India

राहुल व अखिलेश के झूठे आश्वसान की कहानी

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते हैं, वहीं 11 वर्षीय राशिद न सिर्फ गणित के सवालों से खेलता है. उसका दिमाग कैलकुलेटर से भी तेज़ दौड़ता है. गुणा हो या भाग, हर टेढ़े सवाल का जवाब सेकेंडों में दे सकता है. बल्कि उसे देश में होने वाले घोटालों व घोटालेबाज़ों के नामों की भी पूरी जानकारी है. देशों के प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री व राजधानियों के नाम ज़बान पर रहते हैं. यही नहीं, छठी क्लास में पढ़ने वाले राशिद से आप देश के किसी भी राज्य के पूर्व व मौजूदा मुख्यमंत्री का नाम पूछ सकते हैं. सिर्फ राशिद ही नहीं, बल्कि राशिद की 9 वर्षीय बहन हिफ्ज़ा भी भाई से कम नहीं है.

राशिद व हिफ्ज़ा के टैलेंट को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड ने पहचाना और 2013 के नेशनल रिकॉर्ड में दोनों का नाम दर्ज हुआ. उससे पहले हिफ्ज़ा को भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से उत्कृष उपलब्धि हेतु राष्ट्रीय बाल पुरस्कार-2012 भी राष्ट्रपति के हाथों मिल चुका है.

राशिद व हिफ्ज़ा के पिता कज़्ज़ाफी बेग (किसान) इन दोनों को सारी सुविधाएं देकर पढ़ाना चाहते हैं. लेकिन गरीबी के कारण वो सुविधाएं नहीं दे पा रहे हैं, जो सुविधाएं उन्हें मिलनी चाहिए. वो कहते हैं कि “अपनी दयनीय हालत देखते हुए मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चों की पढ़ाई सरकारी स्तर पर हो. हमने खुद 26 मार्च, 2011 में राहुल गांधी से मुलाकात की. राहुल गांधी ने आश्वासन दिया कि हम आपके बच्चों को किसी अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे और आपकी सहायता करेंगे. लेकिन आज तक कोई सहायत नहीं मिली.”

another story of rahul gandhi and akhilesh yadav

कज़्ज़ाफी बेग फिर 12 अगस्त, 2012 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिले.  अखिलेश यादव ने मुलाकात के दौरान चार प्रमुख वादे किए. पहला वादा यह था कि दोनों बच्चों को अपनी तरफ से अच्छे स्कूल में पढ़ाएंगे. दूसरा वादा राम मनोहर लोहिया के अंतर्गत रहने के लिए मकान देने का किया. तीसरा आर्थिक सहायता देने की बात की और चौथा वादा गांव में 6 एकड़ कृषि पट्टा भूमि देने का भी किया. लेकिन कोई भी वादा आज तक पूरा नहीं हो सका है. हां! इतना ज़रूर है कि सरकार मुख्य सचिव ज़ुहैर बिन सगीर ने इन बच्चों का दाखिला डासना के द डीपीएस स्कूल में ज़रूर करा दिया है और इसका पूरा क्रेडिट वो खुद लेते हैं.

यही नहीं, कज़्ज़ाफी बेग 25 जुलाई, 2012 को राज्यपाल बी.एल.जोशी से भी मिले, उन्होंने भी आश्वायन दिया कि मुख्यमंत्री से बात करके आपकी पूरी सहायता कराएंगे. पर इनका वादा भी महज़ सरकारी आश्वासन ही साबित हुआ. हां, इतना ज़रूर है कि राज्यपाल ने इन बच्चों के लिए एक कम्प्यूटर ज़रूर भेंट में दिया. हालांकि कज़्ज़ाफी बेग बताते हैं कि इस तोहफे को लेने के लिए भी स्कूल के काफी चक्कर काटने पड़े थे.

कज़्ज़ाफी बेग को वादे व आश्वासन के बावजूद जब कोई आर्थिक सहायता नहीं मिला तो उसने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भी लिखा. प्रधानमंत्री कार्यालय ने इनके पत्र को उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को भेज दिया. फिर उसके बाद मुख्यमंत्री अखिलेश कुमार के अनु सचिव सुनील कुमार पाण्डेय ने मेरठ मण्डल के आयुक्त को पत्र लिखा. और तुरंत कार्रवाई करने की मांग की. मेरठ मण्डल के आयुक्त ने गाजियाबाद के ज़िला अधिकारी को पत्र लिखा और आर्थिक सहायता दिए जाने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करे. फिर ज़िला अधिकारी ने गाज़ियाबाद के मुख्य विकास अधिकारी पत्र लिखकर आवश्यक कार्रवाई करने को कहा.

