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BeyondHeadlines > India > रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले की सीबीआई जांच की मांग
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रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले की सीबीआई जांच की मांग

Beyond Headlines
Beyond Headlines Published June 25, 2013
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10 Min Read
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BeyondHeadlines News Desk

रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले में फंसाए गए कुंडा के कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी और मुरादाबाद के जंग बहादुर खान के बेटे शेर खान ने मामले की पुनर्विवेचना और सीबीआई जांच की मांग के संदर्भ में मुख्यमंत्री के नाम आज ज्ञापन सौंपा है.

Another story of attack on CRPF camp, rampurरामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित आतंकी हमले में फंसाए गए मुरादाबाद के जंग बहादुर के बेटे शेर खान और कुंडा से फंसाए गए कौसर फारुकी के भाई अनवर फारुकी ने BeyondHeadlines को बताया कि जिस तरह से पिछले पांच सालों से उनके परिजन आतंकवाद के फर्जी आरोप में बंद हैं और सपा सरकार ने वादा करके नहीं छोड़ा उससे उनको बहुत निराशा हुई है. उन्होंने बताया कि रामपुर सीआरपीएफ कैंप कांड के आतंकवादी हमले के होने पर ही बहुत से सवाल हैं, कई मानवाधिकार संगठनों ने कहा है कि सीआरपीएफ जवानों ने नए साल के जश्न में नशे में धुत होकर आपस में गोली बारी की, जिसे छिपाने के लिए आतंकी हमला कह कर हमारे परिजनों को झूठा फंसाया गया है.

मुरादाबाद के शेर खान ने बताया कि उनके पिता जंग बहादुर खान जिनकी उम्र 60 से ऊपर की है, जिनको हृदय रोग है, जिसका कोई इलाज जेल प्रशासन नहीं करवा रहा है. ऐसे में उनके परिवारजन को किसी बड़ी अनहोनी की आशंका हर वक्त सताती है. बहरहाल, इनके द्वारा अखिलेश सरकार को दिए गए ज्ञापन  की कॉपी आप नीचे देख सकते हैं.

प्रति,

माननीय मुख्यमंत्री                                  

उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ.

विषय:– दिनांक 1 जनवरी 2008 को सीआरपीएफ कैंप रामपुर पर हुए कथित आतंकी हमले के मामले की पुर्नविवेचना और घटना की सीबीआई से जांच कराने के संबंध में.

महोदय,

उपरोक्त विषय में प्रार्थीगण निम्न निवेदन करते हैं-

1- यह कि विषयगत घटना के संबन्ध में थाना सिविल लाइन रामपुर द्वारा मुकदमा अपराध संख्या 8 सन 2008 अन्तर्गत धारा 147/148/149/302/307 आईपीसी व अन्तर्गत धारा 3/4 लोक संपत्ती क्षति निवारण अधिनियम 1984 व अन्तर्गत धारा 3,4,5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम व धारा 7/27 (3) आयुध अधिनियम 1959 दर्ज कराया गया था.

2- यह कि इसी विषयगत घटना के संबन्ध में मुकदमा अपराध संख्या 2008 सन 08 अन्तर्गत धारा 4/5 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, मुकदमा अपराध संख्या 209 सन 08 अन्तर्गत धारा 25 आयुध अधिनियम एवं मुक़दमा अपराध संख्या अन्तर्गत धारा 420, 467, 468, 471, 121, 121ए दर्ज हुई जो विवेचना उपरान्त पैरा 1 में उल्लेखित मुकदमा अपराध संख्या 8 सन 2008 के साथ जोड़ दिया गया और वर्तमान में आरोप पत्र दाखिल होने के उपरान्त इन सभी मामलों में माननीय न्यायालय के समक्ष सत्र परिक्षण चल रहा है.

3- यह कि विषयगत मामलों में जंगबहादुर खान, शरीफ, कौसर और गुलाब को अभियुक्त बनाया गया है. इनके अतिरिक्त उपरोक्त मामलों में फहीम, सबाउद्दीन को भी अभियुक्त बनाया गया है और तीन पाकिस्तानी नागरिक इमरान, शहजाद और फारुख को भी अभियुक्त बनाया गया है. वास्तविकता यह है कि जंगबहादुर खान, शरीफ, कौसर और गुलाब का कभी भी व्यक्तिगत संबन्ध फहीम, सबाउद्दीन और पाकिस्तानी नागरिकों इमरान, शहजाद और फारुख से नहीं रहा.

4- यह कि विषयगत घटना 1 जनवरी 2008 में जंगबहादुर खान, शरीफ, कौशर और गुलाब की किसी रुप में कोई संलिप्तता नहीं थी. यह घटना वास्तव में कोई आतंकवादी हमले की घटना थी अथवा सीआरपीएफ जवानों का कोई आपसी विवाद था, यह गहन जांच का विषय है. परन्तु यह निश्चित है कि इस घटना में अभियुक्त के रुप में जंगबहादुर खान, शरीफ, कौसर और गुलाब को पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियों द्वारा जानबूझकर झूठा फंसाया गया है क्योंकि घटना को घटित होने के 40 दिन से अधिक गुजर जाने के बाद भी पुलिस किसी भी अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी और न ही सीआरपीएफ जवानों के आपसी विवाद का जिसके कारण यह घटना हुई कोई खुलासा कर पा रही थी. वास्तव में पुलिस और जांच एजेंसियां इस पर पर्दा डालने का ही प्रयत्न कर रही थीं. इसलिए किसी को बलि का बकरा बनाना ज़रुरी था, इसलिए जांच एजेंसियों ने कथित मुखबिर की सूचना के आधार पर कहानी गढ़ ली और जंगबहादुर खान, शरीफ, कौसर और गुलाब को झूठा फंसा दिया. जिसके झूठा होने के निम्न आधार हैं-

अ- जंगबहादुर खान, शरीफ, कौसर, गुलाब के विरुद्ध गवाही देने वाला कोई चश्मदीद गवाह नहीं है जिसकी गवाही से यह साबित होता हो कि सीआरपीएफ कैंप के कथित हमले में यह चारों घटना स्थल पर थे.

