BeyondHeadlines News Desk
करोड़ो आदिवासियों के जीवन एवं सम्मान के प्रश्न पर देश भर में आत्म चिंतन को बढ़ावा देने के लिए जन्तर मंतर, नई दिल्ली पर आज 1 जून 2013 से मानव अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठने जा रहे हैं. स्पष्ट रहे कि हिमांशु कुमार ने लगभग दो दशक तक छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा क्षेत्र में काम किया है.
BeyondHeadlines से बातचीत में हिमांशु कुमार ने बताया कि आदिवासियों के संसाधनों पर पैसे वाली कंपनियों के कब्जा कर लेने और आदिवासियों को उनके अपने ही घर से भगा देने का मुद्दा इस देश के लिये कोई बड़ी समस्या नहीं बन पा रहा है. यह बात सच है कि हम तभी चेतते हैं जब समाज में किसी मुद्दे पर कहीं हिंसा होती है. विनोबा का भूदान आन्दोलन भी भूमि को लेकर फैले हुए अन्याय और उससे उत्पन्न होने वाली हिंसा में से ही निकला था.
आगे वो बताते हैं कि अभी आदिवासी इलाकों में अमीर कंपनियों के लोभ के लिये करोड़ों आदिवासियों के जीवन, आजीविका और सम्मान पर हमला जारी है. ऐसे में भारत को एक राष्ट्र के रूप में सोचना पड़ेगा कि यह देश अपने मूल निवासियों के साथ क्या सुलूक करेगा? क्या हम आदिवासियों की ज़मीनों पर पुलिस की बंदूकों के दम पर कब्ज़ा जायज़ मानते हैं? क्या हम मानते हैं कि आदिवासियों की बस्तियों में आग लगा कर उन्हें उनके गाँव से भगा कर उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा करने के बाद हम इस देश में शांति ला सकते हैं? एक बार हमें अगर अपने ही देशवासियों के साथ अन्याय करने की आदत पड़ गई तो क्या यह आदत हमें किस किस के साथ अन्याय करने का नहीं खोल देगी ?
उनके मुताबिक आज हम आदिवासी पर हमला करेंगे, फिर हम दलितों को मारेंगे, फिर हम गाँव वालों को मारेंगे. और एक दिन हम चारों तरफ से दुश्मनों से अपने ही बनाये गये दुश्मनों से घिर जायेंगे. इसलिये आज ही हमें आदिवासियों के साथ हमारे सुलूक की समीक्षा करनी चाहिये. ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि इस मौके पर हमें यह बैठकर सोचने की ज़रूरत है कि आदिवासियों के साथ इस देश को कैसा सुलूक करना चाहिये इस मुद्दे पर सोचने के रूप में सदुपयोग करें.
