज़रूर हो गई है कि उसे पता है कि कौन लंबी लंबी फेंक रहा है.
(यह लेखिका के अपने विचार हैं.)