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Reading: अपहृत मां की बरामदगी के लिए मासूमों का आमरण अनशन, इच्छामृत्यु की मांगी इजाज़त
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BeyondHeadlines > India > अपहृत मां की बरामदगी के लिए मासूमों का आमरण अनशन, इच्छामृत्यु की मांगी इजाज़त
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अपहृत मां की बरामदगी के लिए मासूमों का आमरण अनशन, इच्छामृत्यु की मांगी इजाज़त

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 12, 2013
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8 Min Read
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Shiv Das Prajapati for BeyondHeadlines

लखनऊ: बलिया के रसड़ा थाना क्षेत्र के डेहरी गांव निवासी राणा प्रताप सिंह की 16 वर्षीय पुत्री राज नन्दिनी की दोपहरी इन दिनों लखनऊ में विधानसभा धरना स्थल पर गुज़र रही है. वह अपनी अपहृत मां गीता सिंह की घर वापसी और हत्या के एक मामले में सजायाफ्ता पिता को रिहा कराने के लिए अपनी बारह वर्षीय बहन रागिनी और दो छोटे भाइयों राज प्रताप (8 वर्ष) और शुभम ( 6 वर्ष) के साथ 5 मई से आमरण अनशन पर बैठी है. जहां दिन में उसे लू के थपेड़ों और लाउडस्पीकरों से निकलने वाली तीखी आवाज़ से दो-चार होना पड़ता है तो वहीं दिन ढ़लते उसे अपनी आबरू को लूटे जाने का डर सताने लगता है.

इससे इतर सूबे में खाकी वर्दी का खौफ़नाक चेहरा और आमरण अनशन खत्म करने की उसकी धमकियां राजनन्दिनी के जेहन में सिहरन पैदा कर देती हैं. वह और उसके भाई-बहन दिन ढ़लने के बाद विधानसभा धरना स्थल पर आमरण अनशन जारी रखने में खुद को असमर्थ पाते हैं. उनकी इस असमर्थता को ज़मानत पर रिहा उनके पिता और पुलिसवालों की मौजूदगी भी दूर नहीं कर पा रही है. दिन ढलते ही वे एक सुरक्षित ठिकाने की तलाश में विधानसभा धरना स्थल से पिता के साथ गायब हो जाते हैं. कभी किसी धर्मशाला में रात गुजारते हैं तो कभी किसी होटल में. हालांकि अब यह उनकी आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ने लगा है. Photo By: Afroz Alam Sahil

किसी तरह रात गुजारने के बाद वे हर दिन सुबह विधानसभा धरना स्थल पर पहुंच जाते हैं और आमरण अनशन जारी रखते हैं. इसके बावजूद राजनंदिनी और उसके बहन-भाइयों के चेहरों पर झलक रही लाचारी और आंसुओं के रूप में आंखों से निकलते दर्द की आवाज़ सत्ता के गलियारों में बैठे हुक्मरानों को सुनाई नहीं दे रही. अगर राजनंदिनी के दावों की मानें तो वह और उसके भाई-बहन अपना आमरण-अनशन उस समय तक जारी रखेंगे, जब तक उनकी मां गीता सिंह की घर वापसी या उनके हत्यारों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं हो जाती.

राजनंदिनी के दावों और रसड़ा थाना में 27 नवंबर, 2009 को दर्ज मुकदमा संख्या-207/09 के दस्तावेजों की मानें तो उसकी मां गीता सिंह 31 अगस्त, 2009 को सुबह करीब दस बजे रसड़ा स्थित सदर अस्पताल दवा कराने के लिए गई थीं. रास्ते में डेहरी गांव निवासी सुरेंद्र सिंह के बेटे दीपक सिंह और उसके साथियों ने गीता सिंह का अपहरण कर लिया और फ़रार हो गए. इस बात की सूचना गीता सिंह के पति राणा प्रताप सिंह ने रसड़ा थाने में अगले दिन दी लेकिन पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इंकार कर दिया. एफआईआर के दस्तावेजों पर गौर करें तो दीपक सिंह ने 2 सितंबर को गीता सिंह के अपहरण की सूचना राणा प्रताप सिंह के मोबाइल फोन पर दिया और गाजीपुर के सादियाबाद थाना क्षेत्र के हुरभुजपुर गांव निवासी राकेश सिंह के आवास पर रहने की बात कही.

