Latest News

झांसी की रानी बनने की कोशिश मत कर !

Saheefa Khan for BeyondHeadlines

मैं बी॰ए॰ अंतिम वर्ष की छात्रा हूं. समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता. मैंने बी॰ए॰ प्रथम वर्ष में इस कॉलेज में प्रवेश लिया था, मेरा कॉलेज जितना दिलचस्प है उतना ही घर से कॉलेज के बीच का रास्ता भी…

मैंने इन तीन सालों में इस रास्ते का बहुत लुत्फ़ उठाया है. मेरे घर और कॉलेज के बीच में एक बहुत बड़ी बाज़ार है. जिसमें तीन चीज़ें मेरी पसंदीदा हैं, एक ज्वेलरी शॉप… एक फलों का ठेला… और एक गोलगप्पे का ठेला… यह तीनों ही दुकानदार मुझे अच्छी तरह पहचानते भी हैं क्योंकि मैं उनकी परमानेंट कस्टमर हूं.

India_local_marketतो मैं रोज़ की तरह उस दिन भी कॉलेज से घर आ रही थी. रिक्शा मिला नहीं तो पैदल ही चल दिया. और मुझे पसंद भी है कॉलेज से बाज़ार तक पैदल चलना. तो अभी मैं एक तिहाई सफर तय करके बाज़ार के बीचों-बीच में बनी उस ज्वेलरी शॉप तक पहुंची थी कि मेरे क़दम अपने आप ही रुक गये. वहां पर बहुत ख़ूबसूरत टाप्स लगे थे. दुकान वाला भी मुझे इन तीन सालों में अच्छी तरह पहचान गया था देखते ही बोला-‘‘बहन जी बहुत अच्छे टॉप्स हैं देख लीजिए’’

और मैं भी डिज़ाइन पसंद करने लगी मेरे बगल मे खड़ी एक लड़की भी कुछ सामान खरीद रही थी. जब तक दो लड़के भी आ गये और उसके पास खड़े होकर अश्लील बातें करने लगे. उस लड़की ने गुस्से में आकर एक लड़के को थप्पड़ मारना चाहा तो दूसरे लड़के ने उसका हाथ ज़ोर से पकड़ लिया. वह लड़की मदद के लिए चीख़ने लगी. मुझसे रहा नहीं गया मैं आगे बढ़कर उसकी मदद करना चाहती थी कि तभी दुकान वाले ने मझे इशारे से मना कर दिया.

मुझे उसके ऊपर भी गुस्सा आ रहा था कि वह न तो ख़ुद उसकी मदद कर रहा है और न ही करने दे रहा है. जब तक उन लड़कों ने उसका हाथ छोड़ दिया और यह कहते हुये आगे बढ़ गये ‘‘अबला नारी है तो अबला नारी बनकर रह, झांसी की रानी बनने की कोशिश मत कर’’

बहुत से लोग वहां पर मौजूद यह तमाशा देख रहे थे जब वह लड़के वहां से चले गये. मैंने दुकान वाले से पूछा… ‘‘तुम्हें यह तमाशा देखने में मज़ा आ रहा था? रोक नहीं सकते थे? तो उसने कहा ‘‘मैडम इस कलयुग में थोड़ा दबकर रहना पड़ता है. मेरी रोज़ी रोटी इसी दुकान से चलती है. मैं किसी से पंगा नहीं लेना चाहता और आपको भी इसीलिए रोका क्योंकि आप भी इसी रास्ते से अकेले घर जाती हैं और आपने देखा ही है कि किस तरह लोग खड़े तमाशा देखते हैं कोई किसी के मामले में बोलना नहीं चाहता.’’

मैंने वह टॉप्स वहीं रखे और आगे बढ़ गयी. वह लड़की भी सहमी नज़रों के साथ अपने रास्ते पर चल दी. जब मैं थोड़ा आगे चलकर गोलगप्पे की दुकान तक पहुंची तो देखा वह लड़के वहां भी मौजूद थे. शायद अपने नये शिकार की तलाश में. मैं भी चुपचाप अपने घर की तरफ़ चल पड़ी यह सोच कर कि अगर मैं रूकूं तो कहीं इस बार मैं इनका शिकार हो जाऊं…

और रास्ते भर यही सोचती रही कि काश हमारे समाज के लोगों में थोड़ी इंसानियत होती और वह थोड़ी हिम्मत दिखाकर इन लोफर लड़कों को उसी दुकान पर सबक सिखा देते तो शायद यह लोग यहां पर अपना नया शिकार न ढूंढ़ते…

इस घटना को पूरे तीन महीने गुज़र गये लेकिन मेरे ज़ेहन में यह आवाज़ आज भी गूंजती रहती है…‘‘अबला नारी है तो अबला नारी बनकर ही रह, झांसी की रानी बनने की कोशिश मत कर.’’

Loading...

Most Popular

To Top

Enable BeyondHeadlines to raise the voice of marginalized

 

Donate now to support more ground reports and real journalism.

Donate Now

Subscribe to email alerts from BeyondHeadlines to recieve regular updates

[jetpack_subscription_form]