ब- यह कि मुखबिर की कथित सूचना के आधार पर जंगबहादुर खान को 10 फरवरी 2008 को उसके घर से गिरफ्तार किया गया और उसका यह इकबालिया बयान लिख लिया गया कि वह घटना में शामिल था और उसके पाकिस्तानी आतकंवादी संगठनों से संबंध हैं जिनके द्वारा असलहों की सप्लाई की गई है. जंगबहादुर का यह बयान भी झूठा लिखा गया कि उसने शरीफ को यह हथियार दिए हैं जो बाद में शरीफ के लिखे झूठे बयान में यह तथ्य आया कि उसने इन हथियारों को प्रतापगढ़ कुंडा में अपने मित्र कौसर के यहां छिपाया और बाद में अपने बहनोई गुलाब के यहां रखा. इसी प्रकार के झूठे इकबालिया बयान शरीफ, कौसर और गुलाब के भी लिखे गए हैं और इन सभी बयानों को एक कड़ी के रुप में दुर्भावनापूर्वक पुलिस द्वारा जोड़ दिया गया और फर्जी बरामदगी की फर्द भी तैयार कर ली गई, जिसका कोई स्वतंत्र साक्षी नहीं है. वास्तविकता यह है कि शरीफ को उसके घर से पुलिस द्वारा अपनी गैर कानूनी हिरासत में लिया गया और फहीम के साथ रामपुर बस अड्डे से जंगकहादुर की निशानदेही पर गिरफ्तार किया दिखाया गया है जो कि एक फर्जी कहानी है. यदि निष्पक्ष जांच हो तो अनेक स्वतंत्र साक्षी हैं जो यह गवाही देंगे की शरीफ को उसके आवास से पुलिस द्वारा अपनी गैरकानूनी हिरासत में लिया गया था.

स- यह कि प्रार्थीगण को यह जानकारी मिली है कि दिनांक 10 फरवरी 2008 को शरीफ के साथ जिस फहीम को तथाकथित रुप से रामपुर बस अड्डे से गिरफ्तार किया बताया जाता है उसको मुंबई स्थित ताज होटल दिनांक 26/11 आंतकी कांड में भी अभियुक्त बनाया गया था और उस पर यह आरोप था कि उसने और सबाउद्दीन (विषयगत मामलों में जो सहअभियुक्त भी है) ने मिलकर मुंबई के अनेक स्थानों की रेकी थी और उनका संबन्ध पाकिस्तानी आतंकी संगठनों से है, परन्तु उक्त मामले की सुनवाई में माननीय उच्चतम न्यायालय तक में सुनवाई हुई जिसमें अभियोजन पक्ष फहीम और सबाउद्दीन के ताज होटल कांड में किसी भी रुप में संलिप्तता और उनके आतंकवादी संगठनों से संबन्ध साबित नहीं हो सके और फहीम और सबाउद्दीन बरी हो गए.

द- यह कि महोदय को विदित है कि मालेगांव आतंकी बम धमाकों में 9 मुस्लिम युवकों को जांच एजेंसियों द्वारा झूठा फसाया गया था. उनके झूठे कुबूलनामे लिखे गए थे और झूठी बरामदगी भी दिखाई गई थी. जो कि एनआईए द्वारा की गई जांच में फर्जी साबित हुईं और 9 मुस्लिम युवकों को रिहा कर दिया गया है.

ल- यह कि महोदय को विदित है कि माननीय आरडी निमेष आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट में तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी को भी फर्जी बताया है और उनसे दिखाई गई असलहे और विस्फोटक पदार्थों की बरामदगी भी फर्जी पाई गई है.

5- यह कि पुलिस और जांच एजेंसियों की यह मानसिकता बन गई है कि मुसलमानों को आतंकी मामलों में झूठा फंसाया जाय और इसी कड़ी में जंगबहादुर, कौसर, शरीफ और गुलाब के झूठे कबुलनामे लिखे गए हैं और उनसे झूठी बरामदगियां की गई हैं. इन चारों का कोई संम्बन्ध किसी भी रुप में फहीम, सबाउद्दीन और पाकिस्तानी नागरिक इमरान, शहजाद और फारुख से नहीं रहा. कथित गिरफ्तारियों और बरामदगी का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है.

विषयगत मामलों की जांच सीबीआई से कराने के संबन्ध में पूर्व में महोदय के समक्ष ज्ञापन प्रस्तुत किए गए थे, परन्तु अभी तक महोदय द्वारा उन पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, जिससे प्रार्थीगण, पीडि़तों के परिवर और नागरिक समाज में जो मानवाधिकारों के पक्षधर है में गहन निराशा व्याप्त है.

अतः महोदय से प्रार्थना है कि विषयगत तथाकथित आंतकी घटनाओं की विवेचना स्वतंत्र जांच एजेंसी सीबीआई से कराने की कृपा करें.

दिनांक- 24 जून 201

प्रार्थीगण-

अनवर फारुकी (भाई कौशर फारुकी ) आजाद नगर, पो0- कुंडा, थाना- कुंडा, जिला- प्रतापगढ़

शेर अली (पुत्र जंगबहादुर) मिलककामरु, थाना- मुंडा पांडे, जिला- मुरादाबाद.

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