एफआईआर में दर्ज आरोपों की मानें तो गीता सिंह ने 28 अगस्त, 2009 को घर से 18,000 रुपये चोरी करते समय दीपक सिंह को रंगे हाथों पकड़ लिया और उसे मारा-पीटा. हालांकि दीपक पैसे लेकर भागने में सफल हो रहा. इस संबंध में राणा प्रताप सिंह ने रसड़ा थाने में सूचना दी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की. बाद में दीपक सिंह ने अपने साथियों के साथ मिलकर गीता सिंह का अपहरण कर लिया. मामले में जब पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं किया तो राणा प्रताप सिंह ने न्यायालय में याचिका दाखिल की.

उनकी याचिका पर न्यायालय ने 29 सितंबर, 2009 को रसड़ा थानाध्यक्ष को प्राथमिकी दर्ज कर मामले की विवेचना करने का आदेश दिया. इसपर रसड़ा थाना पुलिस ने 27 नवंबर, 2009 को दीपक सिंह और उसके अज्ञात साथियों के खिलाफ आईपीसी की धारा-379 (चोरी करने), 323 (मारपीट करने) और 364 (अपहरण करने) के तहत मामला दर्ज किया और सुरेश चंद्र यादव को मामले का विवेचनाधिकारी नियुक्त किया. गीता सिंह का अपहरण हुए करीब चार साल गुजर चुके हैं. इसके बावजूद पुलिस उनका पता नहीं लगा पाई है.

इस दौरान गीता सिंह के पति और राजनंदिनी के पिता राणा प्रताप सिंह राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, वर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पुलिस महानिदेशक, प्रमुख सचिव (गृह), पुलिस महानिरीक्षक, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग समेत विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों, राजनीतिज्ञों और आयोगों को पत्र के जरिए न्याय की गुहार लगा चुके हैं लेकिन अभी तक आरोपियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है. पुलिस और प्रशासन के गैर-जिम्मेदाराना रवैये और गीता सिंह के जिंदा होने की कोई सूचना नहीं मिलने से राजनंदिनी और उसके बहन-भाइयों को अपनी मां की हत्या किए जाने की आशंका सताने लगी है.

साथ ही उन्हें अपने सिर से पिता का साया छीनने का डर भी है क्योंकि हत्या के एक मामले में उन्हें न्यायालय से आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है और वर्तमान में वह ज़मानत पर रिहा हैं. इतना ही नहीं उक्त घटनाओं की वजह से राणा प्रताप सिंह की मानसिक स्थिति भी ठीक नहीं है. इस वजह से पूरा परिवार भूखमरी की कगार पर पहुंच गया है.

घर की माली हालत और लावारिश होने की आशंका से भयभित राजनंदिनी अपनी बहन और भाइयों के साथ लखनऊ में विधानसभा धरना स्थल पर 5 मई से आमरण अनशन पर बैठी है. मां का आंचल नसीब नहीं होने और कथित रूप से पिता को फर्जी मुक़दमे में फंसाए जाने की जांच उच्च स्तरीय एजेंसी से नहीं कराए जाने की हालत में राजनंदिनी अपने बहन-भाइयों के साथ इच्छामृत्यु की मांग कर रही है. पढ़ने, खेलने और सपने सजोने की उम्र में राजनंदिनी और उसके बहन-भाइयों का यह संघर्ष सत्ता के गलियारों में काबिज नुमाइंदों को फर्ज की राह दिखा पाएगा, ऐसा दिखाई नहीं देता.

हत्या के एक मामले में पिता को मिल चुकी है आजीवन कारावास की सजा

बलिया के रसड़ा थाना क्षेत्र के कोटवारी मोड़ पर 20 अप्रैल, 2005 को सुबह करीब सवा दस बजे डेहरी गांव निवासी बृजवासी सिंह के पुत्र ठाकुर सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में राजनंदिनी के पिता राणा प्रताप सिंह को कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास की सजा हो चुकी है. वर्तमान में वह ज़मानत पर रिहा हैं. राजनंदिनी के दावों की मानें तो बृजवासी सिंह के पुत्र टुनटुन सिंह और पूर्व बसपा विधायक घूरा के दबाव में पुलिस ने उसके पिता राणा प्रताप सिंह को फर्जी ढंग से ठाकुर सिंह की हत्या के मामले में फंसाया है. इसकी सीबीसीआईडी अथवा अन्य उच्च स्तरीय जांच एजेंसी से जांच होनी चाहिए.

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