मुख्य विकास अधिकारी ने इस मामले की जांच के लिए ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी को पत्र लिखा. ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने मामले की जांच करके ज़िला अधिकारी और मुख्य विकास अधिकारी को पत्र लिखकर बताया कि मैंने खुद कज़्ज़ाफी बेग के घर जाकर उससे मुलाकात की, उसने बताया कि  उसके दोनों बच्चे अद्भूत प्रतिभाशाली हैं, किन्तु गरीब होने के कारण उन्हें पढ़ाने में असमर्थ है. स्वयं कज़्ज़ाफी बेग व ग्राम वासियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार कज़्ज़ाफी बेग बेरोज़गार है और उसके पास गांव में 50 गज़ में बना हुआ पक्का मकान है…. और कई बातें उन्होंने लिखे. और लिखा कि बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए उचित होगा कि सरकार कज़्ज़ाफी की यथोचित आर्थिक एवं शैक्षिक मदद करे, साथ ही यह भी उचित होगा कि दोनों बच्चें जो देश की धरोहर हैं उनकी पढ़ाई एवं अतिरिक्त प्रतिभा जो भगवान ने दी है, उसे बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए जाए.

इसके ज़िला अधिकारी के साथ साथ ज़िला विकास अधिकारी ने भी मुख्यमंत्री के अनु. सचिव को एक पत्र लिखकर इस बात से अवगत कराया कि जांच के अनुसार कज़्ज़ाफी बेग की परिस्थितियां एवं उसके बच्चों की प्रतिभा को देखते हुए यथोचित आर्थिक एवं शैक्षिक मदद दिए जाने की संस्तुति की है. पर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तब भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, सपा के विधायक धर्मेश सिंह तोमर, समाजवादी पार्टी के ज़िला अध्यक्ष हाजी रशीद मलिक जैसे कई नेताओं ने भी अखिलेश सरकार को पत्र लिखकर कज़्ज़ाफी बेग को आर्थिक मदद देने की बात की. पर नतीजा वही ढ़ाक के तीन पात….

कज़्ज़ाफी बेग कहते हैं कि भले ही उनके खानदान में कोई न पढ़ सका, लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे दोनों बच्चे बस पढ़-लिख कर देश की सेवा करें. हालांकि हम्ज़ा को आगे पढ़ाने का मेरा इरादा बिल्कुल भी नहीं था, लेकिन अब उसे हर हाल में पढ़ाना है चाहे इसके लिए मुझे अपना खून बेचना पड़े.

दिलचस्प बात तो यह है कि कज़्ज़ाफी बेग के बच्चों के प्रतिभा की कहानी देश के तमाम मीडिया ने दिखाया व प्रकाशित किया, लेकिन इसके बावजूद सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा. कज़्ज़ाफी बेग का यह सवाल मुझे परेशान कर देने वाला है कि आखिर आप लोगों के लिखने से होता क्या है? मैं भी सोच रहा हूं कि शायद कज़्ज़ाफी बेग सही हैं, मीडिया अपना असर दिन प्रति दिन खोता जा रहा है. क्योंकि इन बच्चों की कहानी को बीबीसी से लेकर एनडीटीवी व देश के समस्त समाचार चैनलों ने दिखाया था. एनडीटीवी ने तो इनकी कहानी स्पोर्ट माई स्कूल कैम्पेन में भी दिखाया था, जिसमें बच्चों को पढ़ाई के लिए देश के लोगों से अपील की जाती थी, बल्कि कोका कोला इन बच्चों के पढ़ाई के खर्च को उठाने का विज्ञापन भी दिखाया जाता था. लेकिन शो के बाद एनडीटीवी ने कोई आर्थिक मदद नहीं की सिर्फ सचिन तेंदुलकर के हाथों एक सर्टिफिकेट दे दिया गया. हालांकि अखिलेश कज़्ज़ाफी बेग के बच्चों को आर्थिक व शैक्षिक मदद देने आश्वासन मीडिया के ज़रिए भी दे चुके हैं. कज़्ज़ाफी बेग का आखिरी सवाल है कि कागज़ पर ही सफेद हाथी फाइल बनी रहेगी, या यह भी भ्रष्टाचारियों के भेंट चढ़ जाएगी.?

हालंकि यह दोनों बच्चे अब किसी सेलिब्रेटी से कम नहीं हैं. आए दिन विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाएं अपने कार्यक्रमों में इन्हें बुलाते रहते हैं. लेकिन किसी ने इनकी आर्थिक व शैक्षिक मदद नहीं की.

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