हाशिमपुरा व मलयाना मामले में ‘सूचना’ पर सरकार की चुप्पी

Beyond Headlines
Beyond Headlines
7 Min Read

Afroz Alam Sahil for BeyondHeadlines

उत्तर प्रदेश में निमेष आयोग के रिपोर्ट के बहाने बाकी आयोगों के रिपोर्ट भी अब चर्चे में हैं. यह चर्चा भी इन दिनों आम है कि आखिर किसी भी घटना के लिए जांच आयोग का गठन किया किस लिए जाता है? शायद इसलिए कि समाज में अराजकता उत्पन्न न हो और उस मामले की सच्चाई सामने आए. लेकिन होता यूं है कि आयोग के रिपोर्ट सौंप दिए जाने के बावजूद सच्चाई लोगों के सामने नहीं आ पाती. इन्हीं जांच रिपोर्टों में से हाशिमपूरा दंगे पर बनी ज्ञान प्रकाश कमिटी और मलयाना दंगे पर बनी गुलाम हुसैन कमिटी की रिपोर्ट भी शामिल है, जिसे उत्तर प्रदेश सरकार अब तक दबाए बैठी है.

BeyondHeadlines पिछले 30 अप्रैल, 2013 को उत्तर प्रदेश के गृह, गोपन एवं कारागार प्रशासन विभाग को आरटीआई दाखिल कर हाशिमपूरा दंगे पर बनी ज्ञान प्रकाश कमिटी और मलयाना दंगे पर बनी गुलाम हुसैन कमिटी की रिपोर्ट की फोटोकॉपी उपलब्ध कराने को कहा है. लेकिन तय समय सीमा गुज़र जाने के बाद भी उत्तर प्रदेश के इस विभाग ने अब तक कोई जानकारी इस संबंध में उपलब्ध नहीं करा सकी है.हाशिमपुरा व मलयाना दंगा मामला में 'सूचना' पर सरकार की चुप्पी

स्पष्ट रहे कि मई 1987 में उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद 22 मई को शहर के हाशिमपुरा मोहल्ले के 600 से ज़्यादा मुसलमानों को उत्तर प्रदेश पीएसी के जवानों ने हिरासत में लिया था लेकिन इनमें से 42 लोग वापस नहीं लौटे थे.

उत्तर प्रदेश पीएसी पर आरोप है कि उसके कुछ जवानों ने इन लोगों की हत्या कर दी थी. पीड़ितों का यह भी आरोप है कि किसी भी पीएसी जवान या अधिकारी के ख़िलाफ़ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

इस मामले में मुक़दमा शुरू होने में ही 19 बरस लग गए और इस दौरान पीएसी के जिन 19 जवानों को इस मामले में अभियुक्त बनाया गया, उनमें से 16 ही जीवित बताए जा रहे हैं.

BeyondHeadlines से पूर्व इस मामले से जु़ड़े सरकारी दस्तावेजों को सार्वजनिक करवाने और फ़ाइलों में दबी बातों को उजागर करने के मक़सद से हाशिमपुरा कांड के कुछ पीड़ितों और मृतकों के परिजनों ने 24 मई 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस और गृह विभाग से सूचनाधिकार क़ानून के तहत आवेदन करके इस कांड से संबंधित सभी दस्तावेज़ मुहैया कराए जाने की माँग की थी. पीड़ितों और मृतकों के परिजनों की ओर से राज्य सरकार के पास 615 आवेदन जमा किए गए थे, जिनमें पुलिस महकमे से कई अहम सवाल पूछे गए थे. मसलन, इस हत्याकांड में शामिल पीएसी जवानों के ख़िलाफ़ अभी तक महकमे ने क्या कार्रवाई की है. (इस आरटीआई की रिपोर्ट बीबीसी पर उनके संवाददाता पाणिनी आनंद द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है.)

उस आरटीआई के जवाब में उत्तर प्रदेश पुलिस के सीबीसीआईडी विभाग की ओर से जो जानकारी पीड़ित लोगों की मिली थी, उसमें लगभग 19 पन्ने ऐसे थे जिनमें या तो कुछ भी नहीं लिखा था और या फिर इतनी ख़राब प्रतियाँ थी कि शायद ही कोई उन्हें पढ़ सके. और तो और, इस घटना के वर्ष से संबंधित कई कागज़ात जानकारी में शामिल ही नहीं किए गए थे और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज़ लोगों को दिए ही नहीं गए थे.

जब इस संबंध में उस समय बीबीसी के संवाददाता पाणिनी आनंद (जो फिलहाल आउटलूक में कार्यरत हैं) ने इस बारे में उत्तर प्रदेश पुलिस के सीबीसीआईडी विभाग के उस समय के महानिदेशक अमोल सिंह से पूछा था कि इस तरह अधूरी जानकारी क्यों दी गई है तो उनका कहना था कि अगर जानकारी मांगने वाले उनके संज्ञान में यह बात लाते हैं तो उसे सुधारने की कोशिश की जाएगी.

जब पाणिनी आनंद ने यह पूछा कि विभाग बिना यह देखे-जाने कि लोगों को क्या और कितनी जानकारी दी जा रही है, कोई भी जानकारी विभागीय मोहर लगाकर कैसे दे सकता है? इस पर उन्होंने कहा, “आप अपने दायरे में रहकर जानकारी मांगें और सवाल करें. आप यह सवाल नहीं पूछ सकते. हाँ, मैं मानता हूँ कि ग़लती हो गई होगी पर इसके लिए अपील करें तो आगे देखूँगा कि क्या किया जा सकता है.”

खैर, जिन पुलिसकर्मियों पर इस हत्याकांड में शामिल होने का आरोप है और जिन्हें इस मामले में अभियुक्त बनाया गया है उनके वार्षिक पुलिस प्रगति रजिस्टर की 1987 की प्रतियाँ देखने से पता चलता है कि विभाग किस ‘ईमानदारी’ से कार्रवाई कर रहा है. मसलन, अधिकतर के लिए लिखा गया था – “काम और आचरण अच्छा है. सत्यनिष्ठा प्रमाणित है. श्रेणी-अच्छा, उत्तम.”

एक अन्य पुलिसकर्मी के लिए लिखा गया है – “स्वस्थ व स्मार्ट जवान है. वाहिनी फ़ुटबॉल टीम का सदस्य है. वर्ष में दो नक़द पुरस्कार व दो जीई पाया है. काम और आचरण अच्छा है. सत्यनिष्ठा प्रमाणित है. श्रेणी- अच्छा.”

कुछ ऐसी ही कहानी मलयाना दंगे की भी है. इसके जांच के लिए बनी गुलाम हुसैन कमिटी की रिपोर्ट आज तक सरकार ने लोगों के समक्ष पेश नहीं किया. अब देखना यह है कि आरटीआई के तहत अपील करने के बाद कब तक आयोग के इन रिपोर्टों पर सरकार कुंडली मारकर बैठी रहेगी?

अगर देखा जाए तो इस पूरे मामले में राज्य सरकार का जो रूख रहा है वह उसके दोहरे चाल, चरित्र और चेहरे को उजागर करती है. और इससे भी मज़ेदार यह कि ऐसा किसी एक दल के बारे में नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पिछले 26 सालों में लगभग सभी दलों ने उत्तर प्रदेश में शासन किया है. लेकिन अब तक इन दंगों के पीड़ितों को कोई भी न्याय नहीं मिल सका है.

Share This Article